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महाराष्ट्र सरकार के 5500 cr के लॉकडाउन रिलीफ पैकेज का रियलिटी चेक

उद्धव ठाकरे सरकार ने 3-4000 करोड़ की मदद लोगों तक पहुंचाने का दावा किया है

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कोरोना की दूसरी लहर का केंद्र बने महाराष्ट्र में अब आंकड़ों में कमी आने से काफी सुधार देखने को मिल रहा है. दूसरी लहर के चलते सबसे पहले यानी 14 अप्रैल को महाराष्ट्र में लॉकडाउन लागू कर दिया गया था. आज लगभग डेढ़ महीने के बाद भी लॉकडाउन खत्म होने के आसार नही दिख रहे हैं. जिसके कारण गरीब और श्रमिकों का जीना मुश्किल हो गया है. ऐसे में क्विंट हिंदी ने राज्य के वित्त व नियोजन विभाग से इन गरीब तबकों के लोगो के लिए सरकार से पहुंची मदद की एक्सक्लूसिव जानकारी प्राप्त की है.

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दरअसल, सीएम उद्धव ठाकरे ने लॉकडाउन का ऐलान करते वक्त राज्य में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं, दिव्यांगों, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को भोजन और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए 5500 करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी. सरकार से मिली जनकारी में अब तक राज्य ने विविध कल्याणकारी योजनाओं के तहत लगभग 3 से 4 हजार करोड़ रुपये की मदद लोगों तक पहुंचाने का दावा किया है. लेकिन इस मदद के बावजूद जमीनी हालात क्या है इसका जायजा क्विंट हिंदी ने लिया है.

सबसे पहले नजर डालते है महाराष्ट्र के 'लॉकडाउन रिलीफ पैकेज' के ब्योरे पर:-

1. अन्न सुरक्षा योजना लाभार्थी (मुफ्त अनाज) :

योजना - प्रति व्यक्ति 3 किलो गेंहू, 2 किलो चावल एक महीने तक मुफ्त अनाज
दावा - 24 मई तक 2,74,211.22 मेट्रिक टन मुफ्त अनाज लाभार्थियों को वितरित किया गया.

2. शिवभोजन थाली योजना:

योजना - एक महीने तक 2 लाख शिवभोजन थाली मुफ्त
दावा - 25 मई तक 54,12,430 थाली जरूरतमंदों को दी गई.

3. संजय गांधी निराधार योजना, केंद्र पुरस्कृत इंदिरा गांधी सिनियर सिटीजन, विधवा, दिव्यांग पेंशन योजनाएं:

योजना - संजय गांधी निराधार योजना: 22 अप्रैल 2021 को 435 करोड़ निधि निर्गमित किए है.
- श्रवणबाल योजना: 870 करोड़
- विविध पेन्शन योजनाएं: 123.500 करोड़
दावा - इन सभी कल्याणकारी योजनाओं से निर्गमित कुल 1428.50 करोड़ निधि से 24 मई तक 850.28 करोड़ का निधि लाभार्थियों के DBT अकाउंट पर पहुंच गया है.

4. रजिस्टर्ड कन्स्ट्रक्शन वर्कर्स कल्याण योजना:

योजना - महाराष्ट्र कंस्ट्रक्शन वर्कर्स कल्याण मंडल निधि से 1500 रुपये की वन टाइम पेमेंट की आर्थिक मदद
दावा - कुल 12 लाख में 10 लाख 33 हजार मजदूरों को 24 मई तक 154 करोड़ 95 लाख रुपये का निधि DBT खाते में जमा कर दिया है.

5. घरेलू कामगार योजना:

योजना - 1 लाख 5 हजार 500 घरेलू कामगारों को प्रति 1500 रुपये से 15 करोड़ 82 लाख 50 हजार देने का निर्णय हुआ
दावा - जिसमे सिर्फ 2,295 लाभार्थी पात्र हुए है जिन्हें 34 लाख 42,500 रुपये DBT एकाउंट में जमा किए है.

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6. स्ट्रीट वेंडर्स कल्याण योजना:

योजना - कुल 4,11,745 स्ट्रीट वेंडर्स के लिए 1500 के हिसाब से 61.75 करोड़ का निधि वितरित करने का निर्णय हुआ है.
दावा - 3,47,000 पत्र लाभार्थी वेंडर्स को 52.05 करोड़ निधि बैंक खाते में जमा किया है. 64,666 वेंडर्स को किया जाना है.

7. रिक्शा चालक:

योजना - 1500 रुपये मदद के लिए पोर्टल शुरू किया गया है.
दावा - 7.20 लाख ऑटो रिक्शा चालक और 509 सायकल रिक्शा चालकों को वित्तीय सहायता देने की प्रक्रिया शुरू है.

8. लॉकडाउन व्यवस्थापन:

योजना - कोविड-19 के व्यवस्थापन के लिए सभी जिलों को 3300 करोड़ उपलब्ध किया गया है.
दावा - कोविड-19 की वजह से सभी जिलों में दवाइयां, उपकरण, सुविधा निर्माण और अन्य व्यवस्थाओं के लिए 3300 करोड़ का निधि वितरित किया गया है.

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ये तो हो गए सरकारी आंकड़े. लेकिन जब क्विंट हिंदी ने लाभार्थियों की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि सरकार की मदद से इन श्रमिकों को शायद ही कोई दिलासा मिल पाया है.

उदाहरण के तौर पर घरेलू कामगार संगठन की बात करते है. सावित्रीबाई फुले घरेलू कामगार संगठन के अध्यक्ष सुभाष मराठे ने इस मदद को एक भद्दा मजाक बताया है. मराठे ने बताया, "इस संगठन में 26,500 महिलाओं में 7000 महुलाएँ रजिस्टर्ड है. लेकिन इन सभी में सिर्फ चंद महिलाओं के खाते में मदद के पैसे जमा हुए है. लॉकडाउन की वजह से ज्यादातर महिलाएं रेजिस्ट्रेशन रिन्यू भी नही करा पा रही जिस वजह से उन्हें अपात्र ठहराया गया है. वैसे पूरे राज्य में घरेलू कामगार महिलाओं की संख्या लगभग 35 से 40 लाख है. ऐसे में सिर्फ ढाई हजार महिलाएं पात्र होना ये मजाक नही तो और क्या है?"

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इसी तरह कंट्रक्शन वर्कर्स और फेरीवालों (स्ट्रीट वेंडर्स) को मदद की नाम पर सिर्फ निराशा हाथ आई है. महाराष्ट्र कंस्ट्रक्शन वर्कर्स कल्याण बोर्ड के पूर्व सदस्य दादासाहेब डोंगरे का कहना है कि,

“सरकार ने बोर्ड के जरिये जो मदद की घोषणा की है वो दरअसल विकासकों के सेस का हिस्सा है. जो कि मजदूरों के हक की कमाई है. इसमे सरकार का एक पैसा नही लगा है. दुर्भाग्य की बात ये की वही पैसा मिलने के लिए मजदूरों को सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है. डेढ़ महीने के लॉकडाउन में 1500 की मदद एक हफ्ते के लिए भी पर्याप्त नही है. ऐसे में सरकार प्रति महीना 10 हजार की मदद मजदूरों को दे ऐसी हमारी मांग है.”

इसके अलावा स्ट्रीट वेंडर्स और रिक्शा-टैक्सी चालक तो रास्ते पर आ चुके है. अगर बात करें पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तो महाराष्ट्र में तकरीबन 15 लाख रिक्शा चालक और मुंबई में 30 हजार टैक्सी चालक है. महाराष्ट्र रिक्शा - टैक्सी मालक-चालक कृति समिति के अध्यक्ष शशांक राव ने बताया कि, "लॉकडाउन के दौरान ट्रांसपोर्ट पर इतना बुरा असर पड़ा है कि लगभग 25% रिक्शा बैंक के किश्त ना चुकाने की वजह से जप्त कर लिए गए है. लॉकडाउन में लोग बाहर नही निकलते तो हमारी आमदनी नही होती.”

“सिर्फ मुंबई में 2 लाख तक रिक्शा चलती है जो दिन का तकरीबन 500 से 1000 रुपया कमाकर देती है. यानी दिन का लगभग 20 करोड़ का नुकसान सिर्फ मुंबई में हो रहा है. साथ ही सरकार से हमारी मांग है कि लॉकडाउन का भुगतान कम से कम महीना 10 हजार चालकों को दिया जाए ताकि वो अपना परिवार संभाल सके. लेकिन सरकार से हमे कोई मदद नही मिल रही.”
शशांक राव, महाराष्ट्र रिक्शा-टैक्सी मालक-चालक कृति समिति के अध्यक्ष

ऐसे में रिलीफ पैकेज की घोषणा कर उद्धव सरकार ने काफी सुर्खियां बटोर ली लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहानियां बयान कर रही है. इसीलिए कोरोना से लड़ने के लिए जिस तरह सरकार लॉकडाउन का हथियार इस्तेमाल कर रही है उसी तरह बेहाल लोगो के आर्थिक नुकसान के लिए कोई कारगर हथियार सरकार को जल्द से जल्द अख्तियार करने की जरूरत है. वरना महामारी की तरह बेरोजगारी और भुखमरी भी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी करेगी.

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