पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजे आए एक महीना भी नहीं हुआ और नारदा स्टिंग टेप की जांच तेज हो गई. इस मामले में सीबीआई ने टीएमसी के दो मंत्रियों समेत कुल 4 नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.
अब बीजेपी और टीएमसी के बीच बंगाल हिंसा को लेकर चल रही लड़ाई के बाद सीबीआई के इस एक्शन पर सियासी तूफान खड़ा हो चुका है. इस केस में सबसे बड़े नाम सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय पर कोई एक्शन नहीं हुआ है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्हें कौन सी वीटो पावर मिल गई है?
बीजेपी-टीएमसी खींचतान के बीच सीबीआई की एंट्री
पश्चिम बंगाल चुनाव से ठीक पहले बीजेपी और टीएमसी में कांटे की टक्कर बताई जा रही थी, तमाम एग्जिट पोल ने भी बीजेपी को आगे बताया, लेकिन ममता ने पूरी बाजी पलटते हुए, एक बड़ी जीत दर्ज की. जीत के बाद बंगाल में हिंसा शुरू हो गई और एक बार फिर बीजेपी और टीएमसी आमने-सामने आ गए.
इसी खींचतान के बीच अचानक से 2016 का नारदा स्टिंग केस सामने आ गया और सीबीआई की एंट्री हुई. टीएमसी के मंत्री फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी और विधायक मदन मित्रा को गिरफ्तार कर लिया गया. साथ ही टीएमसी छोड़कर बीजेपी में गए और फिर टिकट नहीं मिलने के चलते बीजेपी छोड़ने वाले सोवन चटर्जी को भी हिरासत में लिया गया.
CBI दफ्तर में मुख्यमंत्री ममता की धमक
अब इन तमाम गिरफ्तारियों को लेकर सियासी तूफान उठना लाजमी था. क्योंकि सभी आरोपियों में से सिर्फ टीएमसी नेताओं को ही सीबीआई ने गिरफ्तार किया और उनके ठिकानों पर छापेमारी हुई. जिसके बाद ममता बनर्जी अपने अंदाज में सीबीआई दफ्तर पहुंच गईं और वहीं धरने पर बैठ गईं. साथ ही खुली चेतावनी देते हुए सीबीआई से कहा कि वो उन्हें भी गिरफ्तार करे. इसके करीब 6 घंटे बाद वो वहां से निकलीं. बता दें कि ममता बनर्जी पहले से ही केंद्र सरकार पर सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाती आई हैं.
सीबीआई ने किन नेताओं को बनाया था आरोपी?
अब पहले आपको ये बताते हैं कि इस मामले में सीबीआई ने किन नेताओं को आरोपी बनाया था और उनमें से कितने नेता फिलहाल बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इसमें सबसे बड़ा नाम चुनाव से ठीक पहले पाला बदलने वाले सुवेंदु अधिकारी का है. इसके अलावा दूसरा बड़ा नाम मुकुल रॉय का है, जो आरोपी बनाए जाने के वक्त टीएमसी नेता थे और अब बीजेपी में हैं.
इनके अलावा टीएमसी नेता सुब्रत मुखर्जी, प्रसून बनर्जी, सुल्तान अहमद, काकोली घोष, फिरहाद हकीम, इकबाल अहमद, मदन मित्रा और शोवन चटर्जी का नाम शामिल है. इनके अलावा एक पुलिस अधिकारी को भी आरोपी बनाया गया था.
सुवेंदु अधिकारी-मुकुल रॉय पर जांच की आंच क्यों नहीं?
अब इन तमाम नामों में से इस वक्त सिर्फ टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी हुई है. जबकि बीजेपी में शामिल हुए सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय पर आंच नहीं आई, न ही सीबीआई ने इन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई की है. सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने सीबीआई से यही सवाल पूछा है कि, बीजेपी में शामिल होने वालों के अलावा बाकी सबके खिलाफ कार्रवाई क्यों हो रही है?
यहां तक कि इस बड़े स्टिंग ऑपरेशन को करने वाले न्यूज पोर्टल नारदा के फाउंडर मैथ्यू सैम्युअल ने भी यही सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि,
“मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इस मामले में सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई, जबकि उन्होंने खुद मुझसे कैमरे के सामने पैसे लिए थे. सीबीआई के जरिए सभी को न्याय मिलना चाहिए.”
महुआ मोइत्रा ने कहा- गैरकानूनी है गिरफ्तारी
साथ ही तमाम लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि, पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर की तरफ से जब कोई मंजूरी नहीं दी गई थी तो इन नेताओं पर कैसे सीबीआई ने कार्रवाई कर दी. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्विटर पर लिखा,
“पश्चिम बंगाल के दो सीनियर मंत्रियों को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है. जो बिल्कुल गैरकानूनी है. विधानसभा स्पीकर ने कोई मंजूरी नहीं दी थी. राज्यपाल का कहना है कि 9 मई को उन्होंने इसकी मंजूरी दी थी, जबकि 10 मई को कैबिनेट का शपथ ग्रहण हुआ. ये अथॉरिटी सही नहीं है.”
स्वतंत्र पत्रकार साक्षी जोशी ने ट्विटर लिखा- 2016 में मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी का अन्य टीएमसी नेताओं के साथ घूस लेते हुए ये स्टिंग सामने आया था. लेकिन जब ये लोग बीजेपी में शामिल हुए तो बीजेपी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से इनका वो स्टिंग वाला वीडियो हटा दिया. अब सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया, क्या अब तक आप कारण नहीं जानते हैं? टाइड सफेदी...
इसके अलावा सोशल मीडिया पर कुछ पत्रकारों ने ये भी सवाल उठाया कि जब नारदा केस में मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ जांच को लेकर स्पीकर ने 2 साल पहले ही मंजूरी दे दी थी तो अब तक उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
बता दें कि सीबीआई ने गिरफ्तारी के बाद स्पेशल कोर्ट में चारों नेताओं को पेश किया था, लेकिन वहां सीबीआई की दलीलें नहीं चलीं और कोर्ट ने फिलहाल चारों नेताओं को जमानत दे दी. लेकिन इसके तुरंत बाद सीबीआई हाईकोर्ट पहुंची, जहां से टीएमसी नेताओं की जमानत पर रोक लगा दी गई है.
ममता के खिलाफ राज्यपाल के सख्त तेवर
अब केंद्र सरकार और सीबीआई पर इन तमाम आरोपों के बाद राज्यपाल भी सवालों के घेरे में हैं. राज्यपाल धनखड़ लगातार ममता बनर्जी पर हमला बोल रहे हैं, यहां तक कि उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल पुलिस टीएमसी के लोगों से डरी हुई है, लेकिन मैं छाती पर गोली खाने के लिए तैयार हूं. राज्यपाल के इन्हीं तेवरों के बीच सीबीआई का ये एक्शन सियासी कनेक्शन की ओर इशारा कर रहा है.
राष्ट्रपति शासन?
बीजेपी बनाम टीएमसी के इस घमासान के बीच सवाल उठने लगे हैं कि क्या ये राज्य में राष्ट्रपति शासन की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. फिलहाल ये दूर की कौड़ी लग रही है. क्योंकि अभी अभी चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी की सरकार ऐसा कदम उठाती है तो बंगाल में स्थिति बिगड़ सकती है. राष्ट्रीय स्तर पर भी बीजेपी की साख पर असर पड़ सकता है. ये जरूर है कि इस स्कैम में एक्शन के जरिए बीजेपी टीएमसी को कठघरे में लाने की कोशिश कर रही है. शायद वो उन नेताओं को भी संदेश देना चाहती है जो टीएमसी से बीजेपी में आए और अब हारने के बाद टीएमसी में जाने की कोशिश में हैं.
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