उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पुलिसिया कार्रवाई को कटघरे में खड़ा कर देने वाला एक मामला सामने आया है. जिले के थाना बरला इलाके के एक युवक को रेप के आरोप में दो साल दो महीने जेल में बिताने पड़े, लेकिन जब एक डीएनए रिपोर्ट सामने आई तो आरोप की पुष्टि नहीं हुई.
अमित नाम के इस युवक को अब जाकर इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिली है. मगर उसके परिवार का कहना है कि 'झूठे मुकदमे' की वजह से अमित का करियर बर्बाद हो गया और पूरे परिवार को समाज की अपमानजनक बातें झेलनी पड़ीं.
क्या है मामला?
अमित ने बताया कि वह जेल जाने से पहले फरीदाबाद में नौकरी करता था. उसने बताया कि जब वह नौकरी पर था, उस वक्त 23 फरवरी 2019 को उसके पिता का फोन आया कि गांव की एक नाबालिग किशोरी गर्भवती हुई है और उस लड़की ने अमित पर रेप का आरोप लगाया है. इसके बाद अमित खुद को निर्दोष बताते हुए छुट्टी लेकर गांव पहुंच गया. वहां जाकर उसे पता चला कि मामले में उसके दो भाईयों और फूफा पर भी आरोप लगाए गए हैं.
पुलिस से की गई शिकायत में लड़की के पिता ने आरोप लगाया था कि ‘पड़ोस में रहने वाले अमित ने एक दिन मौका पाकर घर में अकेली मेरी 13 साल की बेटी के साथ रेप किया और परिवार वालों को मारने की धमकी दी.’ साथ ही उन्होंने आरोप लगाया था कि इसके बाद भी ‘अमित ने कई बार मेरी बेटी का रेप किया.’
शिकायत में लड़की के पिता ने कहा था, ''मेरी बेटी जब गर्भवती हुई तो उसने सारी बातें बताईं. मेरी पत्नी शिकायत करने सज्जन पाल (अमित के पिता) के घर गई तो वहां पर सज्जन पाल के लड़कों -चंद्रशेखर और सुनील - और तिक्षणपाल ने मिलकर मेरी पत्नी और बेटी को लात घूंसों से बुरी तरह पीटा.''
शिकायत पर पुलिस ने आईपीसी और पोक्सो की धाराओं के तहत केस दर्ज किया था.
डीएनए रिपोर्ट से क्या पता चला?
अमित के वकील हरिओम वार्ष्णेय का आरोप है कि पुलिस ने सही ढंग से छानबीन नहीं की, इसी का नतीजा है कि एक निर्दोष युवक 26 महीने रेप के आरोप में जेल में रहा.
उन्होंने कहा, ‘’जब लड़की ने एक बच्ची को जन्म दिया तो डीएनए टेस्ट कराया गया. उससे पता चला कि अमित उस बच्ची का बायोलॉजिकल पिता नहीं है. कोर्ट ने इस बात को मानते हुए अमित को जमानत दे दी.’’
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 19 मार्च को अमित को जमानत दी थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ''यह साफ है कि एफआईआर काफी देरी के बाद दर्ज की गई थी, वो भी तब जब गर्भावस्था का पता चला था और अभियोजन पक्ष ने कहा कि यह आवेदक की ओर से किए गए रेप का नतीजा है. लेकिन सीलबंद लिफाफे में पेश की गई और कोर्ट के सामने खोली गई डीएनए रिपोर्ट से पता चलता है कि आवेदक भ्रूण का जैविक पिता नहीं है.''
वार्ष्णेय ने आरोप लगाया, ''यह गांव की रंजिश है, प्रधानी के चुनाव और दूसरी छोटी-छोटी बातों की. घटना से 2 साल पहले खेत पर भी इन लोगों का विवाद हो गया था. इसलिए अमित खिलाफ ये मुकदमा दर्ज कराया गया. (अमित वाला) पक्ष शुरू से ही पुलिस के सामने अपनी बात रख रहा था, लेकिन पुलिस ने दूसरे पक्ष से मिलकर दिन-दर-दिन पर्चे काटे.''
‘प्रमोशन के लिए घर नहीं आ रहा था बेटा’
अमित के परिवार के मुताबिक, घटना से करीब डेढ़ साल पहले से वह इसलिए छुट्टी लेकर गांव नहीं आता था कि उसे प्रमोशन मिलने वाला था, उसका मानना था कि अगर ज्यादा छुट्टी लेगा तो प्रमोशन में दिक्कत आएगी.
अमित के पिता सज्जन पाल ने कहा, ‘’हमारा निर्दोष बेटा जेल भेजा गया था. 26 महीने हमने कैसे काटे हैं, इसका अंदाजा सिर्फ हमको है. अगर हमारा बेटा दोषी होता तो वह शायद पुलिस के बुलावे पर बेखौफ फरीदाबाद से चलकर यहां न पहुंचता और उसी ने यह प्रस्ताव रखा कि मैं निर्दोष हूं, अगर किसी को मेरी बात पर भरोसा नहीं तो डीएनए टेस्ट करा लिया जाए. इसी प्रस्ताव का परिणाम है कि आज हमारा बेटा हमारे पास है.’’
जिस लड़की के रेप के आरोप लगाए गए थे, उसे लेकर अमित का कहना है, '' वो मेरे गांव की लड़की है लेकिन मेरे उससे कोई संबंध नहीं हैं मिलना जुलना भी नहीं है.''
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