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झारखंड लौटते मुंबई के ऑटो वाले ने अपने को खोया, कहीं से न मिली मदद

महाराष्ट्र के जलगांव में झारखंड के रहनेवाले प्रवासी मजदूर का ऑटो एक्सिडेंट

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राज्य
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ये शख्स वर्षों से मुंबई में लोगों को उनके घर और दफ्तर पहुंचा रहा है. आज जब झारखंड में खुद के घर लौटने की मजबूरी हुई तो उसे कोई गाड़ी, कोई ट्रेन नहीं मिली. हारकर उसने उसी ऑटो से झारखंड पहुंचने की कोशिश की. लेकिन इस जद्दोजहद में उसने अपने परिवार के एक सदस्य को खो दिया. पत्नी गंभीर रूप से जख्मी हो गई और खुद भी घायल हो गया. जलगांव में ऑटो को एक वाहन ने टक्कर मार दी और ये लोग इलाज के लिए अस्पताल दर अस्पताल भटकते रहे, लेकिन इलाज न मिला.

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मलाड से गिरिडीह जाने की जंग हार गए

मुंबई के मलाड में ऑटो चालक तुर्केश्वर साव, अपने साले सुनील साव, पत्नी नीता देवी और एक परिचित गणेश साव को लेकर झारखंड के लिए निकले थे. इन्हें गिरिडीह  जिले के डुमरी प्रखंड में कुलगो गांव जाना था. महाराष्ट्र के जलगांव में 12 मई की सुबह 4 बजे किसी बड़े वाहन ने इनके ऑटो को टक्कर मारी. सुबह के धुंधलके में ये लोग देख भी नहीं पाए. चोट सबको आई लेकिन सुनील की हालत ज्यादा ही खराब थी.

हादसे के बाद ये लोग जलगांव में एरंडोल अस्पताल गए. परिवार का आरोप है कि वहां इलाज करने के बजाय इन्हें दूसरी निजी अस्पताल, गोदावरी अस्पताल में जाने के लिए कहा गया. लेकिन इलाज वहां भी नहीं मिला.

परिवार का आरोप है कि- 'गोदावरी अस्पताल ने इनसे कहा कि 10 हजार रूपए जमा करने पर ही इलाज शुरू होगा.' इसके बाद परिवार ने नासिक में अपने एक रिश्तेदार प्रकाश साव से पैसे लेकर आने को कहा. नासिक से पैसे लेकर आने में दोपहर के ढाई बज गए. लेकिन पैसे आ जाने के बाद भी इलाज नहीं मिला.

मैंने कहा कि आप इलाज शुरू कीजिए, मैं पैसे लेकर आता हूं. लेकिन जब दोपहर ढाई बजे मैं पैसे लेकर पहुंचा तो देखा कि इलाज तो दूर ड्रेसिंग तक नहीं हुई थी. जब मैं पैसा जमा कराने लगा तो अस्पताल ने कहा मुंबई से आए हैं कोरोना हो सकता है, संक्रमण का डर है इसलिए आपलोग सिविल अस्पताल जाइए. हारकर हम घायलों को लेकर सिविल अस्पताल पहुंचे.
प्रकाश साव, तुर्केश्वर साव के बहनोई

तुर्केश्वर साव कहते हैं कि "सिविल अस्पताल पहुंचने पर अस्पताल स्टाफ कहने लगा कि यहां इलाज नहीं होगा, आप इन्हें गोदावरी अस्पताल ले जाइए, हमने गोदावरी अस्पताल के कागज दिखाए कि वहीं से भेजा गया है, तब जाकर इलाज शुरू हुआ. सिर में टांके लगाए गए, सिटी स्कैन हुआ लेकिन फिर कोई इलाज नहीं किया गया. 14 तारीख की सुबह सुनील ने दम तोड़ दिया"

महाराष्ट्र से झारखंड तक लापरवाही?

ये तो हुई महाराष्ट्र की बात.अब जरा झारखंड, लॉकडाउन की मुसीबत में अपने प्रवासियों का ख्याल कैसे रख रहा है, इसका एक उदाहरण भी देखिए. झारखंड के पत्रकार को इस हादसे और इलाज में दिक्कत के बारे में पता चला, उन्होंने सीएम हेमंत सोरेन को टैग कर इस परिवार को मदद दिलाने की अपील की. सीएम ने गिरिडीह के डीसी राहुल कुमार सिन्हा को निर्देश दिया कि इस परिवार की मदद की जाए.

सीएम ने 13 मई को सुबह करीब दस बजे ट्वीट किया था, डीसी ने जवाब दिया अगले दिन शाम को 8.25 पर. और जवाब ये था..

क्विंट डीसी से पूछना चाहता था कि अगर सिविल सर्जन ने जवाब नहीं दिया तो आपने और किसको फोन किया? वॉट्सऐप पर भी कोई जवाब नहीं मिला तो आपने जलगांव के किस-किस बड़े अफसर को वॉट्सऐप किया? हम पूछना चाहते थे कि आज एक गरीब मजदूर सुनील और ऑटो वाले तुर्केश्वर की जगह कोई नेता होता, कोई बड़ा अफसर मुसीबत में होता तो सिविल सर्जन के जवाब का इंतजार करते या जमीन आसमान एक कर देते? लेकिन हम ये सब डीसी राहुल कुमार सिन्हा से पूछ नहीं पाए, क्योंकि 15 और 16 मई को कई बार फोन करने के बाद भी उनका फोन स्वीच ऑफ मिला.

हम एरंडोल अस्पताल, गोदावरी अस्पताल और सिविल अस्पताल से भी पूछना  चाहते हैं कि क्या इस परिवार के आरोप सही हैं? हमने गोदावरी अस्पताल में कई बार फोन किया, लेकिन बात नहीं हो पाई. इसलिए हमें इन सवालों के जवाब नहीं मालूम.

जो हमें मालूम चल गया वो ये है कि भले ही केंद्र सरकार ने मजदूरों के लिए ट्रेन चलाई हो, लेकिन आज भी उनमें सबको जगह नहीं मिल रही. आज भी मजदूर, प्रवासी जान जोखिम में डालकर अपने राज्य लौटने की कोशिश कर रहे हैं. आज भी राज्यों के बीच तालमेल की भारी कमी है. हमें फिर याद दिलाया गया कि मजदूर, गरीब की जान की कीमत कोई नहीं. उसका ख्याल किसी को नहीं. 

फिलहाल गंभीर रूप से जख्मी नीता देवी और तुर्केश्वर को एक एंबुलेंस मिल गई हैं. वो झारखंड लौट रहे हैं. सुनील का शव लेकर.

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