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गोरखनाथ हमला: IIT के पूर्व छात्र को फांसी की सजा, ''डिलीट फाइलें अहम सबूत''

आरोपी के वकील बोले- मानसिक स्थिति की जांच के आवेदन को खारिज कर दिया

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पिछले साल यूपी के गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर (Gorakhnath Temple Attack) में पुलिसकर्मियों पर हमले के बाद गिरफ्तार किए गए IIT-मुंबई के पूर्व छात्र अहमद मुर्तजा अब्बासी को मुश्किल से दो महीने तक चले एक अदालती मुकदमे में लखनऊ स्थित ATS/NIA अदालत ने मौत की सजा सुनाई है.

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गिरफ्तारी के बाद परिवार ने कहा था कि अब्बासी मानसिक रूप से अस्वस्थ है. वारदात के 9 महीने बीत चुके हैं और अब सजा के बाद अब्बासी के वकील ने दावा किया है कि मानसिक स्वास्थ्य की जांच के लिए उनकी याचिका को जिला अदालत ने खारिज कर दिया था.

यूपी सरकार ने इस वारदात को आतंकी घटना करार दिया था और मामले को जांच के लिए यूपी एटीएस को ट्रांसफर कर दिया था. यूपी एटीएस के एडीजी नवीन अरोड़ा के नेतृत्व में एक कोर कमेटी का गठन न केवल मामले की जांच करने बल्कि मामले की तेज जांच में अभियोजन पक्ष की सहायता करने के लिए किया गया था. एडीजी अरोड़ा ने दावा किया, अब्बासी के डिजिटल फुटप्रिंट्स के अलावा, उसकी डिलीट की गई फाइल को निकालना मामले में अहम सबूत साबित हुआ.

इस बीच, सजा पर प्रतिक्रिया देते हुए, पुलिस महानिदेशक देवेंद्र सिंह चौहान ने कहा, "वह ISIS का 'लोन वूल्फ' हमलावर था और आतंक की फंडिंग में विशेषज्ञ था. हमारी गहन जांच में हमें पता चला कि वह IIT बॉम्बे का पूर्व छात्र था और एक आईटी एक्सपर्ट था. वह अपनी ऑनलाइन गतिविधि को छिपाता था, इलेक्ट्रॉनिक रूप से आतंकी साहित्य का प्रसार करता था और सीरिया के अल-होल में लड़ाकों को भेजने के लिए ISIS के साथ संपर्क बना रहा था.

पिछले साल 3 अप्रैल को, अब्बासी को धार्मिक नारे लगाते हुए गोरखनाथ मंदिर के बाहर तैनात पीएसी कर्मियों पर धारदार हथियार से हमला करने के बाद गिरफ्तार किया गया था. गोरखनाथ मंदिर गोरखनाथ मठ का मुख्यालय है, जिसके मुख्य पुजारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं.

परिवार ने दावा किया था कि अब्बासी "मानसिक रूप से स्वस्थ" नहीं है, एटीएस ने दावे का खंडन किया

परिवार ने मीडिया के साथ अपनी छोटी सी बातचीत में दावा किया था कि उनका बेटा अब्बासी स्वस्थ दिमाग का नहीं था और उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति भी थी, जिसके लिए वह 2017 से इलाज करा रहा था.

2022 में अब्बासी की गिरफ्तारी के बाद, द क्विंट ने अहमदाबाद में एक न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क किया था, जिन्होंने 2018 में अब्बासी का इलाज किया था. न्यूरोलॉजिस्ट ने निष्कर्ष निकाला था कि मुर्तजा "मानसिक तनाव और भ्रम की स्थिति में था". न्यूरोलॉजिस्ट ने अब्बासी को सलाह दी थी कि वो मनोचिकित्सक से संपर्क करे. न्यूरोलॉजिस्ट ने कहा कि पहली सिटिंग के बाद अब्बासी फॉलो-अप के लिए नहीं आया.

दावों को खारिज करते हुए, एडीजी अरोड़ा ने कहा,

"वह (अब्बासी) स्वस्थ दिमाग का था और छोटी से छोटी जानकारी भी बता रहा था. वह क्वांटम फिजिक्स पढ़ रहा था. मैथ्स के फॉर्मूले बना रहा था और बम के लिए केमिकल पर रिसर्च कर रहा था. क्या कोई अस्वस्थ दिमाग का व्यक्ति ये सब कर सकता है?"
एडीजी अरोड़ा

एडीजी अरोड़ा ने कहा, "उसने तीन अलग-अलग कंपनियों के साथ काम किया था. अगर वह मानसिक रूप से फिट नहीं था तो कोई भी उसे काम पर नहीं रखता. हमने साबित कर दिया है कि वह अस्वस्थ दिमाग का नहीं था."

एडीजी अरोड़ा ने क्विंट हिंदी से पुष्टि की कि बचाव पक्ष ने मानसिक बीमारी के आधार पर राहत पाने की कोशिश की लेकिन कोई मेडिकल रिकॉर्ड पेश नहीं कर पाया.

अब्बासी के वकील रजा-उर-रहमान ने लखनऊ में स्थानीय मीडिया के साथ बातचीत में कहा, "अब्बासी मेधावी है, लेकिन उसका दिमाग ठीक नहीं है. हमने सीआरपीसी की धारा 84, की उपधारा 328 के तहत उसकी दिमागी सेहत की जांच कराने के लिए अदालत में एक आवेदन दिया था. लेकिन आवेदन को लंबित रखा गया. तीन महीने के बाद इसे रद्द कर दिया गया और तुरंत आरोप तय किए गए और गवाहों के बयान दर्ज किए गए."

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क्या ये केस फांसी के लायक था?

सिर्फ 60 दिनों में अब्बासी को सजा को डीजीपी चौहान राज्य में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की तरह देखते हैं. वो कहते हैं-“यह फैसला जनता को सकारात्मक संदेश देता है कि देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश करने वाले के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है.''

इस बीच, विशेषज्ञों का मानना ​​​​है कि मामला 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' का नहीं है. यानी फांसी के लिहाज से असाधारण नहीं है. दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील हर्षित आनंद कहते हैं-"एक तो फांसी के लिए असाधारण परिस्थितियां होनी चाहिए. दूसरे, अपराध की प्रकृति बहुत वीभत्स होनी चाहिए और न्यायालय को संतुष्ट होना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति का कोई सुधार नहीं हो सकता. यदि आप मामले में तथ्यों को देखें और क्या अपराध किया गया है तो पाएंगे कि यह हत्या या गैर इरादतन हत्या भी नहीं है.''

उन्होंने यह भी दावा किया कि ऐसे मामलों में अशांत व्यक्तिगत जीवन, खराब मानसिक स्वास्थ्य, ड्रग्स की लत जैसे फैक्टर को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

आनंद कहते हैं-" इसे कम करके आंका जाता है लेकिन जिस पर अब अदालतें जोर देती हैं, वह यह है कि जब आप मौत की सजा देते हैं, तो आपको संबंधित व्यक्ति का एक मनोसामाजिक विश्लेषण भी करना होता है. आपको उनकी व्यक्तिगत पृष्ठभूमि, सामाजिक परिवेश पर गौर करना होता है. ऐसी खबरें हैं कि अब्बासी के पिता 2017 से अपने बेटे के अशांत निजी जीवन के बारे में बात कर रहे थे. इस तरह का अशांत व्यक्तिगत जीवन, कोई झटका व्यक्ति को अपराध करने की स्थिति में डालता है.''

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डिलीट की गईं फाइलें "सबूत पुख्ता" हैं-एटीएस

मामले में तेज सुनवाई को लेकर यूपी पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही है. हाई-प्रोफाइल मामले की निगरानी सीधे यूपी एटीएस के एडीजी अरोड़ा कर रहे थे. एटीएस इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, डिजिटल फुटप्रिंट्स और गवाहों के बयान के आधार पर एक सटीक मामला तैयार करने का दावा करती है.

एडीजी एटीएस अरोड़ा कहते हैं-"एक कोर कमेटी का गठन किया गया था जिसकी अध्यक्षता मैंने की थी. हमने सबूतों के साथ बयान जुटाए. हमने इस बात पर जोर दिया कि कौन से साक्ष्य और गवाहों की आवश्यकता होगी. हमने अदालत में सुनवाई के दिन गवाह पेश किए.

जब अब्बासी एक खतरनाक प्लान बना रहा था, वो आईटी एक्सपर्ट भी था, तो वो क्यों अपने फुटप्रिंट छोड़ेगा?

इस सवाल पर एडीजी अरोड़ा कहते हैं- वो ISIS से जुड़ने के लिए सीरिया जाने की योजना बना रहा था. उसे पीछे छूट गए सबूतों की चिंता तक नहीं थी. खास बात ये है कि हमने उसकी उम्मीद के उलट डिलीट की गई फाइलें रिकवर कर लीं और यही बड़ा सबूत साबित हुई.

अब्बासी के वकील रहमान ने कहा कि वो फांसी की सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय जाएंगे.

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