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'बच्चे की सांस अटक जाती है'- MP का सिंगरौली जहां लोग कोयला ‘खाते-पीते-जीते’ हैं

Singrauli Pollution: सिंगरौली में 12 रोड और चौराहे हैं जहां कई बार AQI 900-1200 तक चला जाता है.

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सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है,

इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है?

साल 1978 में आई फिल्म 'गमन' का ये गाना आज मध्य प्रदेश की 'उर्जाधानी' सिंगरौली में रहने वाले लोगों के हालात को बखूबी बयां करता है. जहां हवा में जहर घुला हुआ है, हर सांस सिंगरौली वालों पर भारी है. काचन नदी के पानी में बर्फ जैसा सफेद, लेकिन जहरीला फोम भरा हुआ है. दिल्ली में सर्दियों के दौरान जब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 पार करता है, तो पूरे देश की राजनीति गरमा जाती है और AIIMS जैसे बड़े संस्थानों के डॉक्टरों का पैनल एडवाइजरी जारी करने लगता है. दूसरी तरफ सिंगरौली में AQI कई बार 900-1200 तक चला जाता है.

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सिंगरौली के लोग कोयला खाते हैं, पीते हैं और इसी में जीते हैं. इसकी वजह से यहां के लोग कई गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं. मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां जिंदगी की मुश्किलें बढ़ाती जा रही हैं. लेकिन दमघोंटू हवा इस शहर के लोगों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है.

ऋषि श्रृंगी मुनि की तपोभूमि सिंगरौली प्रदेश का वह जिला है जहां देश मे सबसे अधिक मात्रा में बिजली और कोयले का उत्पादन किया जाता है. 'काले हीरे'- कोयले के साथ यहां की जमीन सोना भी उगलती है यानी यहां सोने का उत्पादन भी किया जा रहा है. प्रदेश को सबसे अधिक राजस्व भी इसी जिले से मिलता है, लेकिन विडंबना यह है कि यहां के लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.

यहां की फिजाओं में जहर घुल गया है, जिससे लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत है. हवा-पानी सब जहरीली हो गई है. यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं, "हम तो कोयला खाते हैं, कोयला पीते हैं और कोयले में जीते हैं.. विकास के इस चकाचौंध में हम लोगों की जिंदगी में आज भी अंधेरा है."

देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शुमार सिंगरौली

वैसे तो सिंगरौली का नाम बिजली और कोयले उत्पादन के लिए देश- विदेश में जाना जाता है, लेकिन प्रदूषण के मामले में भी सिंगरौली जिला का नाम देश के सबसे प्रदूषित जिलों की सूची में शामिल है. विश्व भर के प्रदूषित क्षेत्रों का डाटा तैयार करने वाली अमेरिका की संस्था ब्लैक स्मिथ ने सिंगरौली को दुनिया के 10 सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार किया, वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण एजेंसी ने भी इसे देश के 22 अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों की सूची में रखा है. धरती के छह सर्वाधिक प्रदूषण चिंताओं में शुमार पारा यहां की हवाओं में घुल गया है और घुल रहा है. इसके लिए भी उड़न राख को जिम्मेदार बताया गया है.

सिंगरौली की सड़कों पर आपको हमेशा धुंध जैसी दिखाई देगी. आंखों में जलन और शाम जल्दी ढल जाती है. पेड़ों के पत्ते काले दिखते हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक इस राख से उनकी जिंदगी तो काली हुई ही है, बागों में फल आना कम आना और फसल उत्पादन तक गिर गया है.

सिंगरौली की जमीन भी दूषित

NGT की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगरौली की जमीन भी दूषित हो चुकी है. मिट्‌टी की जांच में पारे की मात्रा अधिक मिली है. यहां प्रति किलो मिट्‌टी में 10.009 मिलीग्राम पारा मिला है, जबकि मानक 6.6 है. खाद्यान्न के सैंपल की जांच में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है. इसी जमीन से पैदा होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर लोग बीमारियों की चपेट में रहे हैं. रिहंद सहित उसकी सहायक नदियों और नालों का पानी पारायुक्त होने से मछलियां भी जहरीली हो रही हैं. प्रति किलो मछली में 0.505 मिलीग्राम पारा मिला है, जो 0.25 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए.

एनसीएल सिंगरौली के कोयला खदान के समीप के रहवासी राजू दुबे बताते है कि खदान में हैवी ब्लास्टिंग की वजह से घरों की दीवारों में दरारें आ गई है. जब ब्लास्टिंग होती है तो पूरा इलाका सहम जाता है.

यहां हर रोज होता है तेज धमाका

शहर में प्रवेश करते ही आपका स्वागत तेज आवाज एवं कंपन के साथ होगा. आप ऐसा महसूस करेंगे की कहीं बड़ा ब्लास्ट हुआ है. लेकिन ऐसे धमाके सिंगरौली में रहने वाले लोगों की आदत में शुमार हो गए हैं. वे प्रतिदिन इन धमाकों को झेल रहे हैं.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि कोल माइंस कंपनियां मानकों को दरकिनार कर अनियंत्रित हैवी ब्लास्टिंग करती हैं. तेज धमाके की गूंज से इलाके के घरों में भारी दरारें आ गईं हैं. इससे पहले भी कई मकान गिर चुके हैं.

किसी के पैर की हडि्डयां गल रहीं, किसी को कैंसर हो रहा

सिंगरौली जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. ओपी झा के मुताबिक पानी टीडीएस और फ्लोराइड के चलते दांतों और हडि्डयों पर असर पड़ता है. दांत बदरंग हो जाते हैं, हडि्डयां टूटने लगती हैं. शरीर में हवा, पानी या खाने के माध्यम से यदि पारा जा रहा है, तो ये एक तरह से स्लो पॉइजन है. फेंफड़ों को ये डैमेज करता है. न्यूरोमस्कुलर संबंधी समस्याएं आती हैं. वायु प्रदूषण की वजह से सांस संबंधी बीमारी, चर्म रोग और TB आदि का खतरा बढ़ जाता है. महिलाओं में बांझपन हो सकता है.

चिलकाटाड़ के हीरालाल ने क्विंट से बात करते हुए कहा,

"मेरे 5 वर्षीय बेटे को अस्थमा है. उसे सांस लेने में परेशानी है. डॉक्टर को दिखाया तो बोले कि कोयले से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण ऐसा हुआ है."
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सिंगरौली जिले के मोरवा थाना प्रभारी उमेश प्रताप सिंह की 16 वर्षीय बेटी 9वीं क्लास में पढ़ती है. उसे भी सांस संबंधी परेशानी है. कई बार उसकी सांस अटक जाती है. उसका बीएचयू में इलाज चल रहा है.

चरगोड़ा गांव के 65 वर्षीय राजनारायण फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं. 15 साल पहले दोनों पैर टेढ़े होने लगे. अब स्थिति यह है कि चलना मुश्किल हो गया है.

कुशमाहा के वनवासी सेवा आश्रम से जुड़े जगत नारायण ने यहां के प्रदूषण का मामला NGT से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में मामला उठाया. फ्लोराइड वाले पानी से उनके पैर की हडि्डयां गल गईं. किडनी के पास कैंसर भी हो गया है.

टीबी से हर साल 40-50 लोगों की मौत, देश के औसत से बहुत ज्यादा

बैढ़न ब्लॉक के विंध्यनगर, नवजीवन विहार, देवसर ब्लॉक के कुर्सा और सरौंधा गांव और चितरंगी ब्लॉक के कोरसर, बर्दी व तमई गांव में टीबी के मरीज सबसे अधिक हैं. करीब 10 हजार की आबादी पर यहां हर साल 40 से 50 लोगों की मौत हो रही है. जबकि देश में 2020 में हर एक लाख लोगों पर 32 मौतें हुई हैं.

CMHO एनके जैन के मुताबिक सिंगरौली में प्रदूषण जनित बीमारियों जैसे सर्दी-खांसी, फेफड़ों और सांस से संबंधी, ब्लड की सप्लाई बाधित होना, दमा आदि के ज्यादा मरीज हैं. 2020 में 805, 2021 में 976 और 2022 में औसतन 1128 टीबी के मरीज सामने आए हैं. देश में यह आंकड़ा प्रति लाख लोगों पर 188 है, प्रदेश में हर 10 लाख पर औसतन 857 टीबी के मरीज सामने आए हैं.
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कई बार AQI 900-1200 तक चला जाता है

सिंगरौली में ऐसे 12 रोड और चौराहे हैं, जहां पूरे समय धूल और धुएं से कोहरा छाया रहता है. यहां कई बार एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 900-1200 तक चला जाता है. जो मानक स्तर से 20 से 25 गुना ज्यादा है. एनसीएल के सूर्य किरण गेट पर ये औसतन 500 के ऊपर रहता है. यह भी लाइव अपडेट नहीं होता. जबकि दिल्ली में AQI 400 तक पहुंचने पर देश भर में हाहाकार मच जाता है.

प्रशासन का क्या कहना है?

सिंगरौली में प्रदूषण रोकने के लिए NGT के दिए गए आदेशों का पालन न होने के संबंध में कलेक्टर अरुण परमार ने बताया कि बीते सप्ताह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कोल, ताप सहित अन्य कंपनियों के अधिकारियों की एक बैठक ली थी. इसमें NGT की ओर से जारी निर्देशों के पालन करने के लिए आदेश दिए हैं.

मॉनिटरिंग सिस्टम बढ़ाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कहा है. सिंगरौली में प्रदूषण कंट्रोल करना हमारे लिए भी एक चुनौती का काम है. फिर भी हम लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं. पुलिस और खनिज विभाग कार्रवाई भी कर रहे हैं. धूल रोकने के लिए रोड पर पानी का छिड़काव भी कराया जा रहा है.

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