कोरोना महामारी में जान जोखिम में डालकर ASHA सेविकाओं ने अपनी ड्यूटी पूरी की. लेकिन वेतन नहीं बढ़ने के कारण महाराष्ट्र में हजारों ASHA सेविकाओं हड़ताल ओर चली गई है. मंगलवार 15 जून से राज्य में करीब 70,000 ASHA सेविकाओं ने अनिश्चित काल तक हड़ताल का ऐलान किया है. लगातार मांग करने के बाद भी सरकार से कोई कदम ना उठाए जाने पर ASHA सेविकाओं की शिखर संगठन ने हड़ताल का फैसला किया है.
सरकार के रुख से नाराज हैं आशा कार्यकर्ता
कोल्हापुर की ज्योति बागेवाड़ी ने कोरोना काल में घर-घर जाकर लोगो की मदद की. लेकिन कुछ महीनों बाद वो और उनका परिवार कोरोना के चपेट में आ गया. उनकी मां की हालत इतनी खराब हुई कि आखिरकार उन्हेंने इलाज के दौरान एक निजी अस्पताल में दम तोड़ दिया. वो बताती हैं कि,
“इलाज के लिए उन्हें करीब 6 लाख का खर्चा आया. उन्होंने अपने गहने गिरवी रख कर अस्पताल का बिल चुकाया. सब होने के बाद उन्हें सरकार की तरफ से सिर्फ 60 हजार का मुआवजा मिला.”
आशा वर्कर संगठन की को-ऑर्डिनेटर नेत्रदीप पाटिल बताती हैं कि, 'ASHA सेविकाओं को कई अजीब अनुभवों का सामना करना पड़ता है. कभी उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया जाता तो कभी घर-परिवार से भी दूर किया जाता है. लोगों की सेवा में जुटीं इन सेविकाओं को कोई सुरक्षा नही मिलती',
महीने भर काम करने के बाद मिलता है कम वेतन
बता दें कि आशा सेविकाओं को महीने का सिर्फ 1650 रुपये का वेतन मिलता है. नियमों के मुताबिक उन्हें 5 घंटे काम करना होता है. लेकिन कोरोना की ड्यूटी की वजह से वो 10 से 12 घंटे तक काम कर रही हैं. पिछले साल राज्य सरकार ने उन्हें पगार बढ़ाने का आश्वासन दिया. प्रति महीना 4000 रुपये का वेतन तय हुआ था.
वेतन बढ़ाने का वादा नहीं हुआ पूरा
वेतन बढ़ाने का आश्वासन सरकार ने पूरा नहीं किया. लेकिन पहले का वेतन भी समय से नहीं मिलने के कारण आशा सेविकाओं में असंतोष है. ऐसे में अब सभी संगठनों ने मिलकर अनिश्चित काल तक राज्यव्यापी हड़ताल का निर्णय लिया. जब तक मांगे पूरी नही होती तब तक हड़ताल जारी रखने की चेतावनी ASHA सेविका कृति समिति के अध्यक्ष एमए पाटिल ने दी है.
पिछले हफ्ते महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने आशा सेविकाओं के साथ एक वर्चुअल मीटिंग की थी. इस बैठक में उद्धव ने हाथ जोड़कर सेविकाओं के प्रति आभार व्यक्त किया. सभी ASHA सेविकाओं को कोरोना काल का असली हीरो बताया. लेकिन उसके बावजूद स्वास्थ्य सुविधा, बेसिक सैलरी, बीमा कवच और कोरोना से सुरक्षा के लिए पीपीई किट - सैनिटाइजर जैसी मूलभूत सेवाएं भी नही उन्हें नहीं मिल रहीं.
हालांकि कृति समिति के प्रतिनिधिमंडल ने स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे और डिप्टी सीएम अजित पवार को कल मांगों का निवेदन दिया है. सरकार की तरफ से मांगों पर विचार करके जल्द ही इस पर हल निकालने के आश्वासन दिया गया है.
क्या हैं मांगे?
- कोरोना काल मे केंद्र सरकार से प्रति दिन 33 रुपये के हिसाब से लगभग 1000 रुपये महीना मिलता है. उसे बढाकर 300 रुपये प्रति दिन किया जाए.
- ASHA सेविका और गट प्रवर्तकों के लिए हर जिले में बीएड आरक्षित हो.
- करीब 3 हजार से ज्यादा ASHA सेविका और उनके परिवार को कोरोना संक्रमण हुआ. लेकिन सरकार की तरफ से कोई बीमा या स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिली. बीमा की मांग.
- कई ASHA सेविकाओं के और उनके पेवर सदस्य की कोरोना से मौत हुई. लेकिन कोई मदद नहीं मिली. मुआवजे की मांग
- 5 घंटे की ड्यूटी 10 से 12 घंटे करने पड़ती है. इसीलिये ड्यूटी टाइमिंग के नियमों का सख्ती से पालन हो.
बता दें कि आशा सेविकाओं पर स्वास्थ्य से जुड़े कुल 72 प्रोग्राम्स की जिम्मेदारी है. अन्य कामों में गर्भवती महिलाओं की प्रसूति से पहले और बाद में देखभाल, बच्चों के लिए टीकाकरण अभियान, रोग निगरानी के लिए जनसंख्या आधारित जांच भी शामिल हैं. आशा वर्कर्स का नेटवर्क ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की बुनियाद है.
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