गिद्दड़बाहा शहर के घंटाघर दरवाजे से गुजरती भोंपू रिक्शा चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को राहुल गांधी की रैली में आने का न्यौता दे रही है. मोड़ पर खड़ा ऑटो अरविंद केजरीवाल के क्लोज-अप वाले आम आदमी पार्टी के बैनर से ढका है. एक ठेले पर रखी केतली में सर्दी को चुनौती देती चाय उबल रही है. बाजार अपनी गति से सरक रहा है.
2 फरवरी पंजाब विधानसभा चुनावों के प्रचार का आखिरी दिन है. कांग्रेस पार्टी ने अपनी पूरी ताकत मालवा इलाके में झोंक दी है. पार्टी के तीनों स्टार प्रचारक- राहुल गांधी, कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्दू संगरूर, गिद्दड़बाहा, फतेहगढ़ साहेब, लांबी, लुधियाना और बठिंडा जैसे इलाकों में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं.
दरअसल मालवा ही वो इलाका है जो पंजाब की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता तय करेगा. विधानसभा की कुल 117 में से 69 सीटें मालवा में हैं. पिछली बार अकाली-बीजेपी गठबंधन में अपनी 68 में से 35 सीटें मालवा से ही जीती थीं. लेकिन मौजूदा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी का सूपड़ा मालवा से साफ है.
मालवा के भरोसे आप
आम आदमी पार्टी का सारा दांव इसी इलाके में लगा है. पार्टी मालवा में क्लीन स्वीप का दावा कर रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों दौरान भी ‘आप’ ने पंजाब की 13 में से 4 सीटों पर कब्जा जमाया था.
अगर 2014 के चुनाव के नतीजों को पूरे राज्या के विधानसभा सीटों में तब्दील करें तो तस्वीर कुछ ऐसी बनती है-
लोकसभा चुनाव के बाद से आप कार्यकर्ता मालवा इलाके में लगातार काम करते रहे. मौजूदा चुनाव में शायद इससे उन्हें उम्मीद भी है. मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सीट लांबी का एक खेत-मजदूर स्वर्ण सिंह कहता है
सानू ते पहली बार साड्डा झाड़ू आला मिल गया (हमें तो पहली बार अपना झाड़ू वाला मिल गया है)
नशा, बेरोजगारी खास मुद्दे
मालवा, खास तौर पर इसका दक्षिणी हिस्सा सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ा है. कैंसर, पीने का पानी, नशा और बेरोजगारी यहां के सबसे बड़े मुद्दे हैं. छोटी और मध्यम इंडस्ट्री की कमी की वजह से यहां के लोग खेती और सरकारी नौकरी के ही भरोसे हैं. पंजाब की इसी कॉटन बेल्ट में किसानों की खुदकुशी के मामले देखने को मिले. इसी वजह से किसान शिरोमणी अकाली दल से नाराज हैं.
गांवों में नशे को लेकर भी लोगों में जबरदस्त गुस्सा है. लोग कहते हैं कि इस धंधे में पुलिस-नेता सब मिले हुए हैं. लोगों का कहना है कि अगर कोई आवाज उठाता है तो पुलिस उसके ही खिलाफ झूठा पर्चा दाखिल कर देती है.
लोगों की इसी नाराजगी को आम आदमी पार्टी भुनाने में लगी है.
दलितों पर दांव
पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित समुदाय का वोट है. पिछले कई सालों से अकाली-बीजेपी गठबंधन और कांग्रेस पार्टी के बीच झूल रहा ये वोटर किसी ‘नए’ को आजमाना चाहता है और उसे ‘आप’ की शक्ल में उम्मीद नजर आ रही है. अरविंद केजरीवाल ने दलित उपमुख्यमंत्री का चारा फेंककर भी इस समुदाय के लुभाने की कोशिश की है.
माझा,दोआबा कमजोर कड़ी
लेकिन ‘आप’ के लिए तस्वीर पूरी तरह गुलाबी भी नहीं है. अमृतसर के आसपास के माझा इलाके में ‘आप’ की मौजूदगी नजर नहीं आती जबकि सतलुज और ब्यास नदियों के बीच बसे दोआबा में भी झाड़ू के जलवे नहीं दिखते. इन दोनों इलाकों में 48 सीटें आती हैं.
पिछले चुनावों पर नजर डालें तो कोई पार्टी सिर्फ और सिर्फ मालवा के भरोसे सरकार नहीं बना पाई है. यानी पंजाब विधानसभा में 59 का मेजिक फिगर पाने के लिए ‘आप’ को पंजाब के दूसरे इलाकों में भी कुछ सीटें जीतनी पड़ेंगीं.
कांग्रेस का भरोसा कैप्टन
25 सीट वाले माझा और 23 सीट वाले दोआबा में कांग्रेस पार्टी की खासी पकड़ नजर आ रही है. कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह इन इलाकों में लोगों की पहली पसंद नजर आते हैं.
भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बसे थेकलां गांव के युवा किसान गुरजिंदर के घर के बाहर कैप्टन अमरिंदर सिंह का पोस्टर लगा है. ये गांव अब तक अकालियों को वोट देता रहा है. लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है. गुरजिंदर कहते हैं...
दस साल हो ग्ये अकालियां णू वेखदे होये. अस्सी ओन्हां णू दो बार जिताया पर कुछ नी कीत्ता. टीवी विच बोली जांदे णे, करदे कुछ नी (10 साल से अकाली-बीजेपी सरकार को देख रहे हैं. हमने उन्हें दो बार जिताया. लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. टीवी पर बोलते रहते हैं, करते कुछ नहीं)
पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए गुरजिंदर कहते हैं-अस्सी ते इस बार कैप्टन णू वोट पाणा (हम तो इस बार कैप्टन (अमरिंदर सिंह) को वोट डालेंगे.
कैप्टन अमरिंदर सिंह अकाली-बीजेपी के खिलाफ बन रहे माहौल का फायदा उठाने में लगे हैं.
कैप्टन भले ही प्रकाश सिंह बादल के गढ़ लांबी से चुनाव लड़कर बादल को सीधी चुनौती दे रहे हों लेकिन उनके प्रचार भाषणों की बंदूक ‘आप’ पर ज्यादा तनती है. अरविंद केजरीवाल का गैर सिख होना और ‘आप’ का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित ना कर पाना ऐसे मुद्दे हैं जो कैप्टन के तकरीबन हर भाषण की जद में रहते हैं.
काफी हील हुज्जत के बाद ही सही लेकिन नवजोत सिद्धू का कांग्रेस में आना पार्टी के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है. सिद्धू अपनी रैलियों में खासी भीड़ बटोर रहे हैं.
हालांकि माझा और दोआबा से आम आदमी पार्टी पूरी तरह गायब तो नहीं है लेकिन वो सीट जीतने से ज्यादा वोट काटने की स्थिति में ज्यादा नजर आ रही है.
“नहीं बरसेंगे बादल”
किसान, युवा, ग्रामीण, कारोबारी, छोटे दुकानदार- हर वर्ग में अकाली-बीजेपी के खिलाफ गुस्सा नजर आता है. खास बात है कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल को भी अपनी लांबी और जलालाबाद सीटों पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है.
नशा, बेरोजगारी, सरकारी गुंडाराज, भ्रष्टाचार, पलायन करते उद्योग, विकास ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने अकाली-बीजेपी गठबंधन को काफी कमजोर कर दिया है.
पंजाब के गली-चौराहों पर इन दिनों एक जुमला आम सुनने को मिलता है
इस बार णी बरसदे बादल (इस बार बादल नहीं बरसेंगे)
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