देश-दुनिया में 'लौंडा नाच' को पहचान दिलाने वाले बिहार (Bihar) के मशहूर कलाकार पद्मश्री रामचंद्र मांझी (Ramchandra Manjhi) का निधन हो गया. पटना के IGIMS में बुधवार रात उन्होंने अंतिम सांस ली. वे हृदय रोग समेत अन्य बीमारियों से पीड़ित थे. 96 साल के मांझी भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर (Bhikhari Thakur) के सहयोगी थे. उनके निधन से भोजपुरी कला जगत में शोक की लहर है.
कौन थे पद्मश्री रामचंद्र मांझी?
रामचंद्र मांझी सारण जिले के तुजारपुर के रहने वाले थे. उन्हें लौंडा नाच का आखिरी कलाकार बताया जाता है. उन्होंने इस कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. 2021 में रामचंद्र मांझी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया. 2017 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी से नवाजा गया. उन्हें राष्ट्रपति ने प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि भेंट की थी. इसके साथ ही उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है.
10 साल की उम्र में बने भिखारी ठाकुर के शागिर्द
कहा जाता है कि रामचंद्र मांझी 10 साल की उम्र में ही भिखारी ठाकुर की मंडली से जुड़ गए थे. उनके साथ करीब 30 सालों तक वे कला के क्षेत्र में परिपक्व होते रहे. 1971 तक भिखारी ठाकुर के नेतृत्व में काम किया और उनके मरणोपरांत गौरीशंकर ठाकुर, शत्रुघ्न ठाकुर, दिनकर ठाकुर, रामदास राही और प्रभुनाथ ठाकुर के नेतृत्व में काम करते रहे.
लंबी बीमारी के बाद मांझी का निधन
पद्मश्री रामचंद्र मांझी पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. मंत्री जितेंद्र राय की पहल पर उन्हें IGIMS में भर्ती कराया गया था. यहां पिछले पांच दिनों से उनका इलाज चल रहा था. वहीं पद्म श्री पुरस्कार मिलने के बाद भी रामचंद्र माझी आर्थिक संकट से जूझ रहे थे. उनके जीवन का अंतिम समय मुफलिसी में कटा. रामचंद्र माझी के निधन के साथ भोजपुरी लौंडा नाच का सुनहरा अध्याय समाप्त हो गया है.
सीएम नीतीश कुमार ने जताया दुख
रामचंद्र मांझी के निधन पर सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने शोक जताया है. उन्होंने ट्वीट किया, "उनके निधन से नृत्य, कला एवं संस्कृति विशेषकर भोजपुरी नृत्य संगीत के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है."
वहीं मांझी के निधन की सूचना मिलने पर कला संस्कृति एवं युवा मंत्री जितेंद्र राय ने फोन पर उनके परिजनों से बात कर शोक संवेदना व्यक्त की.
बिहार के प्राचीन लोक नृत्यों में एक है लौंडा नाच
'लौंडा नाच' बिहार के प्राचीन लोक नृत्यों में से एक है. इसमें लड़की के वेश में कलाकार नृत्य करते हैं. किसी भी शुभ मौके पर लोग अपने यहां ऐसे आयोजन कराते हैं. हालांकि, आज समाज में लौंडा नाच हाशिए पर पहुंच गया है. अब गिनी-चुनी मंडलियां ही बची हैं, जो इस विधा को जिंदा रखे हुए है.
भिखारी ठाकुर रंगमंडल के संयोजक और रामचंद्र मांझी के साथ कई मंचों पर अभिनय कर चुके जैनेंद्र ने रामचंद्र मांझी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हमने भिखारी ठाकुर की परंपरा के अंतिम सिपाही को खो दिया.
Input- V chand
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