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UP, बिहार जैसे राज्य अपने लोगों का हक केंद्र को सरेंडर कर रहे- PTR

Palanivel Thiagarajan से विपक्षी एकता, केंद्र राज्य संबंध समेत तमाम मुद्दों पर खास बातचीत

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

शरद पवार (Sharad Pawar) यशवंत सिन्हा मुलाकात के बाद विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने, तीसरे मोर्चे को लेकर बातें हो रही हैं. ऐसे में क्षेत्रिय पार्टियों की भूमिका काफी अहम हो जाती है. इन्हीं सुगबुगाहटों के बीच प्रमुख मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखने वाले तमिलनाडु के वित्त और मानव संसाधन मंत्री पलानीवेल त्यागराजन (Palanivel Thiagarajan) से क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने खास बातचीत की. पलानीवेल ने केंद्र और राज्य के वित्तीय अधिकारों, संघीय ढांचे का मुद्दा जीएसटी काउंसिल मीटिंग में जोरदार तरीके से उठाया था. इस बारे में भी उन्होंने इस इंटरव्यू में विस्तार से बात की.

पवार-यशवंत मुलाकात के बाद विपक्षी एकता की क्या गुंजाइश देखते हैं?

तटीय राज्यों में की स्थिति देखिए. महाराष्ट्र से घूमते हुए बंगाल तक चले जाइए, ज्यादा जगहों पर बीजेपी नदारद मिलेगी या फिर कमजोर मिलेगी. जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, आदि गैर हिंदी राज्यों में भी बीजेपी या तो कमजोर या दूसरे नंबर की पार्टी है. नॉर्थ ईस्ट पर केंद्र में जमी पार्टी का हमेशा दबदबा रहेगा, उसकी गिनती मत कीजिए. बिहार में भी बीजेपी गठबंधन को मुश्किल से जीत मिली थी. सच्चाई ये है बीजेपी अजेय,सर्वशक्तिमान नहीं है. 2019 में NDA को सिर्फ 42% वोट मिले, ये बहुमत नहीं है. सच ये है कि यूपी, एमपी, बिहार जैसे चंद राज्यों में बीजेपी मजबूत है. यूपी में 80 सीटों का होना वहां बीजेपी के मजबूत होने से उसे बढ़त मिल जाती है. केंद्र में मौजूदा सरकार के आने के बाद पता चल रहा है कि एक ही राज्य में 80 लोकसभा सीटों का होना कितना खतरनाक है. आज गैर हिंदी भाषी क्षेत्र अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. उनका दम घुट रहा है. बीजेपी पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करती. 2024 का चुनाव निर्णायक होने वाला है. 2024 में या तो गठबंधन सरकार बनेगी या 2029 तक और कठिन वक्त होगा. लेकिन उसके बाद बीजेपी का जाना तय है. कोई भी चीज हमेशा के लिए नहीं होती.

आपने GST मीटिंग में राज्यों के हितों की अनदेखी की बात की. केंद्र बनाम राज्यों के संघर्ष को आगे कैसे बढ़ाएंगे?

मोदी जब सीएम थे, तब राज्यों को ताकत देने की पैरवी किया करते थे. लेकिन अब पैसे से लेकर नीतियों तक पर केंद्र सरकार कब्जा करना चाहती है. हेल्थ से लेकर शिक्षा सब पर केंद्र ही नीति बनाना चाहता है. 2014 में तमिलनाडु को 15 पैसा प्रति लीटर पेट्रोल टैक्स मिलता था. 2021 में हमें 2 पैसा मिलता है. बीजेपी शासित राज्यों के साथ भी यही हुआ लेकिन वो चुप हैं. यूपी को 70 पैसे के बजाय 10 पैसे मिल रहा है. तो इस लिहाज से तमिलनाडु से ज्यादा नुकसान तो यूपी का हो रहा है, क्योंकि उन्हें प्रति लीटर 60 पैसे का नुकसान हो रहा है. दुखद है कि जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है वो केंद्र के खिलाफ कुछ बोलते नहीं. लेकिन इस तरह से केंद्र के सामने सरेंडर करने का मतलब है कि ये अपने लोगों की संपत्ति सरेंडर कर रहे हैं.

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बीजेपी को ‘धार्मिक’ तमिलनाडु में तरक्की से कैसे रोकेंगे?

तमिलनाडु का हिंदुत्व बीजेपी के हिंदुत्व से अलग है. तमिलनाडु में बीजेपी को 3-5% से ज्यादा वोट मिलना मुश्किल है. बीजेपी करिश्माई नेताओं को लाने के बजाय गुंडा तत्वों को जुटा रही है. तमिलनाडु में बीजेपी तीन सीट अच्छे उम्मीदवारों के कारण जीती, एक सीट पर कमल हासन के कारण जीत मिली. चार सीट जीतने के बावजूद तमिलनाडु में बीजेपी की हालत न सुधरी है, न सुधरेगी.

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