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"राज्य को इन मामलों में नहीं आना चाहिए"-हाथरस केस में UP सरकार की याचिका पर SC

UP सरकार ने HC के उस निर्देश को SC में चुनौती दी थी, जिसमें पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही गई थी

Published
राज्य
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के चर्चित हाथरस हत्याकांड (Hathras) में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 27 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को 19 वर्षीय दलित महिला के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था. .

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इलाहबाद हाई कोर्ट का यह आदेश, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने चुनौती दी थी, इसमें पीड़ित परिवार को हाथरस से स्थानांतरित करने की भी मांग की गई थी. आश्चर्य है कि राज्य सरकार ने इस पर आपत्ति जताई थी, शीर्ष अदालत ने कहा,

"राज्य को इन मामलों में नहीं आना चाहिए"
सुप्रीम कोर्ट

लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, हम संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं."

उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 जुलाई 2022 को आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी. अदालत ने परिवार के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 द्वारा दिए गए अधिकारों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया था.

इस बीच, उत्तर प्रदेश की एक विशेष अदालत ने 2 मार्च को इस मामले में तीन लोगों को आरोपों से बरी कर दिया और एक व्यक्ति को दोषी ठहराया था.

चार आरोपियों में से - संदीप (20), रवि (35), लव कुश (23), और रामू (26) - अदालत ने केवल संदीप को भारतीय दंड की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दोषी ठहराया. उसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराधों के लिए दोषी माना गया. 50 हजार रुपए के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

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