चुनाव आयोग (Election Commission of India) ने रिमोट वोटिंग मशीन (RVM) की घोषणा की है जिसके चलते चुनावी राज्य के लोग दूसरे राज्यों में रहते हुए भी वोट दे पाएंगे. 28 दिसंबर, 2022 को आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को एक पत्र में रिमोट वोटिंग मशीन (Remote Voting Machine) की जानकारी दी और कहा कि 16 जनवरी को इसके इस्तेमाल पर प्रदर्शनी रखी गई है जहां इसका लाइव डेमो दिखाया जाएगा. लेकिन क्या है आरवीएम (RVM)?
RVM भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की तरह ही होगी. यह इसका एक मोडिफाइड वर्जन है. इससे डॉमेस्टिक माइग्रेंट (यानी वे जो लोग जिनके पहचना पत्र में किसी और राज्य का नाम है लेकिन वे काम या अन्य कारणों की वजह से किसी दूसरे राज्य में रहते हैं) को वोट करने में आसानी होगी. उदाहरण के लिए अगर आप मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन आप काम/पढ़ाई या किसी अन्य वजह से उत्तर प्रदेश में रहते हैं तो मध्य प्रदेश के चुनाव के लिए वोट आप यूपी में बैठ कर भी दे पाएंगे. इसी को मुमकीन बनाने का काम रिमोट ईवीएम करेगा. क्या है आरवीएम की खासियत?
आरवीएम एक पोलिंग स्टेशन से 72 निर्वाचन क्षेत्रों को नियंत्रित कर पाएगा. इसके निर्माण का काम एक पब्लिक सेक्टर कंपनी के पास ही होगा. लेकिन RVM की जरूरत क्यों पड़ी?
पिछले तीन आम चुनावों के वोटिंग पर्सेंट पर नजर डालें तो केवल एक तिहाई वोटरों ने ही वोट डाला है. चुनाव आयोग ने यही चिंता जताई की वोटिंग पर्सेंट बढ़ नहीं रहा है. 2019 के आम चुनाव में 91 करोड़ से ज्यादा वोटरों में से 67.4% ने ही वोट किया था. 2014 के आम चुनाव में वोटिंग पर्सेंट 66.4% था और 2009 के चुनाव में यह 58.2% था. चुनाव आयोग ने बताया कि, 30 करोड़ वोटर अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. चुनाव आयोग ने ऐसा न होने की मुख्य वजह क्या बताई?
चुनाव आयोग के अनुसार, इसका एक कारण आंतरिक पलायन था यानी किसी कारण जब कोई अपने राज्य से किसी अन्य राज्य में पलायन कर जाए. आयोग ने बताया कि वोटर चाहें तो जिस राज्य में वे जाते हैं अपना वोटर आई़डी उस राज्य का बनवा सकते हैं लेकिन अधिकतर वोटर ऐसा नहीं करते. ऐसे में 2015 में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि वे रिमोट वोटिंग के विकल्प पर विचार करे. 2011 की जनगणना के मुताबिक 45.36 करोड़ भारतीय या 37% आबादी "प्रवासी" हैं और इनमें से 75% प्रवासी शादी या परिवार से संबंधित अन्य कारणों से अपना राज्य छोड़ते हैं. RVM को लेकर चुनाव आयोग के सामने क्या क्या चुनौतियां हैं?
चुनाव आयोग ने खुद ही प्रशासनिक, कानूनी और तकनीकी चुनौतियां की पहचान की है. इसके अनुसार पोलिंग बूथ को लेकर, प्रवासी कौन कहलाएंगे, साथ ही कुछ नियमों में बदलाव और कानूनों में संशोधन की जरूरत पड़ेगी. इसके अलावा रिमोट वोटिंग के तरीके और गिनती को लेकर आयोग के सामने चुनौती होगी. लेकिन क्या चुनाव आयोग किमोट वोटिंग की प्रक्रिया को सुरक्षित रख पाएगा?
आयोग के अनुसार, आरवीएम भी ईवीएम की तरह ही है, यह किसी इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होगी. आरवीएम को सेट करने के लिए लैपटॉप का इस्तेमाल होगा. इंडियन एक्सप्रेस ने चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से बताया कि वह लैपटॉप इंटरनेट से कनेक्ट नहीं रहेगा जो आरवीएम को राजनीतिक दलों के चुनावी चिन्हों से लोड करेगा. साथ ही इन चिन्हों को लोड करते वक्त हर पार्टी का एक प्रतिनिधि मौके पर मौजूद होगा. फिर आरवीएम पर विपक्ष किन सवालों को लेकर चिंता में है?
कांग्रेस ने इस पर ऐतराज जताया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लेटर जारी कर चुनावी प्रणाली में विश्वास बहाल करने की मांग की है.
आरजेडी, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सहित कई दलों का कहना है, वे इस मुद्दे की विस्तार से जांच करने के बाद कड़ा रुख अपनाएंगे. समाजवादी पार्टी का कहना है, पोल पैनल को पहले ईवीएम के दुरुपयोग के बारे में विपक्ष के सवालों का जवाब देना होगा.
डीएमके राज्यसभा सांसद पी विल्सन का कहना है, चुनाव आयोग के पास मौजूदा कानून में संशोधन किए बिना इस तरह का प्रोटोटाइप लागू करने का अधिकार नहीं है. नए तरीके से फर्जी मतदान होगा और निष्पक्ष वोटिंग की प्रक्रिया पर असर पड़ेगा.
टीएमसी के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रे ने अपने ट्वीट में लिखा, वीवीपैट सिस्टम पारदर्शी साबित नहीं हो पाया. इसे जबरदस्ती थोपा गया और जिस उद्देश्य से लागू किया गया तो विफल हो गया. अब प्रवासियों को उनके वर्तमान स्थान से मतदान करने के लिए नया तरीका अपनाया जा रहा है. कोई भी तर्क इस बात का समर्थन नहीं कर सकता.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)