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बिहार: ट्रांसवुमन वीरा यादव बनीं मिसाल, लेकिन समाज ने किया फेल

बिहार: मिसाल बन चुकीं LGBTQ समुदाय की वीरा यादव को क्यों मिलने लगे ताने?

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

साल 2017 में बिहार की राजधानी पटना में बिहार सरकार की कला और संस्कृति विभाग ने ‘किन्नर सांस्कृतिक महोत्सव’ का आयोजन किया. किन्नर महोत्सव का ये दूसरा साल था. महोत्सव की शुरुआत 'वीरा- द अनटोल्ड स्टोरी' डॉक्यूमेंट्री से हुई. ये डॉक्यूमेंट्री ट्रांसजेंडर वीरा की जिंदगी पर बनी है.

वीरा की कहानी कई ट्रांसजेंडर्स और समाज के लिए एक मिसाल के तौर पर उभरी. लेकिन समाज, सरकारों ने उन्हें फेल कर दिया.

बिहार के वैशाली जिले की वीरा ने ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई अपने पुरुष पहचान के साथ की. उन्होंने क्विंट से बातचीत में बताया- “ग्रैजुएशन के बाद मैंने सोचा की अपनी ट्रांसजेंडर पहचान के साथ दुनिया के सामने आऊं. लेकिन लोगों के रवैये ने मेरे परिवार को परेशान किया जिसके बाद मैं घर छोड़ इटारसी(मध्य प्रदेश) चली गई. वहां ट्रांसजेंडर्स के साथ ट्रेन में भीख मांगकर गुजारा किया.”

लेकिन वीरा इस काम से खुश नहीं थीं. वो बिहार वापस आईं और साल 2016 में पटना यूनिवर्सिटी में ट्रांसजेंडर पहचान के साथ आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया.

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दे चुका था.
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वीरा ने साल 2018 में मास्टर्स इन सोशल वर्क की पढ़ाई पूरी की. उन्हें उम्मीद थी कि वो अपनी जिंदगी बदलने के साथ-साथ ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए भी कुछ बदलाव ला पाएंगी. लेकिन आज वो बिना नौकरी, पटना में एक 12 X10 के कमरे में रहती हैं, जिसका किराया देना भी उनके लिए मुश्किल है.

वीरा का कहना है कि उनका आगे बढ़ना आज उनके लिए अभिशाप बन गया है. तंगहाली की वजह से अब भी बस स्टैंड पर भीख मांगनी पड़ती है. क्वॉलिफिकेशन के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई है. जिस ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए वो मिसाल बनतीं, उनसे ही ताने मिलते हैं कि “तुमने पढ़ाई करके क्या हासिल कर लिया?”

“सप्रीम कोर्ट ने जजमेंट दे दिया है, लेकिन अभी तक सरकारी नौकरी के फॉर्म में ट्रांसजेंडर के लिए कॉलम नहीं होता है. कई नौकरी के लिए मैं अप्लाई नहीं कर पाती हूं. मेरे साथ पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को नौकरी मिल चुकी है.”
वीरा यादव
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वीरा ने पटना हाईकोर्ट में COVID-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान ट्रांसजेंडर समुदाय की बदहाल स्थिति को लेकर एक याचिका दायर की थी. समुदाय के लोगों को वित्तीय मदद देने की मांग की गई थी. कोर्ट ने याचिका के आधार पर बिहार सरकार को नोटिस जारी किया था.

वो ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए बिहार में काम करने वाले NGO ‘दोस्ताना सफर’ के साथ भी बतौर वॉलंटियर जुड़ीं. बिहार सरकार के शराबंदी अभियान, दहेज के खिलाफ अभियान से जुड़कर जागरुकता फैलाने का काम किया.

लेकिन वीरा का कहना है कि सरकार ने भी उन्हें उसी स्तर से देखा जिससे वो बचना चाहती हैं. सरकार की जिन योजनाओं से किन्नरों को जोड़ा जाता है , वहां भी नाचने-गाने का काम मिलता है. समुदाय के उत्थान के लिए सरकार के पास भी नजरिये की कमी है.

एनजीओ के लिए वॉलंटियरिंग और इकट्ठे किए गए पैसे से सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी कराकर आज वीरा एक ट्रांसवुमन बन चुकी हैं. लेकिन राज्य सरकार की घोषणाओं के बावजूद उन्हें फायदा नहीं मिल सका.

साल 2019 में बिहार सरकार ने सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी(SRS) के लिए पैसों से लेकर ट्रांसजेंडर वेलफेयर फंड, नौकरियों में आरक्षण की घोषणा की थी. 
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2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार में ट्रांसजेंडर्स की आबादी 40 हजार है.

वीरा ने टैबू, स्टीरियोटाइप तोड़ने की कोशिश की लेकिन आज भी अफसोस के साथ जिंदगी जीने को मजबूर हैं. जैसा कि वीरा कहती हैं- “चुनाव से पहले या बाद में कोई सरकार इस समुदाय के लिए नहीं सोचती. तमाम कोशिशों के बावजूद हम पिछड़कर और अपने समुदाय में ही एक-दूसरे का सहारा बनकर जीने को मजबूर हैं. ”

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