बीजेपी में नरेंद्र मोदी-अमित शाह युग के उदय के साथ एनडीए में एक अलग किस्म की राजनीति देखने को मिल रही है. सहयोगी पार्टियां अब शंका भरी नजरों से बीजेपी को देखती हैं. बीजेपी पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अपनी सहयोगियों को पनपने नहीं देती.
मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश में अपना दल की अनुप्रिया पटेल को ही लीजिए. लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने बीजेपी आलाकमान को बागी तेवर दिखाए तो उसका खामियाजा उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है. पहले अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर किया गया और अब उनके पति आशीष सिंह योगी सरकार में जगह बना पाने में नाकाम रहे.
कैबिनेट मंत्री के दावेदारों में शामिल थे आशीष सिंह
पिछले लंबे समय से ये कयास लगाए जा रहे थे कि अपना दल के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष सिंह पटेल को योगी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा. इसी के मद्देनजर आशीष सिंह को एमएलसी बनाया गया, ताकि मंत्रिमंडल का दरवाजा उनके लिए खोला जा सके. तैयारी पूरी थी, बस देर थी तो मंत्रिमंडल विस्तार की. समर्थक भी आशीष सिंह को लगातार बधाई दे रहे थे, लेकिन 21 अगस्त को शपथ ग्रहण के पहले जब मंत्रियों की सूची सामने आई, तो हर कोई हैरान रह गया.
अनुप्रिया पटेल के पति आशीष सिंह का नाम गायब था, जबकि अनुप्रिया पटेल के केंद्र में मंत्री नहीं बनने की सूरत में ये तय हुआ था कि आशीष सिंह को योगी कैबिनेट में जगह दी जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अनुप्रिया के बाद बीजेपी ने उनके पति को भी गच्चा दे दिया. इसके साथ ही ये सवाल उठने लगे कि क्या बीजेपी ने अब अपना दल को भी नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है ? क्या अनुप्रिया पटेल के पर कतरने की तैयारी की जा रही है ?
अनुप्रिया पटेल परिवार को किस बात की मिल रही है सजा ?
मोदी सरकार पार्ट-1 में अनुप्रिया पटेल की गिनती भरोसेमंद सहयोगियों में होती थी. अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार की सबसे युवा मंत्री थीं और उन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री का ओहदा हासिल था. चार साल तक दोनों ही पार्टियों के बीच बेहतर रिश्ते रहे. लेकिन लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अनुप्रिया पटेल ने बागी रुख अख्तियार कर लिया. सीटों के बंटवारे को लेकर उन्होंने बीजेपी आलाकमान को आंखें दिखाना शुरू कर दिया. खबरें तो यहां तक आईं कि उन्होंने प्रियंका गांधी से भी मुलाकात की थी.
ये वही दौर था जब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर ने खुलेआम बीजेपी के खिलाफ बगावत छेड़ दी थी. हालांकि अनुप्रिया ने मौका और माहौल देख, यू टर्न ले लिया और फिर से बीजेपी की भाषा बोलने लगी.
लेकिन वो शायद बीजेपी की नजरों में चढ़ चुकी थीं. वक्त की नजाकत को देख बीजेपी नेताओं ने उस वक्त तो चुप्पी साधे रखी, लेकिन चुनाव के नतीजे आते ही उन्होंने अनुप्रिया पटेल को टारगेट करना शुरू कर दिया. दूसरे शब्दों में कहें तो उनसे बदला लेने की शुरुआत हो गई.
कहते हैं कि अनुप्रिया पटेल केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का दर्जा चाहती थीं, लेकिन अमित शाह ने उनकी मांग को सिरे से खारिज कर दिया.
इस वाकये से अनुप्रिया पटेल बेहद गुस्से में थीं. पर बीजेपी की ताकत के आगे उन्होंने खुद को लाचार पाया, लिहाजा चाहकर भी वो कुछ कर पाने स्थिति में नहीं थी. केंद्रीय नेतृत्व से नाउम्मीदी के बाद उन्हें ये आस थी कि शायद उनके पति आशीष सिंह को प्रदेश सरकार में जगह मिले.
बीजेपी के मंसूबों से बेपरवाह अनुप्रिया पटेल पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुट गईं. सदस्यता अभियान की शुरुआत की और यूपी में पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने का ब्लूप्रिंट तैयार कर रही थी लेकिन तभी बीजेपी ने उन्हें झटका दे दिया.
योगी सरकार ने आशीष सिंह को मंत्रिमंडल में जगह ना देकर अपने इरादे साफ जता दिए. ऐसे हालात में बीजेपी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की तरह अनुप्रिया पटेल को भी राजनीति के उस दोराहे पर ला खड़ा किया, जहां एक ओर कुंआ है तो दूसरी ओर खाई. अनुप्रिया पटेल ये बखूबी जानती है कि मौजूदा दौर में बीजेपी की ताकत से लड़ पाना उनके लिए आसान नहीं होगा. अगर सत्ता से बाहर जाते हैं तो पार्टी को मजबूत कर पाना मुश्किल होगा.
कुर्मी वोट के खेल में कौन मारेगा बाजी ?
आशीष पटेल को मंत्रिमंडल में नहीं शामिल करने के पीछे उनकी पत्नी अनुप्रिया पटेल का बड़बोलापन या फिर उनके बागी तेवर ही नहीं है. यूपी की सियासी बिसात पर नजर डाले तो इसकी कई और वजहें भी मालूम पड़ेंगीं.
बीजेपी आलाकमान अगर यूपी में अपनी एकमात्र सहयोगी पार्टी को नाराज करने का जोखिम मोल ले रही है तो जाहिर सी बात है इसके पीछे कोई न कोई बड़ी वजह होगी.
जानकार बता रहे हैं यूपी के मजबूत कुर्मी वोटबैंक को पूरी तरह अपने कब्जे में लेना चाहती है. उसकी इस कोशिश में सबसे बड़ा कांटा, इस वक्त अनुप्रिया पटेल हैं जो खुद को कुर्मियों का सबसे बड़ा नेता मानती हैं.
बीजेपी जानती है कि अगर अनुप्रिया पटेल और उनका परिवार मजबूत हुआ तो उसकी कोशिश परवान नहीं चढ़ेगी. लिहाजा, उसने अनुप्रिया पटेल को भाव देना बंद कर दिया है. वैसे भी बीजेपी पिछड़ी जाति के नेताओं को आगे बढ़ा रही है. कुर्मियों को साधने के लिए उसने स्वतंत्र देव सिंह को यूपी की कमान सौंप दी तो वहीं आनंदीबेन पटेल को गवर्नर बना दिया. केशव प्रसाद मौर्य पहले से ही डिप्टी सीएम हैं.
अनुप्रिया पटेल को किस बात का है डर?
बीजेपी के तेवर को देख अगर अनुप्रिया पटेल ने चुप्पी साध रखी है तो उसके पीछे की वजह भी है. इसके लिए यूपी में उनकी पार्टी की स्थिति को समझना जरूरी है.
- लोकसभा में अपना दल के दो सांसद हैं. मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल सांसद हैं तो सोनभद्र से पकौड़ी लाल कोल हैं.
- विधानसभा में अपना दल के कुल 9 विधायक हैं.
- अपना दल के विधायक जय कुमार सिंह जैकी योगी मंत्रिमंडल में शामिल हैं.
अनुप्रिया पटेल बीजेपी के मौजूदा ट्रैक रिकॉर्ड को लेकर डरी हुई हैं. उन्हें इस बात का डर है कि अगर उन्होंने बीजेपी के खिलाफ बगावती रुख दिखाया तो उनकी पार्टी में फूट पड़ सकती है. क्योंकि उन्हें इस बात का इल्म है कि जो पार्टी कांग्रेस को तोड़ सकती है, उसके लिए अपना दल की क्या बिसात.
वैसे भी 2014 में अपना दल में दो फाड़ हो चुके हैं. प्रतापगढ़ से सांसद कुंवर हरिवंश बहादुर सिंह अनुप्रिया पटेल से अलग हो गए थे. यही नहीं बीजेपी अनुप्रिया पटेल को उनके ही घर में घेरने में जुटी है. बीजेपी ने मिर्जापुर के मड़िहान से विधायक रमाशंकर पटेल को मंत्री बनाकर, अनुप्रिया पटेल को चिढ़ाने का काम किया है.
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