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क्‍या नेता सियासी फायदे की आस में सार्वजनिक मंच पर रोते-धोते हैं?

वैसे रोने के मामले में भारतीय नेता ही नहीं, दूसरे देशों के नेता भी पीछे नहीं हैं.

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पुष्पा आई हेट टियर्स...

फिल्म अमर प्रेम में राजेश खन्ना का बोला गया ये डायलॉग महज एक डायलॉग नहीं, बल्कि ये तीन शब्द आज भी किसी रोते हुए शख्स को चुप कराने के काम आते हैं. लेकिन राजनीति में आंसुओं से कोई नफरत नहीं कर सकता है, क्योंकि यहां एक-एक आंसू की भी बड़ी कीमत होती है. राजनीतिक में रोना कमजोरी नहीं, बल्कि बड़ी राजनीतिक ताकत हासिल करने के काम आता है.

अब देखिए, कर्नाटक में सिर्फ 37 सीटें हासिल करने वाली पार्टी के नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन जनता के सामने फूट-फूटकर रोते हुए अहसान जताया कि कुर्सी पर बैठकर उन्हें शिवजी की तरह विषपान करना पड़ रहा है.

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जाहिर है, कुमारस्वामी रो-धोकर अपनी कमजोरी नहीं, सेंटीमेंटल कार्ड खेलकर कांग्रेस को मजबूती भरी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर भविष्य में कांग्रेस ने जेडीएस से हाथ खींचे, तो वो खुद को सताया हुआ साबित कर देंगे और जनता की सहानुभूति हासिल कर लेंगे.

वैसे राजनीति में रोने का चलन पिछले कुछ सालों से ज्यादा ही बढ़ गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सार्वजनिक मंच, रैली या संसद में रोकर अपने इमोशन जाहिर करते रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर सार्वजनिक मंच पर भावुक हो जाते हैं और उनकी आंखों से आंसू निकल पड़ते हैं. 2014 में एनडीए की शानदार जीत के बाद जब नरेंद्र मोदी को BJP संसदीय दल का नेता चुना गया, तब संसद के सेंट्रल हाल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि नरेंद्र भाई ने बीजेपी पर कृपा की है.

आडवाणी के इस बयान के बाद मोदी ने कहा, ''आप कृपा शब्द का प्रयोग न करें. मां की सेवा कभी कृपा नहीं होती. मेरे लिए बीजेपी मां के समान है.'' ये कहते हुए पीएम की आंखों से आंसू आ गए.

वैसे रोने के मामले में भारतीय नेता ही नहीं, दूसरे देशों के नेता भी पीछे नहीं हैं.

वैसे पीएम मोदी कई मौकों पर रोए. 2015 में अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी मां और अपने बचपन का जिक्र किया, तो उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे और वो मंच पर ही रो पड़े. वहीं नोटबंदी के बाद गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान भी रो पड़े.

वैसे रोने के मामले में भारतीय नेता ही नहीं, दूसरे देशों के नेता भी पीछे नहीं हैं.
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आडवाणी भी कई मौकों पर रोए

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी मंच पर कई बार रोते हुए देखा गया है. 15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र पर अंतिम दिन समापन भाषण के दौरान जब मुलायम सिंह यादव ने आडवाणी की तारीफ की, तो उनके आंसू छलक पड़े.

वैसे रोने के मामले में भारतीय नेता ही नहीं, दूसरे देशों के नेता भी पीछे नहीं हैं.
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जब संसद में रोए योगी आदित्यनाथ

वैसे अपने बेबाक बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहने वाले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी रोते हुए नजर आ चुके हैं. 2007 में लोकसभा में योगी जी इतना रोए कि लोकसभा स्पीकर को उनको चुप कराना पड़ा. योगी यूपी पुलिस की प्रताड़ना का जिक्र करते हुए फूट-फूटकर रोए. उनको रोते हुए पूरे देश ने देखा.

वैसे रोने के मामले में भारतीय नेता ही नहीं, दूसरे देशों के नेता भी पीछे नहीं हैं.
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रोने वालों में ओबामा भी

वैसे रोने के मामले में विदेशी नेता भी पीछे नहीं हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को कई बार मंच पर रोते हुए देखा गया है. ओबामा 2012 में व्हाइट हाउस में बंदूकों पर नियंत्रण लगाने से जुड़े एक कार्यक्रम में रो पड़े थे. उन्हें 20 बच्चों की मौत का मंजर याद आ गया था.

वैसे रोने के मामले में भारतीय नेता ही नहीं, दूसरे देशों के नेता भी पीछे नहीं हैं.

वैसे एक पुरानी कहावत है घड़ियाली आंसू बहाना. अब अपने नेता जी जो वक्त-बेवक्त मंच पर आंसू बहाने लगते हैं, वो उनका भावुक स्वभाव है या कोई राजनीतिक हथियार? इस बारे में तो हम कुछ नहीं कह सकते हैं. लेकिन इतना जरूर है कि आमतौर पर जब नेता भावुक होते हैं, तो उन्हें जनता का समर्थन मिलता है. शायद इसीलिए नेता इस हथियार का इस्तेमाल खूब करते हैं.

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