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येदियुरप्पा का इस्तीफा, दो सालों में ही क्यों गई कर्नाटक सीएम की कुर्सी-3 वजह

26 जुलाई को Yediyurappa ने इस्तीफे का ऐलान किया

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कर्नाटक (Karnataka) के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa Resigns) ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया है. कई दिनों की अटकलों के बाद 26 जुलाई को येदियुरप्पा ने रोते हुए इस्तीफे का ऐलान किया. उनका कहना था कि वो अग्निपरीक्षा से गुजरे हैं. येदियुरप्पा को अपने राजनीतिक विरोधियों को कहीं बाहर ढूंढने की जरूरत नहीं थी, वो बीजेपी के अंदर ही मौजूद थे.

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येदियुरप्पा के खिलाफ उनके मंत्री और विधायक ही आवाज बुलंद कर रहे थे. यहां तक कि येदियुरप्पा की ही सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायतराज मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने सीएम के 'तानाशाही हस्तक्षेप' को लेकर राज्यपाल वजुभाई वाला को पांच पन्नों की चिट्‌ठी लिखकर शिकायत की थी.

बीजेपी के कई सदस्य इस तरह की शिकायतों को हवा देते रहे हैं. आरोप हैं कि येदियुरप्पा का परिवार कर्नाटक सरकार के कामकाज में दखल देता रहा है.
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1.परिवारवाद का आरोप प्रमुख

कर्नाटक के राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक, येदियुरप्पा का परिवार कैडर आधारित पार्टी ऑफिस की तरह काम करता है. परिवार में हर किसी की भूमिका तय है. बीजेपी के भीतर और कर्नाटक के अन्य राजनीतिक हलकों में येदि के छोटे बेटे बीवाई विजयेंद्र को ‘सुपर सीएम’ कहा जाता था. उनके खिलाफ राज्य के मामलों में कथित तौर पर दखल देने की शिकायतें हैं.

येदियुरप्पा से मतभेद रखने वाले बीजेपी विधायक बासनगौड़ा पाटिल (यत्नाल) ने इस साल 15 फरवरी को मीडिया के सामने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री का परिवार बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त है और ये राज्य सरकार और बीजेपी का नाम खराब करते हैं. उनका सीधा निशाना विजयेंद्र की तरफ था.
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2.पार्टी में नाराजगी

बीजेपी में रह-रहकर येदियुरप्पा के खिलाफ विरोध के सुर उठते रहे हैं और हटाने की मांग भी होती रही है. येदियुरप्पा के कट्टर विरोधी बसंगौड़ा रमनगौड़ा पाटिल ने ये तक कह दिया कि अगर बीजेपी 2023 में सत्ता दोबारा पाना चाहती है तो येदियुरप्पा को हटाना पड़ेगा. पाटिल ने 20 मार्च को कहा, “ये कंफर्म है कि सीएम बदला जाएगा.”

बीजेपी ने लिंगायत समाज से आने वाले येदियुरप्पा को 2019 में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार गिरने के बाद सीएम बनाया था. कुमारस्वामी सरकार ने 23 जुलाई 2019 को विश्वास मत गंवा दिया था, मगर बीजेपी आलाकमान ने येदियुरप्पा को 26 जुलाई तक शपथ लेने के लिए अनुमति नहीं दी थी. केंद्रीय हाई कमान से अनुमति मिलने के लिए उन्हें कई दिन तक इंतजार करना था. बताया जाता है कि इस दौरान येदियुरप्पा को कई बार दिल्ली के चक्कर काटने पड़े थे. फिर जाकर 26 जुलाई को वो सीएम बने थे.

येदियुरप्पा के खिलाफ खड़े बीजेपी के नेताओं का एक आरोप ये था कि कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराने के लिए जो लोग बीजेपी में आए आए थे, उनपर येदियुरप्पा का ज्यादा ही स्नेह था.

येदियुरप्पा की उम्र भी एक बड़ा मुद्दा थी. अगले चुनाव तक वो 80 साल के हो जाते और मोदी-शाह के आयु मानदंड के हिसाब से येदियुरप्पा को काफी पहले हट जाना चाहिए था.

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3.भ्रष्टाचार का आरोप

कर्नाटक हाईकोर्ट ने येदियुरप्पा के खिलाफ आठ साल पुराने भ्रष्टाचार मामले को दोबारा शुरू करने की इजाजत दी थी. हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों के लिए गठित एक स्पेशल कोर्ट को निर्देश दिया है कि वो जुलाई 2016 में एक सत्र न्यायालय द्वारा येदियुरप्पा के खिलाफ हटाए गए पुराने मामले को बहाल करे. अवैध तरीके से भूमि अधिसूचना का ये मामला 2008-2012 के दौरान का है, जब बीजेपी पहली बार सत्ता में थी.

इस मामले को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस हमलावर थी और बीजेपी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है. राज्य में कांग्रेस ये संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप है फिर भी बीजेपी चुप और पीएम मोदी चुप हैं.

भले ही बीजेपी विपक्ष के आरोपों पर खामोश रही लेकिन ज्यादा दिन तक चुप्पी परेशानी की सबब बन सकती थी. खासकर जब पीएम मोदी की केंद्र में छवि भ्रष्टाचार मुक्त नेता की है और बीजेपी नेतृत्व इसे चुनावों में भुनाती रही हो.

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