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कोरोना से जंग में मुंबई की तारीफ, फिर वॉरियर्स क्यों हैं उदास?

मुंबई में पिछले एक हफ्ते से आंदोलन कर रहे हेल्थ वर्कर्स अपनी मांगों की तरफ सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं

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राज्य
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कोरोना की दूसरी लहर का केंद्र बना महाराष्ट्र अब संभलता नजर आ रहा है. कोरोना मरीजों के आकड़े धीरे धीरे घट रहे है. मुंबई मॉडल से लेकर कोरोना के फिसलते आकड़ों का श्रेय लेने से मुख्यमंत्री और सरकारी बाबू बिल्कुल नहीं चूक रहे, लेकिन साल भर से कोरोना की युद्धभूमि पर डटे डॉक्टर्स, नर्सेस और हेल्थ वर्कर्स आज भी मूलभूत मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे है. मुंबई में पिछले एक हफ्ते से आंदोलन कर रहे हेल्थ वर्कर्स अपनी मांगों की तरफ सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, सरकार से आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिल रहा.

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नेस्को कोविड जंबो सेंटर में हेल्थ स्टाफ का विरोध

9 मई को मुंबई के गोरेगांव इलाके में नेस्को कोविड जंबो सेंटर में अचानक सुबह 9 बजे हेल्थ स्टाफ कर्मचारियों ने फ्लैश स्ट्राइक कर दिया. करीब 200 से 250 नर्सेस और वार्ड बॉय ने काम बंद कर दिया. कई घंटों तक चले इस आंदोलन ने बीएमसी प्रशासन में हड़कंप मचा दिया. लेकिन लगातार बातचीत के बाद दोपहर 3 बजे कर्मचारियों ने आंदोलन को स्थगित किया.

महाराष्ट्र के कई जिलों से आई नर्सेस पिछले एक साल से कोविड ड्यूटी कर रही है. उनकी रहने और खाने की व्यवस्थाओं को लेकर वे लगातार अपने वरिष्ठों को शिकायत कर रही थी, लेकिन कोई जवाब न मिलने पर आखिर उन्हें आंदोलन का हथियार उठना पड़ा. नाम न बताने के शर्त पर एक नर्स ने बताया,

“हमें मरीजों का खाना दिया जा रहा था, जबकि डॉक्टर्स को अलग से खाना आता था. इस बारे में शिकायत करने के बावजूद कोई असर नही हुआ.”

साथ ही रहने की समस्या पर दूसरी नर्स ने बताया, “गोरेगांव की एक झाली बिल्डिंग के एक फ्लैट में 6 से 7 लोगों को रहने पर मजबूर किया जाता है. हम इतनी कम जगह में गुजारा कर भी रहे थे कि हमें अचानक किसी दूसरी जगह एक स्कूल में शिफ्ट करने की बात पता चली. वहां से कोविड सेंटर काफी दूर है और आसपास खाने की सुविधा नहीं. ऐसे में देर रात ड्यूटी के बाद हमें काफी परेशानियां होती हैं.”

मुंबई में पिछले एक हफ्ते से आंदोलन कर रहे हेल्थ वर्कर्स अपनी मांगों की तरफ सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं

लेकिन बीएमसी के एडिशनल कमिश्नर सुरेश काकानी की मध्यस्था के बाद उन्हें आश्वासन दिया गया कि उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जाएगा. आखिर शाम तक सभी हेल्थ स्टाफ वर्कर्स ने काम शुरू किया और एक बड़ी अनहोनी होने से टल गई.

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डॉक्टरों ने चलाई ‘BMC Betrayed Us’ मुहीम

वहीं, मुंबई के बीएमसी अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी ‘BMC Betrayed Us’ नाम की ऑनलाइन मुहिम चलाई. 7 मई को बीएमसी अस्पतालों में काम कर रहे पीजी ग्रेज्युएट डॉक्टरों ने ये संदेश प्लेकार्ड पर दिखाते हुए सोशल मीडिया पर फोटोज शेयर किए, लेकिन मरीजों को तकलीफ न हो इसलिए अपना काम जारी रखा.

अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने उनके स्टाइपेंड में बढ़ोतरी की मांग को लेकर ये कैंपेन शुरू किया है.

डॉक्टर्स संघटन मार्ड के मुंबई अध्यक्ष अक्षय यादव ने नाराजी जताते हुए कहा, "जब बीएमसी के काम की पूरे देश मे चर्चा हो रही है तो प्रशासन और नेता वाहवाही ले रहे है, लेकिन जब कोई काम गलत होता है तो सारा ठीकरा हम डॉक्टर्स और हेल्थ स्टाफ पर मढ़ा जाता है. असाधारण परिस्थितियों में काम कर रहे इन कर्मचारियों का कहीं जिक्र भी न होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है."

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“महाराष्ट्र के अस्पतालों में सभी पीजी मेडिकल ग्रेज्युएट्स को 54 हजार महीना स्टाइपेंड मिलता था, लेकिन मई 2020 से उसमें 10 हजार बढ़ोतरी का निर्णय हुआ. सितंबर में रेजोल्यूशन पास होने के बाद छह महीने के एरियर्स के साथ राज्यभर के डॉक्टरों का स्टाइपेंड लागू कर दिया गया, लेकिन मुंबई के केईएम, नायर, साइन और कूपर अस्पतालों के तकरीबन तीन हजार रेजिडेंट डॉक्टरों को बीएमसी ने बढ़ोतरी नहीं दी. मार्च 2021 में आखिरकार बीएमसी से मान्यता मिली, लेकिन फिर कोविड ड्यूटी इन्सेंटिव्स पर रोक लगा दी गई. उसे स्टाइपेंड हाईक समझ के हमें चुप रहने को कहा गया. इतना ही नहीं, बल्कि जनवरी 2021 में बिना किसी नोटिस के 10 हजार का कोविड इन्सेंटिव्स बंद कर दिया गया, जबकि फरवरी की सेकंड वेव में हमने ज्यादा जोखिम उठाकर काम किया. इसीलिए हमने ‘BMC Betrayed US’ ये मुहिम शुरू की.”
अक्षय यादव

बात दें कि इस मुहिम में किसी भी रेजिडेंट डॉक्टर ने अपना काम बंद नही किया. इन हेल्थ वर्कर्स की मेहनत की वजह से महाराष्ट्र में कोरोना आकड़े अब 50 हजार से कम करने में सफलता मिली है. साथ ही मुंबई का आंकड़ा 11 हजार से अब 2 हजार से कम तक पहुंच गया है. ऐसे में महाराष्ट्र का डंका पूरे देश मे बज जा रहा है, लेकिन इन हेल्थ वर्कर्स की समस्याओं को सुलझाने में सरकार नाकाम होती दिख रही है.

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