नासिक की ये घटना किसी हिंदी फिल्म की कहानी से कम अनोखी नहीं है. एक बेटे को 16 साल पहले लापता हुए अपने पिता के बारे में तब जानकारी मिली, जब पुलिस ने खबर दी, कि उनका शव बरामद हुआ है. खास बात ये है कि घर छोड़ने के बाद से वो शख्स अपने घर से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर ही सड़क में रहकर जिंदा रहा, लेकिन इस दौरान उसके परिवार को उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नासिक के रहने वाले 42 वर्षीय हीरामन बाचकर ने 16 साल पहले अपने पिता प्रह्लाद बाचकर को आखिरी बार देखा था. तब से वे लापता थे. परिवार इस बात से अनजान था कि वे अपने घर से महज 20 किलोमीटर दूर एक सड़क पर रहते थे. बीते 21 जनवरी को हीरामन ने आखिरकार अपने पिता प्रह्लाद को देखा, लेकिन एक शव के तौर पर.
हीरामन ने कहा की ये एक संयोग की बात है कि वह अपने पिता को मृत मानकर उनका श्राद्ध संस्कार करवाने की योजना बना रहे थे, जब उन्हें एक पुलिस कॉन्स्टेबल का फोन आया. पुलिस ने उन्हें बताया कि एक शव बरामद हुआ है और यह उनके पिता का हो सकता है. हीरामन ने कहा वह कभी सोच भी नहीं सकता था कि उसके पिता इतने करीब रहते थे.
नशे की लत ने बर्बाद किया खुशहाल घर
मृतक प्रह्लाद की उम्र इस वक्त 65 वर्ष होती. साल 1986 की बात है. तब बेटे हीरामन की उम्र 8 साल थी. शराब पीने की अपनी लत की वजह से अपनी पत्नी के साथ झगड़ा करने के बाद एक दिन प्रह्लाद ने घर छोड़ दिया. मृतक की पत्नी सुमन के मुताबिक सतपुर में उसका ईंट बनाने का भट्टा और वेल्डिंग का कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन नशे की लत की वजह से प्रह्लाद ने अपने ये दोनों कारोबार और एक बड़ी जमीन को बेच दिया और घर छोड़कर चला गया. हालांकि इसके बाद परिवार ने पुलिस में उसके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई. परिवार इसके बाद वहां से ओजर नाम के गांव में आकर बस गया, जो नासिक से 20 किलोमीटर दूर है.
2004 तक कभी-कभी घर आता था प्रह्लाद
सुमन ने बताया, “उसने काम करना बंद कर दिया था, क्योंकि वह हमेशा नशे में रहता था. मैं अपने बेटे और दो बेटियों को भूखा नहीं छोड़ सकती थी, इसलिए मैंने उनका पेट भरने के लिए ओजर बाजार में सब्जियां बेचनी शुरू कर दी. कभी कभी मेरे पति घर आते थे, और शराब खरीदने के लिए मेरी कमाई के पैसे छीन ले जाते थे.
सुमन ने कहा कि जब प्रह्लाद वापस नहीं लौटा तो उसने उसकी तलाश की, लेकिन उसने अपनी रोजी-रोटी कमाने पर ज्यादा ध्यान दिया ताकि वह अपने बच्चों को खिला सके.
आखिरी बार प्रह्लाद 2004 में एक बार लौटा. कुछ दिनों के लिए घर पर रहा, और उसके बाद एक बार फिर अचानक वहां से चला गया. एक हफ्ते तक बेटे हिरामन ने नासिक में उसकी तलाश की. लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला.
शव की जेब में मिले कागज से हुई पहचान
21 जनवरी को नासिक के लक्ष्मण नगर इलाके में राहगीरों ने एक लावारिस शव के बारे में पुलिस को खबर दी. पचवटी पुलिस के कॉन्स्टेबल अरुण गायकवाड़ और आनंद्य चौधरी मौके पर पहुंचे. गायकवाड़ ने कहा, “हमें शव की जेब में दो दस्तावेज मिले. एक नासिक सिविल अस्पताल की डिस्चार्ज रसीद थी, जिस पर उसका नाम लिखा था, और दूसरे पर एक फोन नंबर था''. जब पुलिस वालों ने फोन नंबर पर कॉल किया, तो वो प्रह्लाद के एक रिश्तेदार का नंबर निकला, जिसके जरिए पुलिस ने आखिरकार उसके बेटे हीरामन को सूचना दी. हीरामन ने कहा कि पुलिस ने उन्हें शव की एक तस्वीर भेजी. उन्होंने कहा, "मैं उन्हें पहचान नहीं सका लेकिन मेरी मां ने पुष्टि की, कि वह मेरे पिता थे. हम सिविल अस्पताल गए और उनके शव को घर ले आए."
पुलिस के मुताबिक इतने सालों तक प्रह्लाद भीख मांगकर और छोटी-मोटी मजदूरी करके सड़क किनारे रहकर जिंदा रहा.
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