मध्य प्रदेश में बुधवार, 13 जुलाई को नगर निकाय चुनाव (MP Urban Body Election) के लिए दूसरे चरण का मतदान संपन्न होने के साथ ही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), दोनों के नेताओं को नतीजों की चिंता सताने लगी है. पिछले चुनावों के विपरीत, 7 वर्षों के बाद हुए मेयर के शहरी निकाय चुनावों में दोनों पार्टियों के सभी शीर्ष नेताओं के साथ आमने-सामने की प्रतिस्पर्धा देखने को मिली.
MP में इन शहरी निकाय चुनावों में राज्य के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने इसे 2023 के एमपी विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल मैच के रूप में लिया. चाहे वो सीएम शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ की राज्य भर में सुपरफास्ट रैलियां और रोड शो हो या कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा जैसे नेताओं के पर्दे के पीछे के प्रयास, नगर निकाय चुनावों में सबकुछ झोंक दिया गया.
लेकिन इतनी मेहनत के बाद कम वोटिंग ने दोनों दलों के माथे पर पसीना ला दिया है. क्योंकि इससे समीकरण उलट सकते हैं.
पहले चरण में कम मतदान से कांग्रेस-बीजेपी दोनों हैरान
बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों सहित कई लोग आसान जीत की उम्मीद कर रहे थे और चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए आरएसएस और रिश्तेदार संगठन के समर्थन पर भरोसा करने के अपने प्रयोग की सफलता के बारे में भी आश्वस्त थे, लेकिन मतदाताओं ने उम्मीदों को काफी हद तक खराब कर दिया.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने क्विंट को बताया कि पहले चरण के मतदान के बाद स्थिति कुछ समझ से बाहर हो गई है. कम मतदान प्रतिशत ने सभी के मन में संदेह पैदा कर दिया है.
नेता ने यह भी उल्लेख किया कि बीजेपी का प्रयोग उल्टा पड़ सकता है, हालांकि, हमे अभी भी अधिकांश मेयर सीटों पर जीत हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं.
सभी समीकरणों और राजनीतिक विश्लेषण के बीच जमीन पर नजारा कुछ और था. उम्मीदवारों के बीच लड़ाई थी. तो कहीं उम्मीदवार चुनाव हारने के बाद लोगों से पैसे वापस मांग रहे थे.
चुनाव के दौरान बारिश की समस्या का सामना करना पड़ा और कई लोगों का मानना है कि यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. क्योंकि चुनाव के दौरान राज्य के कई हिस्सों में लोग जलजमाव और बाढ़ से पीड़ित हुए.
मतदान प्रतिशत ने न केवल बीजेपी को बल्कि कांग्रेस को भी मुश्किल में डाल दिया है, जिसने बीजेपी से कुछ दिन पहले अपने उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की थी, लेकिन मतदान प्रतिशत को लेकर चिंतित है.
कांग्रेस के कुछ नेता अपनी पार्टी की जीत से ज्यादा बीजेपी की हार को लेकर आश्वस्त हैं. हालांकि, कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए वोटिंग में कमी ने उनके अधिकांश समीकरणों का मजाक उड़ाया है और सभी की निगाहें अब नतीजों पर टिकी हैं.
बीजेपी-कांग्रेस में अंदरूनी लड़ाई के कारण भी परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं
अब सबको 20 जुलाई का इंतजार है जब नगर निकाय चुनाव के परिणाम आएंगे. नतीजों पर दोनों पार्टियों का काफी कुछ दांव पर लगा है. कथित तौर पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ग्रामीण निकाय चुनावों में लगभग समान जनादेश हासिल किया है, जिसके आधिकारिक परिणाम 14-15 जुलाई को घोषित किए जाने हैं.
ग्रामीण निकाय चुनाव जो पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाते, उनके परिणाम शहरी निकाय के परिणामों को और अधिक रोचक बना देंगे.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि ऐसा लग सकता है कि कांग्रेस पिछड़ रही है और निचले कैडर में उत्साह की कमी से पीड़ित है, बीजेपी को भी निचले रैंकों के बीच इसी तरह के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है.
बीजेपी विधायक ने अधिकारियों पर अपनी ही पार्टी को समर्थन देने का आरोप लगाया
बीजेपी के विधायक नारायण त्रिपाठी ने बुधवार को शहरी निकाय चुनावों के बीच अपनी ही पार्टी के पक्ष में अधिकारियों के कथित समर्थन देने पर सवाल उठाया. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि "मैं यहां घूम रहा हूं और मुझे नहीं लगता कि चुनाव प्रक्रिया कराने वाला कोई है. सभी अधिकारी, पटवारी से लेकर उच्च स्तर तक. सिर्फ एक पार्टी प्रचार-प्रसार देते दिख रहे हैं. यहां जिम्मेदार अधिकारियों बीजेपी को वोट दिलाते दिख रहे हैं. मैं बीजेपी का विरोधी विधायक हूं लेकिन जब ऐसी घटना होती है दुःख होता है. यह गलत है इसको बंद होना चाहिए"
सतना के जिला निर्वाचन अधिकारी और कलेक्टर अनुराग वर्मा में ऐसे किसी भी बात से इनकार किया है.
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