पश्चिम गोदावरी जिला मुख्यालय एलुरु में रहस्यमयी बीमारी के फैलने के पीछे कारण कीटनाशक के अवशेष थे. राज्य सरकार ने अपने बयान में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) और अन्य संगठनों के हवाले से यह बात कही है. इसमें कहा गया है, “विशेषज्ञों ने कहा है कि यह समझने के लिए दीर्घकालिक अध्ययन की जरूरत है कि कीटनाशकों के इन अवशेषों ने मानव शरीर में कैसे प्रवेश किया.”
मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी ने रहस्यमयी बीमारी को लेकर विशेषज्ञों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कॉन्फ्रेंस में एम्स दिल्ली, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (IICT), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशियन (NIC), सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी (CCMB), नेशनल एनवायरन्मेंटल इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI), नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने अपनी-अपनी जांच पेश की.
एम्स दिल्ली के विशेषज्ञों ने बताया कि बीमार लोगों के ब्लड सैंपल में लेड और निकल जैसे हेवी मेटल मिले हैं. वहीं, NEERI के वैज्ञानिकों ने कहा कि पानी में लिमिट से ज्यादा मरकरी मिली है. इन दोनों समेत कई इंस्टीट्यूट ने कहा कि पानी के पानी में ऑर्गैनो-क्लोराइन कीटनाशक की बड़ी मात्रा मिली है, जो किसी तरह लोगों के शरीर में पहुंची है.
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को पश्चिम गोदावरी के सभी जिलों में सभी स्रोतों से पीने के पानी के नमूने लेने और उनका परीक्षण करने के भी निर्देश दिए. उन्होंने कहा है,
“नमूनों को व्यवस्थित रूप से इकट्ठा करके विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में उनका विश्लेषण किया जाना चाहिए. एम्स और आईआईसीटी को एलुरु में प्रकोप के कारणों पर दीर्घकालिक अध्ययन करना चाहिए. मैंने मुख्य सचिव से इसके लिए एक कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा है.”
रेड्डी ने यह भी कहा कि जैविक खेती को प्रोत्साहित करना चाहिए और किसानों में इसके लिए जागरूकता पैदा करनी चाहिए. आंध्र प्रदेश के एलुरू में पिछले हफ्ते इस बीमारी से 400 से ज्यादा लोग बीमार पड़ गए थे.
(IANS के इनपुट्स के साथ)
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