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बिहार में सख्त शराबबंदी से कानून को थोड़ा 'लाइट' करने की नौबत तक की कहानी

नालंदा में जहरीली शराब से मौतों के बाद छपरा में भी मौत की खबर आई है

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राज्य
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नालंद में 13 मौतों के बाद अब आशंका है कि छपरा में भी 11 लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई है. इस बीच बिहार में शराबबंदी कानून में संशोधन कर इसे नरम करने की बात हो रही है. नीतीश सरकार ने एक ड्रॉफ्ट भी बनाया है और विधानसभा के बजट सत्र में संबंधित संशोधन बिल भी लाया जा सकता है. आखिर जो राज्य देश भर में शराब बंदी के लिए चर्चा में था वो अचानक ढिलाई देने पर मजबूर होता कैसे दिख रहा है? चलिए आपको 2016 से अब तक क्या हुआ ये बताते हैं.

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शराबबंदी के पहले

नीतीश का चुनावी वादा

बिहार में 2015 विधानसभा होने वाले थे. महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठनों ने जमकर प्रदर्शन किया था. उन्होंने राज्य में हर तरह की शराब पर रोक की मांग की थी. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से सरकार बनने पर राज्य में पूर्ण शराबबंदी का वादा किया था. दरअसल घरेलू हिंसा को अक्सर ज्यादा शराब पीने से जोड़ा जाता है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 15-49 आयु वर्ग के लगभग 30 प्रतिशत पुरुषों ने शराबबंदी से पहले शराब का सेवन किया था. राज्य में 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग की 40 प्रतिशत महिलाओं ने उस वक्त बताया था कि उन्होंने पिछले 12 महीनों के दौरान अपने पतियों द्वारा शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है.

विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद नीतीश कुमार ने अप्रैल 2016 में राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू कर दिया.

शराब से कितनी कमाई होती थी

2016 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2014-15 में शराब बंदी से पहले बिहार ने शराब की बिक्री पर उत्पाद शुल्क से 3,100 करोड़ रुपए से अधिक राजस्व प्राप्त किया. सर्वेक्षण में बताया गया कि 2015-16 में इससे राजस्व का अनुमान 4,000 करोड़ रुपये था. यह रकम राज्य के लिए क्या मायने रखती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार के बजट प्रस्तावों में 2020-21 में मिड-डे मील योजना के लिए 2,554 करोड़ रुपए प्रस्तावित थे जो अनुमानित शराब की आमदनी 4,000 करोड़ रुपए का लगभग 64% होता है.

इंडियास्पेंड के आंकड़ों के अनुसार शराब प्रतिबंध से पहले बिहार में हर महीने करीब 2.5 करोड़ लीटर शराब की खपत होती थी.
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शराबबंदी के बाद

अवैध शराब पर क्रैकडाउन

करीब साढ़े तीन लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया. 186 पुलिस वाले बर्खास्त हुए और 60 थानेदारों की पोस्टिंग रोक दी गई. इसके साथ ही 1.5 करोड़ लीटर शराब जब्त की गई. ऐसे कठोर नियम भी बने कि अगर किसी घर के कैंपस में शराब की बोतल मिली पूरा घर ही सील. इसपर हाईकोर्ट ने फटकार भी लगाई थी कि क्या हाई कोर्ट परिसर में शराब की बोतल मिली तो पूरे परिसर को ही सील कर देंगे?

कानून के मुताबिक शराब बनाने, बेचने, रखने या लाने-ले जाने वालों को 10 साल की सजा हो सकती है और एक लाख का जुर्माना लग सकता है. शराब पीते हुए दिखने पर किसी को वहीं पर गिरफ्तार किया जा सकता है. कोई शराब पीता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे सात साल तक की सजा हो सकती है और एक से सात लाख तक जुर्माना लग सकता है.

नीतीश को महिलाओं का साथ

नीतीश सरकार की शराबबंदी के फैसले का आम तौर पर महिलाओं ने स्वागत किया. आज भी नीतीश की सियासी ताकत का एक बड़ा हिस्सा महिला वोटबैंक से आता है. इसकी वजह समझनी हो तो ये समझना होगा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में शराबबंदी के बाद घरेलू हिंसा में काफी गिरावट आई. बिहार में आईपीसी की धारा 498ए के तहत घरेलू हिंसा के मामलों (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) में शराबबंदी के बाद से 37 प्रतिशत कम हुई, जबकि महिलाओं के प्रति अपराध दर में 45 प्रतिशत की गिरावट आई.

लेकिन नकली शराब की आफत आ गई

सरकार ने शराब पर रोक लगाई तो राज्य में नकली शराब की नदी बहने लगी. जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या बढ़ती गईै. अकेले 2021 में 90 से ज्यादा लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई. इस साल जनवरी में ही 40 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. नालंदा, छपरा, मुजफ्फरपुर हर जगह से मौत की खबरें आई हैं.

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प्रशासनिक मिलीभगत

अगर बिहार में बैन के बावजूद करोड़ों लीटर शराब जब्त की गई तो जाहिर है वो राज्य में आई या बनाई गई. दोनों ही सूरत में इतनी ज्यादा मात्रा में शराब बिना सरकारी मुलाजिमों के मिलीभगत के नहीं आ सकती.

मई 2017 में बिहार पुलिस ने दावा किया था कि चूहे जनता से जब्त 900,000 लीटर शराब पी गए हैं. लोगों ने सवाल उठाए कि शराब चूहों ने पी या बेच दी गई? जैसा कि ऊपर बताया गया सैकड़ों की तादाद में पुलिस वालों पर एक्शन भी हुआ है. अभी नालंदा केस में छोटी पहाड़ी के पूरे इलाके में सर्च अभियान चलाया गया, सवाल उठता है कि इतना बड़ा इलाका कैसे पुलिस की आंखों से अनदेखा रह गया?

छोटी मछलियां जाल में, बड़ी आजाद?

जिस तरह से गिरफ्तारियां की गई हैं उससे राज्य सरकार की एजेंसियों में पूर्वाग्रह का पता चलता है. इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट में पटना के सामाजिक वैज्ञानिक, डीएम दिवाकर कहते हैं-

वे शराब ले जाने वालों को गिरफ्तार कर रहे हैं, कारोबारियों को नहीं," शराब लाने ले जाने वाले लोग गरीब, असहाय हैं जो रोजगार की तलाश में हैं. उन्हें अपना घर चलाने के लिए ऐसा करना पड़ता है.

इसे और समझने के लिए इंडिया स्पेंड की ही ये रिपोर्ट देखनी चाहिए-

''शराबबंदी के कानून में जुलाई 2017 में सबसे पहले दोषी करार दिए गए मस्तान मांझी  और उनके भाई पेंटर पटना से 50 किलोमीटर दूर जहानाबाद के रहने वाले हैं. उन्हें शराब पीने के आरोप में पांच साल कारावास और एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया. ये मामला 2018 में शराबबंदी क़ानून में हुए संशोधन से पहले का है. 2018 में हुए संशोधन में इसे कम करके पहली बार पकड़े जाने पर तीन महीने की जेल या 50,000 रुपए का जुर्माना कर दिया गया.

मांझी, मुसहर समुदाय से आते हैं, जो बिहार के महादलित हैं, और किराए की ठेलागाड़ी चलाकर 250 रुपए रोज कमा पाते हैं. उनकी सजा के दो साल बाद, मांझी परिवार कर्ज में डूबा हुआ है. मस्तान की पत्नी सियामनी बताती हैं-''मुझे एक निजी साहूकार से मस्तान का जुर्माना अदा करने के लिए एक लाख रुपए उधार लेने पड़े, 5% ब्याज पर पैसे लिए हैं. मुझे समझ नहीं आता कि कैसे परिवार चलाएं, कैसे राशन खरीदें, कैसे बच्चों को पढ़ाएं और कैसे कर्ज चुकाएं. आप शराबबंदी कर सकते हैं मगर सजा तो उचित होनी चाहिए."

बिहार में मांझी जैसे कुछ आदिवासी समुदाय सदियों से कच्ची शराब बनाने का काम करते रहे हैं. कानून बनने के बाद इन्होंने अपना काम जारी रखा और जब सख्ती हुई तो जेल जाने लगे. सरकार ने रोजगार का बिना कोई विकल्प दिए उनपर कार्रवाई की, जिससे समुदाय के लोगों के लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति पैदा हो गई.

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शराबबंदी कानून में राहत देने की नौबत

अवैध शराब से मौत, गरीबों पर सबसे ज्यादा मार, राज्य में बदले सियासी हालात इन सबके बीच अब बिहार सरकार शराबबंदी के सख्त नियमों को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शराब के मामलों के कारण रेगुलर केस के लिए वक्त नहीं निकल पा रहा है. नतीजा ये है कि सरकार शराबबंदी कानून में राहत देने का मन बना रही है.

संशोधन में क्या है?

ड्रॉफ्ट प्रस्ताव के अनुसार शराब के नशे में पकड़े जाने वालों को मौके पर ही जुर्माना भरकर छोड़ा जा सकता है. हालांकि, यह गुनाह दोहराने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा. शराबबंदी कानून के मानदंडों का बार-बार उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है. शराब बनाने और बेचने वालों पर पाबंदी जारी रहेगी. लेकिन नीतीश के सहयोगी इतने से ही संतुष्ट नहीं हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शराबबंदी कानून में संशोधन या समीक्षा लाने की बजाय इस मुद्दे पर सर्वे कराना चाहिए. अगर बिहार के लोग शराबबंदी को वापस लेने के पक्ष में हैं, तो हम भी उस फैसले का सम्मान करते हैं."
हम के मुख्य प्रवक्ता दानिश रिजवान

जिस बीजेपी के नेता मध्य प्रदेश में शराबबंदी की मांग कर रहे उसी पार्टी के नेता बिहार में नीतीश पर सवाल उठा रहे हैं.

समझने वाली बात ये है कि बिहार में जब भी जहरीली शराब से मौत हुई, शराबबंदी कानून पर सवाल उठे और संशोधन भी हुए. लेकिन अब बिहार में सियासी हालात बदल चुके हैं. नीतीश अब बड़े भाई के बजाय छोटे भाई की भूमिका में आ चुके हैं. इसलिए दबाव का जवाब देने की क्षमता कमजोर हो गई है.

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