रांची के कांके स्थित चामा मौजा में अपनी पत्नी पूनम पांडेय के नाम पर 50.9 डिसमिल गैर मजरुआ जमीन पर तत्कालीन DGP डी के पांडेय ने बंगला बनाया. खाता नंबर 87 के प्लॉट नंबर 1232 की ये जमीन किसी भी हालत में बिक नहीं सकती थी, लेकिन पहले जमीन की 20 जनवरी 2018 को रजिस्ट्री हुई, जिसमें बताया गया कि यह जमीन किसी अमोद कुमार से ली गई है, जबकि जमीन सरकारी थी. फर्जी रजिस्ट्री के बाद भी बाधा थी, म्यूटेशन कराने की,
जिसे डीके पांडेय ने अपनी पोस्ट और पावर से पार कर लिया, जो जमीन गैर मजरुआ जमीन थी, यानी सरकारी थी, उसका सीओ कार्यालय ने बड़ी आसानी से म्यूटेशन (दाखिल-खारिज) कर दिया। इस मामले में अभी जांच चल रही है, लेकिन झारखंड की कैबिनेट ने जिस झारखंड लैंड म्यूटेशन विधेयक-2020 के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है, वो अगर पास हो गया तो सीओ या ऐसे ही किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती.
झारखंड लैंड म्यूटेशन विधेयक-2020 (Jharkhand Land Mutation Bill) के ड्राफ्ट के मुताबिक जमीन की खरीद फरोख्त में शामिल राजस्व अधिकारियों के खिलाफ सरकार से मंजूरी के बिना कोई क्रिमिनल या सिविल मुकदमा नहीं किया जा सकता. ये बिल अधिकारियों को मौजूदा और पहले की गई खरीद बिक्री के मामलों से भी प्रोटेक्शन देता है.
झारखंड (Jharkhand) में आदिवासी और एससी-एसटी समुदाय के लोगों की जमीन खरीद बिक्री को लेकर नियम कायदे हैं. गैर आदिवासी और गैर एससी-एसटी समुदाय के लोग इनसे जमीन नहीं खरीद सकते. लिहाजा लैंड माफिया, कॉरपोरेट जगत और रसूखदार लोग तरह-तरह की तिकड़म लगाकर आदिवासियों की जमीन हथियाने की कोशिश करते हैं. इसमें उनकी मदद करते हैं सरकारी अधिकारी. अब इस बिल से ऐसी कारगुजारियों के बेखौफ होने जाने का डर है. लिहाजा विपक्ष से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तक इस बिल का विरोध कर रहे हैं.
राजस्व के किसी अफसर ने जमीन को लेकर गैरकानूनी काम किया तो भी उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चला सकते. ये बिल ऐसे अफसरों को बचाने की कोशिश है.अखिलेश श्रीवास्तव, अधिवक्ता, रांची हाईकोर्ट
आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की संयोजक दयामनी बराला कहती हैं -"हमने बीजेपी की रघुवर सरकार को CNT अमेंडमेंट करने से रोका, तो जमीन अधिग्रहण बिल-2017 में लेकर आई. जमीन अधिग्रहण के लिए प्रावधान है कि पहले सोशल इम्पैक्ट अससेमेंट और एनवायरनमेंट अस्सेस्मेंट करना होता है.
2017 के इस बिल में इन दोनों पॉइंट को खत्म कर दिया गया था, इसलिए झारखंड वासियों ने बिल का विरोध किया. रघुवर दास यहीं नहीं रुके, उन्होंने लैंड बैंक बना कर ग्रामसभा के पावर को खत्म करने की कोशिश की. हमने विरोध कर उसे भी नाकाम किया.
2019 विधानसभा चुनाव में झारखंड के मूलवासियों ने सरकार इसलिए बदली थी ताकि यहां की जल-जंगल-जमीन महफूज रह सके, लेकिन नई सरकार भी वही करेगी, इसकी उम्मीद नहीं थी. यह बिल झारखंडी भावना और किसान विरोधी है. इसलिए इसे वापस लेना चाहिएदयामनी बारला
बिल को लेकर राज्य में इतना डर है कि सरकार की सहयोगी कांग्रेस के विधायक बंधू तिर्की कहते हैं कि -''बीजेपी जो बिल रेवेन्यू प्रोटेक्शन के नाम से ला रही थी उसी का नाम बदल कर "झारखंड लैंड म्यूटेशन विधेयक-2020" कर दिया गया है. आने वाले वक्त में इस बिल पर राज्य में बवाल मचना तय है.
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