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UP:रोज की सुबह मीठी करने वाले गन्ना किसानों की जिंदगी क्यों कड़वी?

गन्ना किसानों का नया पेराई सीजन शुरू लेकिन पिछले साल का भुगतान अब तक नहीं

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रोज हमारी सुबह में मिठास घोलने वाले गन्ना किसानों की जिंदगी उसी चीनी के कारण कड़वी हो रही है. आज हम यूपी के गन्ना किसानों की कहानी बता रहे हैं. ये किसान पिछले साल के बकाए का इंतजार आज भी कर रहे हैं. नया सीजन आ चुका है और चीनी की सरकारी लठ यानी नीतियां ऐसी हैं कि किसान फिर से उन्हीं मिलों को गन्ना सप्लाई करने के लिए मजबूर हैं या फिर गुड़ बनाने वाले कोल्हू पर औने-पौने दामों पर गन्ना देने को मजबूर हैं.

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नया गन्ना सीजन शुरू, पुराना भुगतान नहीं

नया गन्ना सीजन शुरु हुए करीब दो महीने गुजर चुके हैं. यूपी में गन्ना किसानों का कुल बकाया 2960 करोड़ रुपए. इसमें से 94.63 करोड़ रुपए बस्ती ज़िले के हज़ारों किसान का है. भुगतान के लिए बस्ती के किसान इलाहाबाद हाईकोर्ट गए थे. वहां आदेश हुआ कि 28 नवंबर तक भुगतान हो जाए. लेकिन बस्ती की रुधौली शुगर मिल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई,जहां उसे भुगतान के लिए 31 मार्च, 2021 तक की मोहलत मिल गई.

हाईकोर्ट ने 28 सितम्बर को केस नंबर-13952/2020 के तहत दो महीने में भुगतान का आदेश दिया. लेकिन किसानों को भुगतान न करना पड़े इसलिए शुगर मिल ने वकीलों पर लाखों खर्च कर दिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी ये नहीं सोचा कि परेशान गन्ना किसानों का 31मार्च तक क्या हाल होगा.
बाबूलाल चौधरी, गन्ना किसान, बस्ती
भुगतान न होने के पीछे बहुत सारे कारण हैं. फैक्ट्री की एबिलिटी है नहीं. एरिया है नहीं, प्रोडक्शन नहीं है. इथेनॉल की बिसलरी यूनिट ढाई साल से बंद पड़ी है. यह यूनिट ठीक हो जाएगी तो सिस्टम अपने आप पटरी पर आ जाएगा. हालात ठीक होने की तरफ हैं. रही बात भुगतान की तो सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है तो हम 31 मार्च तक कर देंगे.
आर एन त्रिपाठी, जीएम, हिंदुस्तान शुगर मिल, रुधौली, बस्ती

मसला सिर्फ बस्ती जिले का ही नहीं है. उत्तरप्रेदश के अन्य जिलों के गन्ना किसानों ने भी क्विंट से अपनी पीड़ा साझा की.

1 दिसंबर को बहन की शादी है. पिछली पेमेंट आज तक नहीं हुई. हम लगातार DM साहब से गुहार लगा रहे हैं. डीएम साहब कह रहे हैं कि भुगतान राशि के भरोसे मत रहो. बताइये अब हम अपनी बहन की शादी कैसे करें? हम किसान ऐसे ही लॉकडाउन में टूट चुके हैं. बीमारी अलग परेशान किए हुई है. हमारी हर समस्या का इलाज भुगतान का पैसा है, लेकिन भुगतान से मिलने वाला ढाई लाख रुपया कब मिलेगा पता नहीं.
सतीश राठोर, गन्ना किसान, हरदोई
भुगतान नहीं होने की स्थिति में यदि मिल को गन्ना नहीं सप्लाई करते तो तय सीमा के तहत सट्टा पर्ची कैंसिल हो जाएगी. इसलिए मजबूरीवश हमें गन्ना सप्लाई करना होता है ताकि आगामी वर्ष हम डिफॉल्टर न हो जाएं. पहले किसी कारणवश जैसे शादी, मौत या लेबर नहीं होने पर हम तय तारीख पर गन्ना सप्लाई नहीं कर पाते थे तो हमें 3 दिन का समय मिलता था. अब यह सुविधा भी छीन ली गई है. गन्ना किसान त्रस्त हैं. हमारे क्षेत्र में बाढ़ की वजह से 3 हजार एकड़ गन्ना बर्बाद हो गया.
जाकिर, गन्ना किसान, लखीमपुर खीरी
पहले ऐसा नहीं होता था. एक दो महीने पैसा रुकता था. अक्टूबर तक पूरा पैसा मिल जाता था. लेकिन अब 2018 से ज्यादा समस्या हो गई है. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि 14 दिन के अंदर गन्ने का भुगतान होगा. 14 दिन न सही, एक महीने में तो मिल जाता. पिछली सरकारों में गन्ने की कीमत भी बढ़ती थी,अब तीन से साल से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. ऊपर से भुगतान नहीं होने से कर्ज लेकर खेती करने वाले किसान ब्याज तले दबते जाते हैं.
जीतेन्द्र यादव, गन्ना किसान, सीतापुर, उत्तरप्रदेश
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    उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल(फोटो: क्विंट हिंदी)
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    उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल(फोटो: क्विंट हिंदी)

बंपर उत्पादन, और ज्यादा नुकसान

उत्तरप्रदेश सरकार के अनुसार प्रदेश में पेराई सत्र 2019-20 में कुल 119 चीनी मिलों का संचालन हुआ और गन्ना लगभग 64,000 गांवों से लिया गया. प्रदेश का कुल गन्ना क्षेत्रफल 26.79 लाख हेक्टेयर था जिसकी गन्ना उत्पादकता 811 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अधिक है. पेराई सत्र 2019-20 में प्रदेश की 119 चीनी मिलों ने 1118.02 लाख टन गन्ने की पेराई करते हुए 126.37 लाख टन चीनी उत्पादन किया. ये प्रदेश में सर्वाधिक गन्ना पेराई और चीनी उत्पादन का रिकॉर्ड है.
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11 सितम्बर 2020 को लोकसभा में गन्ना किसानों के बकाए को लेकर कहा गया कि देश भर के 16 गन्ना उत्पादक राज्यों में 2017-2018 सत्र का 242 करोड़ रुपए, 2018-2019 पेराई सत्र का 548 करोड़ और 2019-2020 का 12,994 करोड़ रुपये का बकाया है.

उत्तरप्रदेश में गन्ना किसानों के साथ समस्या क्या है?

सरकारी नीतियों कुछ ऐसी हैं कि मिलों की सप्लाई तो सुनिश्चित है लेकिन किसानों का भुगतान नहीं. सीतापुर से गन्ना किसान और एक्टिविस्ट लाल सिंह यादव कहते हैं कि किसान की सबसे बड़ी समस्या शुगर सप्लाई की पर्चियां हैं. मान लीजिए शुगर मिल क्षेत्र में एक किसान के पास 1 हेक्टेयर जमीन है. वह उस पर गन्ना उगाकर शुगर मिल को देना चाहता है तो सबसे पहले उसे सरकारी गन्ना समिति में रजिस्ट्रेशन कर एक अकाउंट (सट्टा पर्ची) खुलवाना है. जिसके तहत तय होता है कि किसान को कितना गन्ना शुगर मिल को सप्लाई करना है. अब मान लीजिए तय हुआ है कि किसान को 200 क्विंटल अगले वर्ष सप्लाई करना है. 200 क्विंटल सप्लाई कर गया तो आगामी वर्ष के लिए भी वह 200 क्विंटल ही सप्लाई करेगा. लेकिन किसी कारणवश जैसे बाढ़ की वजह से गन्ना 50 क्विंटल ही पैदा हुआ तो उसे आगामी वर्ष 200 क्विंटल नहीं, 50 क्विंटल ही सप्लाई करने की इजाजत है.

किसान को हर वर्ष खौफ रहता है कि तय 200 क्विंटल गन्ने की सप्लाई नहीं हुई तो कम सप्लाई यानी 50 क्विंटल की सट्टा पर्ची बनेगी और अगले वर्ष में उसके 150 क्विंटल गन्ने का क्या होगा. मिल लेगी नहीं तो गुड़-बेल को देना होगा उससे लागत भी नहीं निकलती.
लाल सिंह यादव, गन्ना किसान और एक्टिविस्ट
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जब हमने यूपी के अपर गन्ना आयुक्त से किसानों के बकाया भुगतान के बारे में पूछा तो उन्होंने भी मिलों की समस्या ही गिनाई.

चीनी मीलों की अपनी प्रॉब्लम हैं. वहां इतने पैसे नहीं निकल रहे कि वह भुगतान कर सकें. वे जितना बेचती हैं, उसी हिसाब से धीरे-धीरे अदा करेंगी. किसानों का बकाया तो हर साल ही रहता है. यह कंटिन्यूटी बनी रहती है. तमाम परेशानियां होने के बावजूद लोग गन्ने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं.
वी के शुक्ला, अपर गन्ना आयुक्त, यूपी

मिलों के साथ क्या दिक्कत है?

इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (ISMA) के उत्तर प्रदेश यूनिट के जनरल सेक्रेटी दीपक गुप्ता के मुताबिक पिछले दिनों जिस अनुपात में गन्ना के दाम बढ़े, उस अनुपात में चीनी के दाम नहीं बढ़े. चीनी की कीमत थोड़ी पॉलिटिकली सेंसिटिव है. कोई भी सरकार चीनी के दाम बढ़ाने में संकोच करती है.

आज हमारी कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन है साढ़े चौंतीस रुपये,जबकि सेलिंग प्राइस बत्तीस रुपए प्रति किलो है. यानी ढाई रुपये प्रति किलो का नुकसान. इसके साथ और भी खर्च हैं. इस समय प्रति क्विंटल हमें लगभग साढ़े चार सौ रुपये का नुकसान हो रहा है. ऐसे में चीनी कंपनियां कहां तक अपने खाते से इसे रिकवर करेंगी.
दीपक गुप्ता, जनरल सिक्रेट्री ISMA, उत्तरप्रदेश

दीपक गुप्ता आगे कहते हैं -''गन्ने के बाइप्रोडक्ट से फैक्ट्रियों को बहुत सहयोग मिलता है. लेकिन गन्ने के फाइबर से जो हम थर्मल पावर का उत्पादन करते हैं उसे हम स्टेट को ही बेच सकते हैं. किसी और को नहीं बेच सकते. उसका बकाया सवा साल से उत्तर प्रदेश सरकार ने नहीं दिया. एक हजार करोड़ का बकाया है. बाकी के बाइप्रोडक्ट के साथ भी कुछ इसी तरह के मसले हैं तो हम जैसे-जैसे पैसे आते हैं किसानों को भुगतान करते जाते हैं."

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तो उपाय क्या है?

क्विंट के इस सवाल के जवाब में दीपक गुप्ता कहते हैं कि किसानों को गन्ने की जो कीमत हमें देनी है वो सरकार तय करती है,जो बढ़ती जा रही है. हम किस कीमत पर चीनी बेचेंगे इस पर बात नहीं बन रही है. अमित शाह जी के नेतृत्व में एक उपसमिति बनी थी जिसकी सिफारिश थी कि चीनी के दाम बढ़ाकर 33 रुपये कर दिए जाएं. लेकिन दो महीने से यह भी पेंडिंग है. हम चीनी एक्सपोर्ट करते हैं तो मिल हेल्दी होती हैं, लेकिन 2020-2021पेराई सत्र के लिए एक्सपोर्ट पॉलिसी सरकार ने डिक्लेयर नहीं की, जिससे नुकसान हो रहा है.

पिछले साल का करीब 110 लाख टन चीन स्टॉक में है. नए सत्र में 300 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद है. यानी इस सत्र के बाद देश में चीनी होगी 400 लाख टन से ज्यादा. जबकि कुल खपत ही है 250 लाख टन. निर्यात को बढ़ाना देने के लिए सरकार दो साल से एक्सपोर्ट पॉलिसी के तहत मिलों को सब्सिडी दे रही थी,लेकिन इस बार न नई पॉलिसी आई है और न ही आने की उम्मीद है. फाइनेंशियल टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक खाद्य एवं वाणिज्य मंत्री ने कहा है कि इस बार सब्सिडी पर विचार नहीं हो रहा. अगर जरूरत पड़ी तो देखा जाएगा.
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हालांकि कृषि मामलों के विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि- “भुगतान की समस्या कोई इस साल की नहीं है, यह हर साल की है. मैं तो इन मिलों को कहूंगा कि एक महीने अपने लेबर की सैलरी रोक कर देखें, हंगामा हो जाएगा. सच तो यह है कि गन्ना किसानों की समस्या से किसी को कोई मतलब नहीं है.

मुझे कोई कारण नहीं नजर आता कि शुगर मिल भुगतान करने में असमर्थ हों. गन्ने का मेन प्रोडक्ट चीनी है, लेकिन 26 बाई प्रोडक्ट भी हैं. जब इनकम के इतने स्रोत हैं तो फिर समस्या कहां है.
देविंदर शर्मा, कृषि मामलों के एक्सपर्ट

अब आप ये समझिए कि किसान जमकर मेहनत कर रहा है. बंपर पैदावाह हो रही है. देश में चीनी का सरप्लस है. क्या ये उसका गुनाह है? फिर क्यों उसकी जिंदगी कड़वी हो गई है?

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