1 से 10 मई के बीच में प्रदेश में रोजाना 8-10 हजार नए केस आए. मौतों की संख्या करीब 80-100 तक रही. हमने पिछले दिनों का विश्लेषण किया तो पाया कि डेटा करीब-करीब एक रेंज में रहा है. रिकवरी रेट घटा है. मतलब कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या रिकवर होने वालों से ज्यादा है. एक्टिव मामले बढ़े हैं. प्रदेश में 12 मई को 1.10 लाख एक्टिव केस थे. पिछले दिनों में पॉजिटिविटी रेट तेजी से कम हुआ है. मतलब टेस्टिंग में कम मरीज कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं. ऊपरी तौर पर देखने में ये राहत की खबर लग सकती है. लेकिन आंकड़ों की असलियत कुछ और ही है.
1 मई से 10 मई तक मध्य प्रदेश में टेस्टिंग बढ़कर 60 से 66 हजार हो गई. हेडलाइन बन गई कि 'सरकार टेस्टिंग बढ़ा रही है.' लेकिन असलियत ये है RT-PCR टेस्टिंग कम हुई है और रैपिड एंटीजन टेस्टिंग का प्रतिशत बढ़ा है. 1 मई को कुल टेस्टिंग में करीब 34% रैपिड टेस्ट किए गए तो वहीं 10 मई को रैपिड टेस्टिंग का प्रतिशत बढ़कर 50 पहुंच गया. यानी प्रदेश में आधे टेस्ट रैपिड एंटीजन से हो रहे हैं.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि रैपिड टेस्टिंग का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत ही खराब है और नए स्ट्रेन्स आने के बाद तो और भी ज्यादा खराब है. ये WHO और ICMR गाइडलाइंस उल्लंघन है. लेकिन मध्य प्रदेश में धड़ल्ले से सरकार रैपिड टेस्टिंग को बढ़ावा दे रही है. टेस्टिंग के रिटल्ट आने में बहुत ज्यादा देरी हो रही है. मैं खुद मध्य प्रदेश में रहता हूं और मेरा खुद का कोरोना टेस्ट रिजल्ट 6 दिन बाद आया. रिजल्ट आने में 10 दिन तक का वक्त लग रहा है. इतने वक्त में या तो कोरोना मरीज दम तोड़ देगा या फिर वो खुद ही ठीक हो जाएगा.
आंकड़ों की रिपोर्टिंग पर सवाल उठाते हुए ग्वालियर के कांग्रेस सांसद प्रवीण पाठक ने सवाल उठाए. उन्होंने पोस्ट में लिखा कि- लोगों को कोरोना के सारे लक्षण हैं फिर भी उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है. सरकार आंकड़े छुपा रही है.
यमुना और गंगा नदी में लाशें बहने की खबरें तो आपने सुनी ही होंगी. मध्य प्रदेश में भी पन्ना जिले में बहने वाली रुंझ नदी में बहती लाशें देखी गईं. इसके अलावा प्रदेश में ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की कई खबरें आई हैं. पुलिस ने कई जगह पर एक्शन भी लिया है. कोरोना वायरस की तीसरी लहर ने ग्रामीण इलाकों में तबाही मचाई है. अब गांवों में कोरोना का अटैक हुआ है जबकि वहां स्वास्थ्य सेवाएं खस्ताहाल हैं
धीमा वैक्सीनेशन, नहीं मिल रहे स्लॉट्स
राज्य की आबादी 8 करोड़ से ज्यादा है. 12 मई तक इसमें से सिर्फ 15 लाख लोगों को ही कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज मिल पाए हैं. वहीं करीब 72 लाख लोगों को कोरोना का एक डोज मिल सका है. मतलब अभी प्रदेश के सिर्फ 2 फीसदी को लोगों को दोनों डोज और महज 9 फीसदी को दोनों डोज लगे हैं. वैक्सीन की कमी के चलते मध्य प्रदेश 1 मई से 18+ वैक्सीनेशन शुरू नहीं कर सका था. 5 मई से प्रदेश में 18+ वैक्सीनेशन शुरू हो सका. लेकिन वो भी बहुत ही धीमा चल रहा है.
युवाओं ने हमसे बातचीत में बताया कि स्लॉट्स आसानी से नहीं मिल रहे हैं. हफ्ते में एक या दो दिन ही वैक्सीनेशन हो रहा है. कम स्लॉट्स आते हैं और तेजी से सारे भर जाते हैं. हालत ये है कि इंदौर में वैक्सीन की कमी के चलते 45+ का वैक्सीनेशन भी 13 और 14 मई को रोकना पड़ गया है. देश के कई राज्यों जैसे- महाराष्ट्र, दिल्ली ने वैक्सीन इंपोर्ट करने के लिए टेंडर जारी किया है. लेकिन वैक्सीन की भारी किल्लते के बावजूद अभी तक मध्य प्रदेश सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है.
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