पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के केदारनाथ धाम दौरे से पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने तीर्थ पुरोहितों से मुलाकात कर मामले को शांत कर लिया है. मुख्यमंत्री धामी 3 नवंबर को केदारनाथ धाम पहुंचे, जहां पर देवास्थानम बोर्ड के विरोध में तीर्थ पुरोहितों से मुलाकात की, जो कि सकारात्मक रही. कुछ दिनों पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को तीर्थ पुरोहितों के गुस्से का सामना करना पड़ा था.
इस विरोध के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावित केदारनाथ यात्रा पर भी असमंजस के बादल छा गए थे.
तीर्थ पुरोहितों से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि, "हमारी सरकार जन भावनाओं का सम्मान करने वाली सरकार है. तीर्थों, पुरोहित और पुजारियों के मान सम्मान को कोई ठेस नहीं पहुंचाई जाएगी." इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, जिलाध्यक्ष दिनेश उनियाल, केदार महा पंचायत के विनोद शुक्ला सहित प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे. मुख्यमंत्री ने पुरोहितों से 30 नवंबर तक का समय मांगा है, जिस पर केदार महापंचायत ने हामी भरी दी है.
पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया
मुख्यमंत्री ने केदार के दर्शन किए और पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया. उन्होंने 5 नवंबर को प्रधानमंत्री के केदारनाथ दौरे के लिए की जा रही तैयारियों का भी जायजा लिया. उन्होंने कहा कि आधुनिक इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण किया जा रहा है. पहले चरण के काम हो चुके हैं. दूसरे चरण के काम शुरू हो रहे हैं. आदि गुरू शंकराचार्य की समाधि का लोकार्पण करने के साथ ही उनकी प्रतिमा का भी अनावरण किया जाएगा.
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(फोटो: Accessed by Quint)
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मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएम मोदी की केदारनाथ के प्रति विशेष आस्था और श्रद्धा है. उनका उत्तराखंड को दुनिया की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर विकसित करने का विजन है.
सरकार से क्यों नाराज हैं पुरोहित?
ये पूरा विवाद देवस्थानम बोर्ड को लेकर शुरू हुआ, जिसमें चारधाम समेत 50 से ज्यादा मंदिरों को शामिल किया गया था. सरकार ने कहा था कि ये सभी मंदिर और चारों धाम इस बोर्ड के अधीन रहेंगे. सरकार ने कहा है कि देवस्थानम बोर्ड की स्थापना चारों धामों में विकास कार्यों और लोगों को सुविधाएं देने के लिए की गई.
पुरोहितों का कहना है कि इस फैसले में उनकी राय नहीं ली गई थी. साथ ही उनका कहना है कि जब 1939 से बद्री-केदार मंदिर समिति चल रही थी तो उसे हटाकर नया बोर्ड क्यों बनाया गया. नया बोर्ड बनने से चारों धामों की पूजा विधि और पारंपरिक चीजों पर असर पड़ सकता है.
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