मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल स्थित हमीदिया अस्पताल परिसर के कमला नेहरू अस्पताल में 8-9 नवंबर की दरमियानी रात बड़ा हादसा हो गया. कमला नेहरू अस्पताल के बच्चा वार्ड में अचानक आग लग गई, जिससे यहां भर्ती चार बच्चों की मौत हो गई. सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन हमीदिया अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही को उजागर करती ये पहली घटना नहीं है.
पिछले महीने भी हमीदिया अस्पताल में बन रही नई इमारत में आग लग गई थी और दमकल के देरी से पहुंचने की वजह से नुकसान हुआ था. अगर पिछली घटना में जवाबदेही तय होती, उससे सीख लेकर आग से तत्काल निपटने के इंतजाम किए गए होते, तो शायद 4 मासूमों को अपनी जान न गंवानी पड़ती.
परिजनों का आरोप - मौत के आंकड़े छुपा रहा अस्पताल प्रबंधन
मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने जानकारी दी है कि बच्चा वार्ड में सोमवार की रात को अचानक आग लग गई. इस हादसे में चार बच्चों की जान चली गई, जबकि 36 बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया गया है. यह एसएनसीयू वार्ड है, जिसमें नवजात वे शिशु भर्ती किए जाते है जो जन्म के समय निर्धारित वजन से कम होते है या अन्य कोई समस्या होती है. हालांकि, परिजनों का आरोप है कि प्रबंधन मौत के कम आंकड़े बता रहा है. आरोप है कि मरने वाले बच्चों की संख्या कम से कम 8 है.
आग बुझाने के उपकरण फेल, बच सकती थी बच्चों की जान
घटना के एक प्रत्यक्षदर्शी, अस्पताल के ही कर्मचारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर क्विंट को बताया कि अस्पताल में लगे आग बुझाने के उपकरण काम नहीं कर रहे थे, जिसके बाद फायर बिग्रेड को बुलाया गया. अगर फायर इस्टिंगुइशर चल जाते तो शायद बच्चों की जान बच जाती. कर्मचारी के मुताबिक,
तकरीबन रात के 8:15 बजे आग लगी, पहले हम लोगों ने खुद आग बुझाने की कोशिश की. फिर आग बुझाने के उपकरण ट्राय किए, सब फेल रहे. 15 मिनट बाद फायर बिग्रेड को बोला. इसके 15 मिनट बाद फायर बिग्रेड पहुंची. कई परिजनों ने तो खुद कांच तोड़कर बच्चों को बाहर निकाला. बाद में गेट सील कर परिजनों को बाहर कर दिया गया और बच्चा वार्ड नं 5 और नं 2 में बच्चों को शिफ्ट कर दिया गया.
पिछले महीने लगी आग की घटना से सीख ली होती, तो हादसा टल सकता था
इस महीने आग हमीदिया अस्पताल परिसर में बने कमला नेहरू अस्पताल में लगी है, जबकि पिछले महीने 7 अक्टूबर को हमीदिया अस्पताल की ही निर्माणाधीन इमारत में आग लग गई थी. 7 अक्टूबर की घटना में दमकल को पहुंचने में 1 से डेढ़ घंटे का वक्त लग गया था. क्योंकि अस्पताल कर्मचारियों की मानें तो किसी ने फायर बिग्रेड को समय पर फोन ही नहीं किया था. फायर बिग्रेड हमीदिया अस्पताल से महज 5 मिनट की दूरी पर है, आधा किलोमीटर से भी कम.
अक्टूबर की घटना से सीख लेकर अगर अस्पताल में आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम कर दिए गए होते तो क्या नवंबर में ये भीषण घटना होती? शायद नहीं
अस्पताल प्रबंधन सवालों के घेरे में, क्योंकि ये पहली लापरवाही नहीं
अगर ये साबित हो जाता है कि अस्पताल में उपलब्ध आग बुझाने के उपकरणों का फेल होना, बच्चों की मौत का बड़ा कारण है, तो जाहिर है ये एक बड़ी लापरवाही होगी. पर क्या अक्टूबर -नवंबर में हुई आग की घटनाएं अस्पताल में हुई ये लापरवाही की पहली घटना हैं? बिल्कुल भी नहीं.
सितंबर महीने में सामने आया था कि अस्पताल में कोरोना की दूसरी लहर में खरीदे गए 600 रेमडेसिविर इंजेक्शन रखे-रखे एक्सपायर हो गए थे. अस्पताल प्रबंधन ने ये कहते हुए पल्ला झाड़ लिया था कि इंजेक्शनों की जरूरत ही नहीं थी. लेकिन, जमीनी हकीकत तो ये है कि जिस वक्त इंजेक्शन यहां रखे-रखे सड़ रहे थे, तब लोग प्राइवेट बाजार में लाखों की कीमत में यही इंजेक्शन खरीद रहे थे. सीएम ने इन इंजेक्शनों को हेलीकॉप्टर से मंगवाया था, प्रबंधन की लापरवाही से एक्सपायर हो गए, पर सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग पर किसी पर एक्शन नहीं हुआ.
सितंबर महीने में हमीदिया अस्पताल में न्यूक्लियर विभाग में लंबे समय से बंद गामा कैमरा कक्ष से एसी का आउटर चोरी हो गया था. लंबे समय से गामा कैमरा बंद हैं, जिनके मेंटेनेंस की कार्रवाई हो रही है.इस बीच उपकरणों की जांच में पता चला कि गामा कैमरा के कक्ष में लगे एसी का बाहर लगा आउटर ही नहीं है.
इससे पहले अस्पताल के डी-ब्लॉक से सोनोग्राफी में इस्तेमाल होने वाला 2 लाख की कीमत वाला प्रोब गायब हो गया था.
17 अप्रैल, 2021 को कोरोना के गंभीर मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन दिए जाने थे. इंजेक्शन लगाने के लिए जब स्टोर रूम का वो कमरा खोला गया, जहां इंजेक्शन रखे गए थे तो पता चला कि सभी 850 इंजेक्शन चोरी हो गए हैं. जिला प्रशासन ने एक दिन पहले ही 16 अप्रैल को ये इंजेक्शन अस्पताल प्रबंधन को उपलब्ध कराए थे. पुलिस ने मामला दर्ज किया, बाद में सुप्रीटेंडेंट आइडी चौरसिया को हटाया गया, लेकिन इंजेक्शन चोरी के पीछे कौन था? इंजेक्शन कहां गए किसे बेचे गए इसका खुलासा नहीं हो पाया.
चोरी की घटनाएं अब अस्पताल में आम हो चुकी हैं.
अस्पताल के प्रबंधन की जिम्मेदारी, कमलानेहरु के सुप्रीटेंडेंट केके दुबे और हमीदिया अस्पताल के सुप्रीटेंडेंट लोकेंद्र दबे के अलावा तीन और लोगों पर है. नितिन अग्रवाल, वैभव जैन और महेंद्र सोनी. अस्पताल में पिछले 6 महीने में हुई चोरी, आगजनी में घोर लापरवाही की घटनाओं पर इनपर कोई साफ एक्शन होता नहीं दिखा. न ही सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस प्राइवेट एजेंसी पर है, उसपर कोई आंच आई. इनपर किसकी कृपा है? ये बड़ा सवाल है.
विपक्षी नेताओं ने की जांच की मांग, उठाए सवाल
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की. कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने भी लापरवाही पर सवाल उठाए हैं.
अस्पताल में आगजनी की घटनाओं से निपटने के लिए सरकार ने दिया बजट, जमीनी हकीकत लापरवाही
मध्यप्रदेश शासन ने सभी जिला चिकित्सालयों को फायर एनओसी प्राप्त करने के निर्देश दिए थे, जिससे आगजनी की घटनाओं पर जल्द काबू पाने का इंतजाम अस्पतालों में ही हो. शासन ने इसके लिए बजट भी जारी किया था. फरवरी 2021 को नेशनल हेल्थ मिशन के अपर संचालक डॉ. पंकज शुक्ला ने जिला चिकित्सालयों को पत्र लिखकर इस मामले में अपडेट मांगा था. इसके बाद क्या हुआ? जानकारी न देने पर अस्पतालों पर क्या कार्रवाई हुई? जिन अस्पतालों ने जानकारी दी वहां फायर दमकल की व्यवस्थाएं कब तक होंगी? ये बड़े सवाल हैं.
बीजेपी नेता उमा भारती ने भी उठाए सवाल
विपक्षी नेताओं के अलावा मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता उमा भारती ने भी बच्चा वार्ड में आगजनी की घटना पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए जांच की मांग की है. उमा भारत ने अस्पताल के फायर ऑडिट, मेंटेनेंस और बजट पर सवाल उठाते हुए एक्शन लेने की मांग की है.
मानवाधिकार आयोग ने लिया मामले में संज्ञान
मप्र मानव आयोग ने कमला नेहरू अस्पताल के बच्चा वार्ड में आग लगने के मामले में संज्ञान लेकर शासन से रिपोर्ट पेश करने को कहा है. आयोग ने मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य एवं हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक से दो सप्ताह में जवाब मांगा है.
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