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मुख्य सचिव, कमिश्नर..अफसरों के लिए केंद्र से ‘भिड़ती’ रही हैं ममता

अलपन बंधोपाध्याय ने रिटायरमेंट ले लिया है, जिसके तुरंत बाद CM ममता ने उन्हें अपना चीफ एडवाइजर बनाने का ऐलान कर दिया.

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पहले राजीव कुमार, अब अलपन बंदोपाध्याय. केंद्र सरकार से कई मुद्दों पर चल रही तल्खियों के साथ-साथ ममता बनर्जी अफसरों के लिए भी 'पंगा' लेने से पीछे नहीं हटतीं. ताजा अपडेट ये है कि बंगाल के मुख्य सचिव बंधोपाध्याय को लेकर 'केंद्र बनाम राज्य' जैसा माहौल चल रहा था और अब अलपन बंधोपाध्याय ने रिटायरमेंट ले लिया है, जिसके तुरंत बाद ममता बनर्जी ने उन्हें अपना चीफ एडवाइजर बनाने का ऐलान कर दिया.

कुल मिलाकर तीन महीने का विस्तार पाए अलपन बंधोपाध्याय को केंद्र सरकार, राज्य से बाहर 'कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग' को रिपोर्ट करने के लिए कह रही थी लेकिन ममता बनर्जी अड़ी रहीं और अब अपना एडवाइजर बनाते हुए राज्य में रखने में कामयाब रहीं.

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ऐसा पहली बार नहीं जब ममता बनर्जी ने किसी अफसर को लेकर केंद्र से सीधी लड़ाई लड़ी है. इससे पहले 2019 में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के लिए धरने पर बैठ गई थीं.

3 फरवरी, 2019: जब अफसर के लिए धरने पर बैठ गईं थी ममता

सारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई की जांच के दौरान ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार सीबीआई के जरिए राज्य सरकार और पुलिस अफसरों को परेशान कर रही है. 3 फरवरी, 2019 को सीबीआई की कार्रवाई ने मामले को हाई वोल्टेज ड्रामे में तब्दील कर दिया. पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने कोलकाता पहुंची सीबीआई टीम के खिलाफ खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं और एक साथ CBI, PM मोदी, अमित शाह और National security Advisorअजीत डोभाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ऐसे प्रदर्शन को लेकर अलग-अलग जानकार अपनी राय जाहिर कर रहे थे कुछ का ये भी कहना था कि चुनाव से पहले ममता बनर्जी का ये कदम जोखिम भरा साबित हो सकता है. लेकिन ममता ने सुप्रीम कोर्ट तक ये लड़ाई लड़ी.

इन दोनों उदाहरणों के अलावा भी कई बार राज्य में अधिकारियों की कमी को वजह बताते हुए अफसरों को डेप्युटेशन पर भेजने का विरोध करती आईं हैं. ऐसे कदम को राजनीतिक पकड़ के साथ-साथ अधिकारियों और प्रशासन पर अच्छी पकड़ साबित करने के लिहाज से भी देखा जा सकता है.

विवाद को 'राजनीतिक' साबित करने में कामयाब रहीं ममता?

बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंधोपाध्याय से जुड़े विवाद को क्या ममता बनर्जी 'राजनीतिक' साबित करने में कामयाब रही हैं? इसका जवाब ममता बनर्जी के उस लेटर से मिलता है जो उन्होंने पीएम को लिखा था और उसमें मुख्य सचिव को राज्य से रिलीज नहीं करने की बात थी. इस लेटर में फैसले को कानूनों का उल्लंघन और जनहित के खिलाफ ममता ने बताया था.

पश्चिम बंगाल सरकार इस महत्वपूर्ण समय पर अपने मुख्य सचिव को रिलीज नहीं कर सकती है. हमारी समझ के आधार पर कि लागू कानूनों के अनुसार वैध परामर्श के बाद जारी किया गया विस्तार का पिछला आदेश जारी और वैध है.नवीनतम आदेश भी स्पष्ट रूप से लागू कानूनों के उल्लंघन और जनहित के खिलाफ है.
अलपन बंधोपाध्याय पर पीएम मोदी को लिखे लेटर में ममता बनर्जी
मुझे यकीन है कि आप इस राज्य के लोगों को एक अनुभवी अधिकारी (राज्य में नौकरशाही संवर्ग के प्रमुख) की सेवाओं को बिना किसी परामर्श के और बिना किसी पूर्व सूचना के समाप्त करके पीड़ा नहीं देंगे
अलपन बंधोपाध्याय पर पीएम मोदी को लिखे लेटर में ममता बनर्जी

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक को लेकर जो विवाद छिड़ा था, उसपर ममता बनर्जी ने ये आरोप लगा चुकी हैं कि चुनाव में हारने के बाद जानबूझकर उनको अपमानित करने का मौका केंद्र की तरफ से नहीं छोड़ा जा रहा है. ममता बनर्जी ने कहा था-

इस तरह से मेरी बेइज्जती मत कीजिए. हमने भारी बहुमत से जीत हासिल की है, क्या यही वजह है कि आप हमसे ऐसा व्यवहार कर रहे हैं. आपने कोशिश की आप हार गए. लेकिन हर रोज का झगड़ा क्यों?
ममता बनर्जी

कुल मिलाकर राजीव कुमार और अलपन बंधोपाध्याय दोनों ही अफसरों के केस में मुद्दे अलग-अलग थे. लेकिन दोनों ही में फ्रंटफुट पर आकर ममता बनर्जी ने ही केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोला और बहुत हद तक इसे सियासी साबित कर विपक्षी पार्टियों का समर्थन भी खुद के लिए जुटाया.

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