केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने जातीय हिंसा प्रभावित किसानों के लिए फसल मुआवजा पैकेज प्रदान करने के लिए मणिपुर कृषि विभाग के प्रस्ताव के बाद 38.06 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं. अधिकारियों ने रविवार को इसकी जानकारी दी.
कृषि विभाग के आयुक्त आर.के. दिनेश सिंह ने कहा कि विभाग ने पहले हिंसा प्रभावित किसान के लिए फसल मुआवजे के रूप में 38.06 करोड़ रुपये के पैकेज के लिए गृह मंत्रालय को प्रस्ताव दिया था और केंद्रीय मंत्रालय ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और फंड को मंजूरी दे दी.
उन्होंने मीडिया से कहा, "हमारी प्राथमिकता प्रभावित किसानों को जल्द से जल्द, कम से कम नवंबर महीने तक राहत पैकेज जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाना है."
कृषि विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि मणिपुर पांच महीने से संघर्ष के दौर से गुजर रहा है. साथ ही मानसून के दौरान अपर्याप्त वर्षा से फसल खराब होने की संभावना, खाद्य असुरक्षा और अशांत राज्य के लोगों की आजीविका के लिए खतरा पैदा हो गया है. राज्य कृषि विभाग ने हिंसा प्रभावित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए फसल मुआवजा पैकेज गृह मंत्रालय को सौंपा था.
किसानों के संगठन लूमी शिनमी अपुनबा लूप द्वारा किए गए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि घाटी में लगभग 9,719 हेक्टेयर धान के खेतों में फसल बर्बाद हो सकती है क्योंकि निचली तलहटी से हथियारबंद हमलावरों द्वारा गोलीबारी की छिटपुट घटनाओं के कारण किसान खेतों में जाने से डर रहे हैं.
अधिकारियों ने बताया कि अनुमान है कि इस साल कृषि क्षेत्र में राज्य को लगभग 226.50 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. इसमें सबसे अधिक नुकसान चावल उत्पादन में 211.41 करोड़ रुपये का होगा, जो कुल कृषि और संबद्ध गतिविधियों का 93.36 प्रतिशत है, जिसके बाद पशुधन के पालन में होने वाला नुकसान है.
संकटग्रस्त पांच घाटी जिलों में से इम्फाल पूर्व, इम्फाल पश्चिम, काकचिंग थौबल और बिष्णुपुर 5,288 हेक्टेयर कृषि भूमि क्षेत्र के मामले में सबसे अधिक प्रभावित हैं, जो 9,719 हेक्टेयर के कुल भूमि क्षेत्र का 54.4 प्रतिशत है.
बिष्णुपुर जिला, जो चुराचांदपुर के साथ सीमा साझा करता है, सबसे असुरक्षित जिलों में से एक रहा है.
जिले के फुबाला गांव में स्थिति का जायजा लेने आए संगठन के अध्यक्ष मुतुम चूरामनी के नेतृत्व में आई एक टीम ने कहा, “मौजूदा स्थिति ऐसी है कि हमारे किसान फिर से पहले जैसी स्थिति में आ गए हैं. सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद, वे धान के पौधों की देखभाल के लिए खेतों में जाने से डरते हैं.
उन्होंने कहा कि मई में हिंसा की शुरुआत के बाद से किसान खेतों में जाने से डर रहे हैं क्योंकि वे ज्यादातर तलहटी के पास स्थित हैं, जहां से रुक-रुक कर गोलीबारी होती रहती है.
उन्होंने कहा कि जुलाई में, सुरक्षा व्यवस्था के साथ, किसान किसी तरह जुताई शुरू करने और बुआई की तैयारी करने में कामयाब रहे. समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक राज्य स्तरीय निगरानी समिति भी बनाई गई थी.
समिति की सलाह के बाद, मणिपुर सरकार ने कृषि कार्य के लिए मानसून खरीफ सीजन के दौरान किसानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा कवर प्रदान करना शुरू कर दिया.
इस उद्देश्य से, वीवीआईपी सुरक्षा कवर को कम करके, प्रभावित जिलों में लगभग दो हजार सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया था और कृषक समुदाय से अनुरोध किया गया था कि वे अस्थिर स्थिति को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था के बिना खेती की गतिविधियों के लिए बाहर न निकलें.
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