राजस्थान में सियासी आंधी हुई है और वहां की एक कद्दावर नेता खामोश हैं. ये चुप्पी चौंकाने वाली है. बीजेपी के तमाम नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच झगड़े पर अपनी राय दे रहे हैं लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया का न तो कोई बयान आया, न ही कोई ट्वीट. आखिर वजह क्या है?
वसुंधरा राजे सिंधिया इन दिनों क्या कर रही हैं? उनके ट्विटर अकाउंट पर दिख रहा है कि वो डॉ. रमेश पोखरियाल को जन्मदिन की बधाई दे रही हैं. आपको नहीं पता तो जान लीजिए कोई गाय प्रशंसा दिवस भी होता है, तो इस दिवस पर गौमाता की रक्षा का संकल्प लेने को कह रही हैं. राजस्थान से 1800 किलोमीटर दूर अपनी बहन के ससुराल वालों यानी त्रिपुरा के लोगों को केर पूजा की बधाई दे रही हैं. लेकिन दो चार दिन में उन्होंने एक बार भी अपने प्यारे प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान पर अपनी कोई राय नहीं दी.
ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी से कोई नहीं बोल रहा. जब एकदम साफ हो गया कि अब गहलोत और पायलट में पैचअप नहीं हो सकता तो बीजेपी की तरफ से बयान आने शुरू हो गए. प्रदेश अध्यक्ष पीएल पुनिया की बाछें ऐसी खिलीं कि दिल की बात कूदकर जुबां से गिर गई. कहा, पायलट अब बीजेपी में आ गए हैं. बाद में कहा- जुबां फिसल गई थी. चलिए माफी दी. लेकिन फिर उन्होंने कहा कि बीजेपी की कोशिश होगी कि गहलोत की सरकार बचने न पाए. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने भी फरमान सुनाया कि गहलोत सरकार अल्पमत में है. केंद्रीय मंत्री और राजस्थान बीजेपी के नेता गजेंद्र सिंह शेखावत ने लिख मारा कि बगावत के सुरों से साफ कि राजा के महल में बहुत घुटन है. और तो और दूसरे प्रदेश से वसुंधरा के भतीजे सिंधिया ने भी कह दिया कि पायलट पर बड़ा जुल्म हो रहा है जी, ये कांग्रेस है ही ऐसी...लेकिन तब भी वसुंधरा राजे ने कुछ नहीं कहा.
सचिन पायलट चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें सीएम बनाए. ये मांग पूरी न होने पर उन्होंने बगावत का रास्ता अख्तियार कर लिया. वो बार-बार कह रहे हैं कि बीजेपी में नहीं जा रहे , लेकिन अगर वो बीजेपी में जाते हैं तो किस शर्त पर जाएंगे. जाहिर है सीएम से कम पर नहीं मानेंगे. और अगर ऐसा हुआ तो सीएम के साथ ही किसकी गद्दी पर कब्जा करेंगे पायलट? कहीं यही चिंता वसुंधरा को तो नहीं सता रही? बस इसी सवाल में हो सकता है वसुंधरा की चुप्पी का जवाब.
ये भी याद रखना चाहिए कि कांग्रेस ने पायलट को साफ कर दिया है कि इस बार वो उनके टैंट्रम नहीं सहेगी. जाना है तो जाएं, वापस आना है तो आएं. लेकिन ऐसा लगता है कि पायलट दोराहे पर अटक गए हैं. बगावत की सड़क पर बहुत आने निकलने के बाद घर लौटना मुश्किल है, लेकिन आगे क्यों नहीं बढ़ते, क्यों कहते हैं कि बीजेपी में नहीं जाना. कहीं सिंधिया खेमे में असामान्य चुप्पी, उन्हें बैरिकेड का इशारा तो नहीं दे रही?
वैसे पार्टी में आते ही बीजेपी पायलट को सीएम बना दे, इसकी उम्मीद भी कम ही है, लेकिन कांग्रेस मुक्त भारत के महामिशन को पूरा करने के लिए परंपराएं तोड़ी जा सकती हैं. फिलहाल तो राजस्थान के 'जादूगर' ने जादुई आंकड़ा पकड़े रखने का जादू दिखाया है, लेकिन कल को अगर पायलट नंबर ले आएं, कुछ दिल्ली-कुछ जयपुर से ईंधन जुटाएं और सियासी फ्लाइट उड़ाएं तो हो सकता है बीजेपी आलाकमान उन्हें अपने रनवे पर लैंड कराए. और जब ऐसा होगा तो शायद ही सिंधिया कुछ कर पाएं क्योंकि आज बीजेपी में राजे-महाराजे भी अपने मन की बात नहीं कह पाते. बहरहाल वसुंधरा की चुप्पी को गहलोत खेमा अपने लिए अनुकूल और पायलट के लिए प्रतिकूल जरूर मान रहा होगा.
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