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आगरा मनरेगा घोटाला: सालों फर्जी जॉब कार्ड के जरिए निकलता रहा पैसा

मनरेगा उपायुक्त अमरेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि पहली नजर में रोजगार सेवक दोषी लग रहे हैं.

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सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी का नया माला आगरा जिला की ग्राम पंचायत 'महुअर' है. जहां रोजगार सेवक ने मनरेगा (MNREGA) योजना में अपनी पत्नी, मां, चाचा समेत करीबी लोगों को जॉब कार्ड पर मनरेगा का मजदूर दिखाया है. समाजसेवी नरेश कुमार पारस का दावा है कि रोजगार सेवक ने मजदूर दिखाए गए रिश्तेदारों के जॉब कार्ड बनाकर सरकारी धन का दुरुपयोग किया है. उन्होंने इस घोटाले (Scam) का खुलासे का दावा करते हुए आगरा के ज़िलाधिकारी से लिखित शिकायत में निष्पक्ष जांच की मांग की. जबकि आगरा के मनरेगा डीसी ने स्वीकार किया कि रोजगार सेवक दोषी है.

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क्या है पूरा मामला?

आगरा के मशहूर समाजसेवी नरेश कुमार पारस ने 29 जून को आगरा के डीएम को लिखित शिकायत की. जिसके अनुसार आगरा जिले के अछनेरा विकास खंड में स्थित ग्राम पंचायत 'महुअर' के पाली सदर गांव के रोजगार सेवक आलोक दीक्षित ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने परिजनों सहित रिश्तेदारों और करीबी लोगों को मनरेगा योजना के तहत मजदूर दिखाया. उनके नाम से जॉब कार्ड बनाए और पैसा निकाला. यह फर्जीवाड़ा कई सालों से चल रहा है.

क्या है रोजगार सेवक का पद?

मनरेगा के अंतर्गत संविदा के आधार पर ग्राम रोजगार सेवकों की भर्ती होती है. जो पंचायत स्‍तर पर काम करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा योजना को अच्‍छे से चलाने की जिम्‍मेदारी इन्‍हीं के कंधों पर होती है. ये मनरेगा के तहत लोगों को रोजगार तो उपलब्ध कराते हैं, साथ ही उन मजदूर के कामों की मॉनिटरिंग भी करते हैं. इनको 6000 रुपये हर महीना वेतन मिलता है.

शिकायतकर्ता नरेश कुमार पारस ने बताया कि "रोजगार सेवक आलोक दीक्षित ने अपनी माता, चाचा सहित पांच चचेरे भाई के नाम पर जॉब कार्ड बनाए. एक कार्ड को देख कर हैरत हुई जिसमें ऊपर उनकी माता का नाम था तो नीचे उनकी पत्नी का नाम. एक अन्य कार्ड में ऊपर चाचा का नाम था तो नीचे चचेरे भाई का नाम दिख रखा था.''

नरेश कुमार पारस ने आगे कहा कि 'मनरेगा में होता ये है कि रोजगार सेवक अपनी मर्जी से परिवार के लोगों के नाम मनरेगा में दर्ज कर लेते हैं. ऐसे लोगों के बैंक अकाउंट वो अपने नियंत्रण में रखते हैं. पैसा जब आता है तो उसको रोजगार सेवक ले लेते हैं. जबकि कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें पैसा खाता में आने के बाद रोजगार सेवक उस रकम का कुछ पर्सेंट अकाउंट होल्डर को दे देते हैं. जबकि बाकी रकम वह खुद रख लेते हैं. यह सीधे तौर पर जहां सरकारी धन का दुरुपयोग है तो वहीं गरीब के हक पर डाका है. अगर ये काम जरूरतमंद को मिलता तो उसको कुछ कमाई हो जाती और गांव का विकास भी हो जाता.'

'तीन साल से चल रहा है ये फर्जीवाड़ा'

नरेश कुमार पारस ने आगे कहा कि 'महुअर पंचायत में ऐसे फर्जीवाड़ा के मामले तीन साल से हो रहे हैं. मेरी जानकारी में 61 लोगों के नाम सामने आए हैं जिनके नाम से फर्ज़ीवाड़ा किया गया. मैंने डीएम साहब को लिखित शिकायत तमाम सुबूत के साथ दिए हैं जो फर्जीवाड़ा का खुलासा करते हैं. इन सुबूतों में जॉब कार्ड और वोटर लिस्ट उपलब्ध कराया गया है, जिसमें रोजगार सेवक के रिश्ते का उल्लेख है. ऐसे फर्जीवाड़ा में रोजगार सेवक के अलावा ग्राम पंचायत और ग्राम सचिव की मिलीभगत रहती है. इसलिए मैंने आगरा के डीएम से अनुरोध किया है कि इस मामले की जांच टीम गठित करके होनी चाहिए. साथ ही उस पैसे की रिकवरी भी कराई जानी चाहिए जो घोटाला करने वालों ने हजम किए. क्योंकि यह पैसा हम सभी के टैक्स का है जिसका हकदार गरीब था. अगर यहां सख्त कार्रवाई होती है तो समझ लीजिए दूसरे गांव में भी इस तरह के मामलों पर विराम लगेगा, मेरी जानकारी में आगरा की दूसरी पंचायत में भी ऐसे फर्ज़ीवाड़े चल रहे हैं.'

आरोपी का क्या कहना है?

आरोपी रोजगार सेवक आलोक दीक्षित ने कहा कि जो आरोप लगे हैं वह राजनीति का हिस्सा है. कुछ लोग जलते हैं इसलिए इस तरह के आरोप लगे हैं. दीक्षित का कहना है, 'बस मुद्दा बनाया जा रहा है. रही बात काम कराने की तो कोई भी काम कर सकता है. मेरी पत्नी, माता और चाचा क्यों नहीं करेंगे?'

क्विंट ने जब पूछा कि बस इतना बता दीजिए कि अपनी माता, पत्नी और चाचा से क्या काम कराया? इस सवाल को सुनकर रोजगार सेवक ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी.

मनरेगा उपायुक्त अमरेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि पहली नजर में रोजगार सेवक दोषी लग रहे हैं.

मैंने इस शिकायत की जांच की तो पाया कि पाली गांव के से जिन नामों को इन्होंने जॉब कार्ड में डाला है उनको बिना काम किए भुगतान किया गया है.
अमरेंद्र प्रताप सिंह

उपायुक्त का कहना है कि आरोपी रोजगार सेवक को कारण बताओ नोटिस दिया जाएगा ताकि उसे भी अपनी बात रखने का मौका मिल सके.

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