नीला रंग शांति का प्रतीक माना जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह उथल- पुथल का प्रतीक बन गया है. ये रंग दलितों का पर्याय है . उनका सशक्तिकरण और उनकी आक्रामकता को देखते हुए देश में लगभग हर राजनीतिक दल दलित केक का एक टुकड़ा पाने के लिए बेताब है.बीजेपी अपने भगवा सागर में नीले रंग की छींटाकशी करने की कोशिश कर रही है . कांग्रेस भी चाहती है कि उसका तिरंगा नीला का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करे. समाजवादी पार्टी दलितों से मित्रता करके नीले रंग को अपने हरे रंग में लाने के लिए तैयार है.
पश्चिमी यूपी में नीले रंग की अहमियत
भीम आर्मी ने पूरी तरह से नीले रंग को अपना लिया है . इसका नीला रंग अब पश्चिमी यूपी में बीएसपी के नीले रंग से ज्यादा मजबूत माना जाता है.उत्तर प्रदेश में पिछले चार वर्षों में दलित राजनीति में बीजेपी की पहुंच स्पष्टता से अधिक रही है.पार्टी ने अधिकांश नेताओं को बीएसपी से शामिल किया है और पार्टी के भीतर दलितों को बढ़ावा देना जारी रखा है.इसी का नतीजा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 17 आरक्षित सीटों में से 15 पर जीत हासिल की थी.
समाजवादी पार्टी जिसने 2019 के चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था, अब बीएसपी के एसपी से नाता तोड़ने के बाद दलितों को बड़े पैमाने पर लुभाने की कोशिश कर रही है.
एसपी ने गठित की है बाबा साहेब वाहिनी
पार्टी ने बाबा साहेब वाहिनी का भी गठन किया है जो दलितों को पार्टी में लाने का काम करेगी. पार्टी ने अंबेडकर जयंती पर दलित दिवाली की भी घोषणा की.नीले पानी में उतरने के लिए यह एसपी का पहला सचेत और ²श्यमान प्रयास. अब तक एसपी ने खुद को ओबीसी और मुसलमानों तक ही सीमित रखा था.
कांग्रेस महासचिव आयोजनों के दौरान नीले स्कार्फ में दिख चुकी हैं
कांग्रेस भी दलित राजनीति में अपना 'हाथ' आजमाने की कोशिश कर रही है.इसकी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा अत्याचारों का सामना करने वाले दलित पीड़ितों के घर जाती रही हैं, राज्य कांग्रेस के नेताओं को ऐसे आयोजनों के दौरान नीले स्कार्फ पहने देखा गया है.लेकिन देश में और उसके बाहर भी दलितों के लिए नीला रंग कब और कैसे बन गया ये बड़ा सवाल है?
एक्सपर्ट क्या कहते हैं.
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और अब एक प्रमुख दलित कार्यकर्ता, एस.आर. दारापुरी, का कहना है '' नीला आकाश और समुद्र का रंग है और असीमता को दशार्ता है. डॉ बीआर अंबेडकर को ये रंग बहुत पसंद था. 1942 में जब अनुसूचित जाति संघ की स्थापना की, तो उन्होंने एक नीला झंडा चुना था. फिर 1956 में, उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की और उसे भी एक नीला झंडा दिया. डॉ अम्बेडकर हमेशा एक नीला कोट पहनते थे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी रंग पसंद के लिए जाने जाते थे. दलितों के लिए, यह दलित सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया और यह आज भी जारी है क्योंकि प्रमुख दलित संगठन इस रंग के माध्यम से अपना प्रतिनिधित्व करते हैं.''
दारापुरी ने आगे याद किया कि '' नीला बौद्ध धर्म के प्राथमिक रंगों में से एक है . नीला बुद्ध सबसे अधिक पूजनीय है. डॉ अम्बेडकर ने अपने बाद के वर्षों में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था और बौद्ध धर्म में नीला रंग शांति, करुणा और दया से जुड़ा है.''
डॉ दाऊजी गुप्ता, एक सामाजिक और दलित कार्यकर्ता, जिन्होंने दिवंगत कांशीराम के साथ मिलकर काम किया और एक पखवाड़े पहले उनकी मौत हो गई, उन्होंने एक समारोह में कहा था कि जब से अंबेडकर एक दलित प्रतीक के रूप में उभरे हैं, तब से नीला दलित सक्रियता का पर्याय बन गया है.डॉ गुप्ता ने यह भी कहा था कि डॉ अंबेडकर की मूर्ति को भगवा रंग में रंगने के मामले दलित आइकन के राजनीतिक स्वामित्व का दावा करने वाले कुछ समूहों का उदाहरण हैं.
'मायावती चाहें तो भी पार्टी का रंग नहीं बदल सकती हैं'
दलित लेखक राम किंकर गौतम का दलितों के लिए नीले रंग के महत्व पर अपनी राय थी.उन्होंने कहा, '' कोई भी समुदाय जो हाशिए पर है और वंचित है, वह एकजुट होने के लिए प्रतीकवाद की तलाश करता है. नीले रंग को डॉ अंबेडकर ने बढ़ावा दिया और दलित समुदाय का रंग बन गया. बस नीला झंडा उठाना, आज दलित एकता का प्रतीक है और बीएसपी जैसी पार्टियों ने केवल प्रचार किया है . आज, मायावती चाहें तो भी पार्टी का रंग नहीं बदल सकतीं क्योंकि दलितों के लिए नीला बीएसपी से भी बड़ा प्रतीक है .''
जाने माने राजनीतिक वैज्ञानिक प्रो रमेश दीक्षित ने कहा कि एशियाई समाजों में प्रतीकवाद हमेशा एक मजबूत कारक रहा है हिंदुओं के लिए भगवा और सूफियों के लिए और मुसलमानों के लिए हरा.
इस बीच, बीएसपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने कहा कि दलितों के लिए डॉ अम्बेडकर के सपनों को साकार करने के लिए उनकी पार्टी का गठन किया गया था. उन्होंने कहा, "यह स्वाभाविक ही है कि हम नीले रंग को लेते हैं जो अब दलित सशक्तिकरण का प्रतिनिधित्व करता है."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)