नारा चंद्रबाबू नायडू ने गुरुवार को वो काम करने का ऐलान कर दिया जो 2019 के चुनाव में पीएम मोदी की वापसी को पटरी से उतार सकता है.
आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू की दिल्ली में मुलाकातों की टाइमिंग बड़ी रोचक है. वो पहले शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला से मिले. फिर अकेले राहुल गांधी से मिले. लेकिन इन मुलाकातों में चारों ने विपक्ष को एकजुट करने के अभियान का ऐलान कर दिया.
नायडू ने कहा कि वो शरद पवार और फारूक सभी विपक्ष पार्टियों एकजुट करेंगे. राहुल ने कहा, देश को बीजेपी से मुकाबला करने के लिए हम सब साथ हैं.
तो क्या ये माना जाए कि राहुल गांधी, शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला से टीडीपी चीफ एन चंद्रबाबू नायडू मुलाकात नए यूपीए की शुरुआत है?
आंध्र के वरिष्ठ पत्रकार टी एस सुधीर द क्विंट के लिए लिखे एक लेख में कहते हैं '' आंध्र में नायडू ने कांग्रेस का अस्तित्व लगभग खत्म कर दिया है. यहां से उसका एक भी एमपी नहीं है. निकट भविष्य में भी उसे यहां पैर जमाने की उम्मीद नहीं दिखती. फिर कांग्रेस क्यों देश भर में मजबूत विपक्षी गठबंधन बनाने में चंद्रबाबू की मदद लेना चाहती है. दरअसल, कांग्रेस चंद्रबाबू के राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहती है.''
कांग्रेस जानती है कि नायडू बेहद चतुर राजनीतिज्ञ हैं और उन्हें राजनैतिक सौदेबाजी में महारत हासिल है. आंध्र में लोकसभा की 25 सीटें हैं. कांग्रेस के लिए इन 25 सीटों के मोह से ज्यादा बड़ा है राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन बनाने में नायडू की भूमिका का इस्तेमाल. वैसे भी कांग्रेस वहां इक्का-दुक्का सीटें ही जीत सकती है. नायडू को साथ लेने से बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन राजनीतिक तौर पर ज्यादा मजबूत होगा.
नायडू की क्षेत्रीय दलों की नब्ज पर पकड़
नायडू को 1996-98 में संयुक्त मोर्चे के संयोजक के तौर पर क्षेत्रीय राजनैतिक दलों से मिल कर काम करने का अच्छा अनुभव रहा है. कांग्रेस एक बार फिर नायडू को यह काम आउटसोर्स कर सकती है. टीडीपी चीफ ने अब अपना ज्यादा वक्त राष्ट्रीय राजनीति को देने का ऐलान किया है. गुरुवार को शरद पवार, राहुल गांधी और फारूक अब्दुल्ला से मुलाकात कर उन्होंने इसका सबूत दे दे दिया है. बीजेपी से दोस्ती तोड़ने के बाद नायडू अब पूरी तरह मोदी एंड पार्टी पर हमले की तैयारी में हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस को ही नायडू की जरूरत है. नायडू को भी कांग्रेस की जरूरत है. हाल में टीडीपी से राज्य सभा सांसद सीएम रमेश समेत पार्टी के कुछ अन्य नेताओं पर इनकम टैक्स छापे के बाद नायडू ने महसूस किया कि उनके नजदीकी और भी सांसदों को निशाना बनाया जा सकता है. ऐसे में इसे दिल्ली में मुद्दा बनाने के लिए नायडू को कांग्रेस की जरूरत पड़ेगी.
नायडू के सामने फिर आ सकता है पीएम बनने का मौका
राहुल से मुलाकात के बाद नायडू ने मिल कर विपक्षी एकता को मजबूत करने का जो ऐलान किया है, उससे उनकी केंद्रीय भूमिका बढ़ जाएगी और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी दावेदारी भी और मजबूत होगी. नायडू कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि किस तरह उन्होंने 1996-98 में पीएम बनने का ऑफर ठुकरा दिया है. दो दशक बाद नायडू के पास खुद को पीएम के दावेदार के तौर पर पेश करना का मौका फिर आ सकता है.
नायडू का इसमें अपना निजी स्वार्थ भी है. अगर वह केंद्र में एनडीए सरकार को हटाने में कामयाब रहते हैं तो राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका काफी अहम हो जाएगी और राज्य की कुर्सी वह अपने बेटे नर लोकेश को सौंप सकते हैं.
नायडू पार्टी समर्थकों को कांग्रेस से गठबंधन के बारे में यह कह कर आश्वस्त कर सकते हैं कि कांग्रेस सत्ता में आई तो राज्य को स्पेशल दर्जा मिल सकता है. क्योंकि राहुल ने आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया है. 2014 में भी नायडू ने अपने समर्थकों को यह कह आश्वस्त किया था कि बीजेपी ने राज्य को पांच साल के लिए नहीं बल्कि दस साल तक विशेष दर्जा देने का ऐलान किया है.
साफ है कि कांग्रेस और नायडू साथ मिल कर विपक्ष की किलेबंदी और मजबूत करना चाहते हैं. दोनों को एक दूसरे की ताकत का अंदाजा है और दोनों जमीनी हकीकत की बुनियाद पर अपनी स्ट्रेटजी तैयार कर रहे हैं.
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