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एटा में आखिरी सांस ले रही ईशन नदी,पानी की किल्लत से जूझते लोग, बच्चे भी बीमार

Ishan river losing its existence: जरा और मिर्जापुर सई में लोग पेयजल के संकट से जूझते हुए बीमार पड़ रहे हैं.

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राीबनदियां अपना रास्ता खुद बनाती है, इसी वाक्य के सहारे सिंचाई विभाग चल रहा है. एटा में ईशन नदी सूखने की कगार पर है,. कहते हैं जब नदियां अपना अस्तित्व खोती है तो इंसानों के जीवन में भी खतरा मंडराने लगता है. ये खतरा केवल आसपास के रहने वाले इंसानों में ही नहीं बल्कि जीव जंतुओं पशुओं और खेती पर भी मंडराने लगता है.

उत्तर प्रदेश (UP) के एटा (Etah) में पहुंची क्विंट हिंदी ने ईशन नदी और उसके पास में बसे गांवों को नजदीकी से देखा.

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ईसन नदी (Ishan river losing its existence) उत्तर प्रदेश में गंगा नदी की एक सहयोगी नदी है. इसकी लंबाई 317 किमी है. इसका उद्गम स्थल एटा से 14 किमी दक्षिण-पश्चिम की ओर नगला सुजान गांव के पास सिकन्दराराऊ नाले के टेल पर है. ईसन नदी उद्गम स्थल से जनपद एटा, मैनपुरी, कन्नौज, कानपुर नगर से होकर गुजरती है.

ईसन नदी का आउटफाल कानपुर नगर के बिल्हौर से कन्नौज की तरफ जीटी रोड पर बने पुल से लगभग 7.5 किमी नीचे गंगा नदी में मिलता है. ईसन नदी का कुल कैचमेंट एरिया 3015 किमी स्क्वायर है. जनपद एटा में ईसन नदी की कुल लंबाई करीब 57 किमी है.

अब इस नदी का अस्तित्व खतरे में है. एटा शहर में नदी के किनारों पर अवैध कब्जा हो गया है. जिससे नदी के वाटर रिचार्ज प्वाइंट अपने अस्तित्व को लेकर लड़ रहे हैं और क्षेत्र में जल संकट गहराता चला जा रहा है.

एटा के सकीट ब्लाक के करीब एक दर्जन गांव में तीस हजार की जनसंख्या निवास करती है. जो अब पेयजल के संकट से जूझ रही है. सबसे पहले क्विंट हिंदी सराय जवाहरपुर ग्राम पंचायत के एक छोटे से गांव जार में पहुंची. ये गांव ईशन नदी के तट पर बसा हुआ है और दूसरे गांव मिर्जापुर सई में लोग पेयजल के संकट से जूझते हुए बीमार पड़ रहे हैं. ग्रामीणों ने जिसका आरोप क्षेत्र की पेयजल समस्या के ऊपर लगाया है.

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नदी के साथ इंसानों के जीवन पर भी गहराया खतरा

सराय जवाहरपुर ग्राम पंचायत का गांव 'जार' ईशन नदी के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है. इस गांव की कुल आबादी लगभग तीन हजार है. गांव के रहने वाले कुछ लोगों से क्विंट हिंदी की टीम ने बातचीत की. बातचीत के दौरान जार गांव के रहने वाले सोवरन सिंह बताते हैं-

हमारे गांव के किनारे पर ईशन नदी बहती थी. पहले इस नदी में पानी आता था तब हमारे गांव का पानी पीने योग्य था. वर्तमान में इस नदी में पानी 1990 से नहीं देखा है.जो इस समय थोड़ा पानी आता है वह शहर के नालों का पानी आता है. मेरे गांव में पीने का पानी का खारा (दूषित) है, जिससे सिंचाई में भी बहुत दिक्कत होती है.
सोवरन सिंह, स्थायी निवासी, जार

सोवरन सिंह कहते हैं, 'अगर ये नदी जीवित हो जाए तो पशुओं, सिंचाई और आसपास के गांव में जलस्तर में सुधार हो सकता है. जब नदी बहती थी उस समय लोग नदी का ही पानी पीते थे.'

हम लोग अपने गांव (जार) से एक किमी दूर स्थित बरई गांव से पीने का पानी लेकर आते हैं. जिससे भोजन पकाते हैं. इस (खारा) पानी से हम लोग कपड़े भी नहीं साफ सकते हैं. गांव के पास नदी है उसमें शहर के गंदे नालों का पानी आता है. हमारा पूरा क्षेत्र में खारा पानी ही मिलता है.
बादाम सिंह,स्थानीय निवासी, जार
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शिशुओं और गर्भवती महिलाओ में बढ़ रही है परेशानी

क्विंट हिंदी की टीम अब नगला जार गांव से 5 किमी दूर बसे गांव मिर्जापुर सई पहुंची. इस गांव में भी पीने के पानी की काफी समस्या थी. इस दौरान क्विंट हिंदी ने गांव के लोगों से बातचीत की.

50 साल पहले तक पानी सही था. अब दिनों दिन पानी खारा होता जा रहा है. पहले हमारे गांव में पानी की सप्लाई के लिए ओवरहेड टैंक बनाया गया था. जिसको खराब हुए करीब दस साल बीत गए हैं और लंबे समय गुजरने के बाद भी प्रशासन और सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं गया है.
स्थानीय निवासी, मिर्जापुर सई

बीना कुमारी अपने परिवार के साथ ग्राम मिर्जापुर सई में रहती है. उनके पति विजय कुमार मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते है. इस समय वो गांव से बाहर यानी दिल्ली शहर में रहते हैं और मजदूरी करते हैं.

हमारी भाभी के दो बच्चे हैं. उनके तीन ऑपरेशन हुए हैं. जिसमें से एक बच्चे की मृत्यु मां के गर्भ में ही हो गई थी. एक लड़की का नाम रश्मि है जिसकी उम्र 4 वर्ष हो गई है और उसका वजन मात्र 8 किलो है. दूसरा बच्चा एक लड़का है, जिसका नाम हितेश है. हितेश की अभी उम्र एक वर्ष है उसका वजन मात्र 2.5 किलो ग्राम है और जन्म के समय उसका वजन 1.6 किग्रा था. गांव में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं में कुपोषणता के लक्षण दिखाई देते हैं. हमारे गांव में इस समय 4 बच्चे बीमार हैं, जिनकी उम्र 9 साल तक की हो गई है और उन बच्चों का पैर अभी तक जमीन पर नहीं छुआ है. वह अचेत अवस्था में चारपाई पर ही लेटे रहते हैं
राजेश कुमार, स्थानीय निवासी, मिर्जापुर सई
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गांव में आज भी महिलाओं के बीच में काम करने वाली 'बाई' होती है. वह घरों में जाकर शादी और जन्म के समय काम करती है. मेरी मुलाकात गांव में हर घर तक पहुंच बनाने वाली कामवाली बाई 'अनीता देवी' से होती है उनकी शादी इस गांव में 30 वर्ष पूर्व हुई थी और इस समय उनकी उम्र 50 वर्ष है.
हमारे गांव में हर साल 8 से 10 महिलाओं का गर्भपात हो जाता है. खारा पानी एक मुख्य वजह है. गर्भवती के समय महिलाओं को पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जिससे गर्भ में पल रहा शिशु स्वस्थ रह सके. यहां पर तो ऐसा पानी है पीते ही दस्त शुरू हो जाते हैं. गांव के रहने वाले गरीब परिवार की महिलाएं उनसे जूझती है. बगैर पानी के कोई कैसे रह सकता है. नेता केवल वोट के समय ही आते है और कहते हैं कि व्यवस्था करवा देंगे, लेकिन कोई कुछ नहीं करता है.
अनीता देवी, कामवाली बाई

एटा में कुछ ऐसी है 'हर घर जल योजना' की हालत

एटा के जल निगम ग्रामीण के एक्सइन राजेंद्र कुमार ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा कि, 'हमारे जनपद में हर घर जल योजना में घर घर जल पहुचाने के लिए 518 ग्राम पंचायतों में 3 कंपनिया काम कर रही है. एटा में काम अभी शुरू हुआ है.

हमारे यहां पर 80 गांव खारे पानी की चपेट में है. इन लोगों को पीने का जल नहीं मिल पाता है. इन गांव का TDS 5000 से 6000 तक मिलता है. इससे बीमारियों का जन्म होता है. हम लोग काम कर रहे हैं. खारे पानी वाले स्थानों पर अभी कोई भी गांव में योजना शुरू नहीं हो पाई है. जबकि पूरे जिले में मात्र 45 ग्राम पंचायतों में योजना शुरू हो चुकी है. एक ग्राम पंचायत में योजना शुरू करने के लिए 2 से पांच करोड़ के बीच में लागत आती है. खारे पानी में फ्लोराइड आयरन समेत कई तत्व बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं.
राजेंद्र कुमार, एक्सइन, जल निगम ग्रामीण
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नदी को बचाने के लिए उठाए कदम रहे नाकाफी

एटा में ईशन नदी को बचाने के लिए 22 जुलाई, 2019 में एक मुहिम शुरू की गई थी. 'जनसेवा सेवा भाव' से नदी पर 10 दिनों तक कार्य किया गया था. नदी उस समय भी अपनी अनदेखी से जूझ रही थी. जिसके बाद में गांव-गांव के सहयोग और मनरेगा से नदी की सफाई करवाई गई. जिसके बाद लोगों को लगा कि नदी अब जीने लगेगी, लेकिन 2023 में नदी फिर अपना अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंच गई है.

ईशन नदी की कुल लंबाई 317 किमी है. ये नदी एटा, मैनपुरी, कन्नौज और कानपुर नगर होते हुई गंगा नदी में समाहित हो जाती है. एटा में इस नदी का कुल भाग 57 किमी तक आता है. ये एटा के सकीट, निधौलीकला, शीतलपुर विकाश खंड से होकर गुजरती है.

पानी पर रिसर्च करने वाले हेमेंद्र गुप्ता, जिन्होंने आईआईटी कानपुर से पढ़ाई की है. हेमेंद्र गुप्ता क्विंट हिंदी से कहते हैं, 'भारत पानी के संकट ग्रस्त देशों में एक है. हमारी नदियों के आसपास वाटर रिचार्ज प्वाइंट दिनों दिन खत्म हो रहे हैं. खारा पानी पीने से स्वास्थ्य पर भी फर्क पड़ता है'

नदियों और पानी पर रिसर्च करने वाले देवासीस भट्टाचार्य क्विंट हिंदी से कहते हैं-

नदियों को बचाने के लिए सरकार के द्वारा उठाए गए कदम प्रयुक्त नहीं है. जगह -जगह नदियों की जमीनों पर कब्जा हो रहे हैं. लगभग हर बड़े शहर का गंदा पानी नदियों में ही जा रहा है. एटा में ईशन नदी को पुनर्जीवित करने की जरूरत है. नदियों में गहराई बढ़ा करके नदी के आसपास गांव में तालाब का निर्माण होना चाहिए, जिससे वह तालाब वाटर रिचार्ज प्वाइंट का काम करेगा. शहर के नाले जो नदी में जाते हैं उन पर रोक लगनी चाहिए. नदी की गहराई बढ़ने से तलहटी में सिल्ट की एक मोटी परत जम जाती है. ये पानी किसानों की सिंचाई में बहुत उपयोगी होता है और फसल भी अच्छी होती है.
देवासीस भट्टाचार्य

देवासीस भट्टाचार्य आगे कहते हैं कि, नदी में पानी आने से आसपास के किसानों के साथ -साथ जगह का भू जल स्तर बढ़ेगा. इस समय पानी को बचाने के लिए उठाए जा रहे कदम नाकाफी है. हमारे देश में वर्षा का एक तिहाई जल ही प्रयोग में आ पाता है. अगर समय रहते इन गांवों और इस नदी को सही नहीं किया गया तो आगे आने वाले समय में इस क्षेत्र में जल संकट और भी गहरा जायेगा.

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एटा के मुख्य विकास अधिकारी अवधेश बाजपेई ने क्विंट हिंदी को बताया हैं-

हमारे यहां जो ईशन नदी निकली हुई है. इस पर हम लोगों ने पिछली बार कुछ जगह सफाई भी करवाई थी. एटा नगर पालिका के शहर का गंदा पानी पहले से भी ईशन नदी में जा रहा था और आज भी जाता है. यहां एटा में कोई वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है और एटा नगर पालिका के पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं. पानी कहां ले जाये. इस समस्या से लंबे समय तक छुटकारा पाने के लिए IIT Kanpur को DPR तैयार करने लिए कहा गया है. जिस पर वो लोग अपना कार्य कर रहे है. जिसके बाद में कार्य करवाएं जायेंगे.
अवधेश बाजपेई, मुख्य विकास अधिकारी

जल संकट को लेकर भारत के कुछ ऐसे है आंकड़े

भारत दुनिया में जल संकट ग्रस्त देशों में एक है. भारत के कई शहरों में टैंकर के द्वारा पानी की आपूर्ति की जाती है जो कि भूजल पर निर्भर है. संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट में बताया गया है-

भूजल भारत के ग्रामीण पेयजल का 80 प्रतिशत, शहरी का 50 प्रतिशत और सिंचाई का 75 प्रतिशत प्रदान करता है. केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 89 प्रतिशत किसानी , 3 प्रतिशत औद्योगिक और 8 प्रतिशत पानी घरेलू उपयोग में खर्च होता है. भारत में मुख्य रूप से धान और गन्ने को फसल होती है. भारत में बारिश के पानी का उपयोग एक तिहाई ही हो पाता है. दुनिया की 10 प्रतिशत आबादी पानी की किल्लत से जूझ रही है. अगले सात सालों में पानी 40 प्रतिशत तक कम हो जाएगा. दुनिया में हर चार व्यक्तियों में से एक शख्स को पीने का शुद्ध पानी नही मिल पाता है.

भारत के जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार ये है आंकड़े

3 अप्रैल, 2023 को भारत सरकार के जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा था, 'अगस्त 2019 तक ग्रामीण इलाकों के 3.23 करोड़ नल के कनेक्शन प्रदान किया गया था. अब मार्च 2023 तक 8.36 करोड़ परिवारों को नल के कनेक्शन दिए गए है. हमारे देश की कुल ग्रामीण परिवार 19.43 करोड़ परिवारों में 11.59 करोड़ परिवारों को नल कनेक्शन से पानी मिल रहा है.'

इस समय देश के कुल ग्रामीण परिवारों में 59 प्रतिशत लोगों को जल का कनेक्शन दिया जा चुका है. उत्तर प्रदेश में 3 अप्रैल, 2023 तक 93.84 ग्रामीण परिवार को नल के कनेक्शन दिए जा चुके है. ये कुल ग्रामीण परिवारों का 35.37 प्रतिशत है.

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