उत्तर प्रदेश में मेरठ पुलिस ने पंचायत चुनाव में 'शांति भंग होने के खतरे की आशंका पर' पत्रकारिता के एक छात्र को नोटिस भेजा है. हालांकि इस छात्र का कहना है कि वह तो गांव में रहता ही नहीं है और उसकी पंचायत चुनाव में भी कोई रुचि नहीं है. उसका सवाल है कि ऐसे में किस आधार पर पुलिस ने उसे नोटिस भेजा है. क्विंट ने जब स्थानीय थाने के एसओ से इस नोटिस के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''हमको लगा कि इनसे खतरा है इसलिए हमने नोटिस दिया.''
क्या है मामला?
स्वामी विवेकानंद सुभारती यूनिवर्सिटी, मेरठ से पत्रकारिता में स्नातक के दूसरे साल के छात्र जाकिर अली त्यागी को 7 मार्च की शाम परीक्षितगढ़ थाना से एक नोटिस मिला.
इस नोटिस में कहा गया है, “विपक्षीगण का आगामी ग्राम पंचायत चुनाव को लेकर विवाद है, जिससे फौरी तौर पर शांतिभंग होने का अंदेशा है.”
नोटिस में आगे कहा गया है कि "प्रभारी निरीक्षक की उक्त आख्या से संतुष्ट हूं कि विपक्षीगण से फौरी शांतिभंग की संभावना पैदा हो गई है, इसलिए विपक्षीगण कारण बताएं कि क्यों न उनको आदेश दिया जाए कि एक साल तक शांति बनाए रखने के लिए 50000 रुपये का व्यक्तिगत बंध पत्र और इतनी ही धनराशि की दो-दो मान्य जमानत पेश करें."
नोटिस पर जाकिर का क्या कहना है?
नोटिस पर जाकिर कहते हैं, ''पुलिस को यह लगता है कि मेरे गांव में रहने से यहां की शांति भंग हो सकती है तो मैं बताना चाहता हूं कि 2013 में जब मुजफ्फरनगर में हो रहे दंगे के बीच मेरठ पुलिस के सीओ साहब हमारे गांव 'बड़ागांव' आकर शांति की अपील कर रहे थे, तब उनके कहने पर मैंने भी शांति की अपील करते हुए अपने गांव वालों के बीच एक भाषण दिया था. जिससे खुश होकर सीओ साहब ने मुझे सम्मानित करते हुए एक पेन भेंट किया था, और आज मेरठ पुलिस को लगता है कि 2021 पंचायत चुनाव में मुझ से गांव की शांति भंग हो जाएगी?''
जाकिर ने कहा कि पुलिस कहेगी तब ही गांव की शांति बहाल होगी, ऐसा बिल्कुल नहीं है, शांति बनाए रखना हमारी अपनी जिम्मेदारी है, जिसे हम हर हालत में निभाते रहे हैं और निभाते रहेंगे. उन्होंने कहा, ‘’न मेरे रिश्तेदार, न सगे संबंधी पंचायत चुनाव लड़ रहे हैं. फिर भी पुलिस बता नहीं रही कि मैं कैसे किसी का विपक्षी बन गया? जब भी मैं गांव आता हूं गांव के कुछ बीजेपी कार्यकर्ता मुझे टारगेट करते हैं.’’
जाकिर का आरोप है कि उन्हें पहले भी ‘बेवजह’ अलग-अलग मामलों में निशाना बनाया जा चुका है. उन्होंने कहा, ‘’पिछली बार जब मैं दिल्ली से आया उसके एक दिन बाद मुझे पुलिस ने पहले से दर्ज अज्ञात पर गोकशी के केस में जेल भेज दिया. उस एफआईआर में मेरा नाम तक नहीं था, इस मामले में केस चल रहा है, आज तक पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी. उससे पहले भी मुझ पर 2017 में देशद्रोह का केस दर्ज हुआ था, तब भी मैं जेल गया था. दोनों बार मिलाकर मैंने साठ दिन जेल में गुजारे हैं.’’
जाकिर आज खुद को एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर भी स्थापित कर रहे हैं. वह कहते हैं कि उनके साथ इतनी कम उम्र में जो 'जुल्म' हुआ उसके बाद वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बनकर लोगों की मदद करते रहते हैं. उन्होंने कहा, ''हाल ही में मुझे एनएचआरसी के अधिकारी अनिल प्राशर ने मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर प्रमाणपत्र भी दिया. एनएचआरसी की ओर से मैं अक्सर फैक्ट फाइंडिंग के लिए बाहर जाता रहता हूं.''
जाकिर ने कहा, ''मुझे डर इस बात का है कि मान लीजिए पंचायत चुनाव के दौरान मैं बाहर रहता हूं और गांव में कोई मामला हो गया तब भी इस नोटिस और पुलिस द्वारा लिए गए मेरे दस्तखत के आधार पर मुझे ही पहले की तरह दोषी बना दिया जाएगा.''
स्थानीय पुलिस का क्या कहना है?
जाकिर को मिले नोटिस पर क्विंट ने स्थानीय थाने परीक्षितगढ़ के एसओ आनंद प्रकाश मिश्रा से पूछा कि ऐसा कौन सा 'खतरा' था जिसकी वजह से एक छात्र को नोटिस देना पड़ा. इस पर एसओ ने कहा, "यह कानूनी प्रक्रिया है, जो पंचायत चुनाव को ध्यान में रखकर हर गांव में की जाती है. यह एक तरह से वॉर्निंग मात्र है. जिस दिन चुनाव खत्म हो जाएंगे उस दिन ये भी खत्म हो जाएगी. रही बात इनकी (जाकिर) तो 'हमको लगा कि इनसे खतरा है, इसलिए हमने नोटिस दिया." हालांकि थाना प्रभारी ने इस बात का स्पष्ट जवाब नहीं दिया कि जाकिर अली त्यागी से 'खतरे की आशंका' क्यों है.
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