अलीगढ़ में जहरीली शराब से जिन परिवारों ने अपनों को खोया था, उनकी चीखें भी अब तक पूरी तरह नहीं रुकी. यूपी के शराब माफिया की एक और करतूत सामने आ गई. एक टीवी पत्रकार ऐसे ही किसी शराब माफिया से डर रहा था, उसे अपनी और परिवार की जान की फिक्र थी इसलिए पुलिस में गुहार लगाकर आया लेकिन अगले ही दिन उनकी मौत हो गई.
यहां पर कुछ शब्दों में लिख दिया गया ये मामला सिर्फ दो शब्दों की लफ्फाजी नहीं है. इसमें शराब माफिया का तांडव है, सैकड़ों मौतों के जिम्मेदार की तलाश है और एक फिक्स पैटर्न की कहानी है. जरा ये टाइमलाइन देखिए-
1 अप्रैल: खबर आई कि प्रतापगढ़ में जहरीली शराब पीने से कम से कम 6 की मौत. हर बार की तरह मौत हो जाने के बाद प्रशासन तेजी से सक्रिय हुआ और तीन अप्रैल को गोशाला में छापा पड़ा तो गोशाला में अवैध शराब का कारोबार चल रहा था. जेसीबी की खुदाई के बाद जहरीली शराब के ड्रम निकाले गए.
ये ‘सीन’ उस खौफनाक ‘फिल्म’ के हैं जिसमें हर बार स्टोरी एक जैसी ही होती है. मौतों के बाद पुलिसकर्मियों का तबादला हुआ कुछ की गिरफ्तारी हुई लेकिन शराब माफिया के करतूतों में कोई कमी नहीं आई.
27 मई: खबर आई कि अलीगढ़ में जहरीली खराब पीने के बाद लोगों की सेहत बिगड़ रही है. कई गांव के लोगों के बीमार पड़ने की बात आई और देखते ही देखते अस्पताल में शवों का अंबार लग गया. लोकल रिपोर्ट्स के मुताबिक, 70 से ज्यादा मौतें हुईं हैं मुख्य आरोपी पकड़ा गया है लेकिन 70 से ज्यादा जान गंवानी पड़ीं.
12 जून: जिस प्रतापगढ़ में जहरीली शराब से मार्च-अप्रैल में मौतें हुईं. अवैध शराब का जखीरा जेसीबी से निकाला गया. वहीं एक आशंकित पत्रकार अपना शिकायत पत्र पुलिस को देता है और कहता है कि एबीपी में काम करता हूं एक खबर न्यूज चैनल के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गई थी जिसके बाद चर्चा होने लगी. अब कुछ लोग बता रहे हैं कि शराब माफिया मुझसे नाराज है. जब भी मैं घर से बाहर किसी काम से निकलता हूं तो मुझे लगता है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है. कुछ शराब माफिया जो नाखुश हैं वो मुझे या परिवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं. सुरक्षा चाहिए.
13 जून: इसी पत्रकार का शव एक ईंट भट्टे से संदिग्ध अवस्था में बरामद होता है. जो पहली तस्वीर आई उसमें शर्ट के बटन खुले दिखते हैं. अर्धनग्न अवस्था में शव दिखता है. लेकिन पुलिस ने कुछ देर में ही बयान जारी कर कह दिया कि दुर्घटना में मौत हुई है. हालांकि, पत्रकार की पत्नी की तहरीर पर अब अज्ञात पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है.
ये बस किसी प्रतापगढ़ या अलीगढ़ की कहानी नहीं बेलगाम शराब माफिया की करतूत की तस्दीक यूपी में हुई कई घटनाएं करती हैं. जनवरी 2021, बुलंदशहर जिले के गांव जीतगढ़ी में हुई मौत, नवम्बर, 2020 में प्रयागराज के फूलपुर थाना क्षेत्र में देशी शराब पीने से चार लोगों की मौत हो, नवंबर, 2020 में लखनऊ के बंथरा इलाके में धनतेरस त्योहार के दिन जहरीली शराब की मौत की घटनाएं बताती हैं कि अब हर महीने ऐसी घटनाएं सुनने में आ रही हैं. पिछले कुछ महीनों में सैंकड़ों जान कई जिलों में जा चुकी हैं.
पुलिस का इन बदमाशों में कितना खौफ है वो कासगंज के उदाहरण से समझ सकते हैं. फरवरी, 2021 में कासगंज जिले में शराब माफियों ने पुलिस टीम पर ही हमला कर दिया. हमले में एक सिपाही की जान चली गई वहीं दारोगा गंभीर तौर पर घायल हो गए.
तो सरकार क्या करती है?
ऐसे में सवाल होगा कि जब महीने दर महीने शराब माफिया के कांड सामने आ रहे हैं तो राज्य सरकार क्या कर रही है? इन सभी मामलों में पुलिसकर्मियों का ट्रांसफर तो थानध्यक्ष को बदल देने जैसी कार्रवाई हुई. अलीगढ़ जहरीली शराब कांड में कार्रवाई का स्तर ज्यादा रहा और 31 मई को आबकारी विभाग के आयुक्त पी गुरुप्रसाद को हटा दिया गया. संयुक्त आबकारी आयुक्त, आगरा जोन रवि शंकर पाठक और उप आबकारी आयुक्त, अलीगढ़ मंडल को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया और विभागीय कार्रवाई चल रही है. कुल 7 अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की गई. 10 से ज्यादा पुलिसकर्मी इस मामले में सस्पेंड कर दिए गए.
अब सोचिए कि इन शराब माफिया की पकड़ कितनी मजबूत है कि अधिकारियों पर हो रही कार्रवाई से इनपर कुछ फर्क नहीं पड़ता. एक पत्रकार को शराब माफिया से सुरक्षा के लिए पुलिस को लिखना पड़ रहा है, उसका ‘कसूर’ बस इतना था कि उसने ऐसी अवैध गतिविधियों के बारे में लिखा था.
विपक्ष सीधे-सीधे लगा रहा शराब माफिया को शह देने का आरोप
समाजवादी पार्टी, कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां सीधे-सीधे योगी सरकार पर शराब माफिया के खिलाफ जरूरी कार्रवाई न कर उन्हें छूट देने का आरोप लगा रही हैं.सुलभ श्रीवास्तव की मौत के बाद प्रियंका गांधी का आरोप है कि राज्य में शराब माफिया उत्पात मचा रहे हैं और राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही है.अखिलेश यादव पूछ रहे हैं कि शराब माफियाों के हाथों हत्या की आशंका जताए जाने के बाद भी सुरक्षा क्यों नहीं दी गई. सरकार को ये बताना चाहिए. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का कहना है कि लोकतंत्र में ऐसे लोगों को गंवाना पड़ रहा है सच्चाई सामने लाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं.
कुल मिलाकर शराब माफिया का नाम पुलिस, पत्रकार पर हमले करने, सैंकड़ों लोगों की मौत का कारण बनने के लिए यूपी में लगातार सामने आ रहा है लेकिन इन पर पूरी तरह लगाम कैसे कसी जाएगी. इसका अता-पता नहीं दिखता.
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