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न हथियार-न थाना, आज भी अंग्रेजों के जमाने की राजस्व पुलिस के भरोसे आधा उत्तराखंड

Uttarakhand के 7500 गांव अदालतों के निर्देशों के बावजूद अंग्रेजी राज की विरासत झेलने को मजबूर

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राज्य
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उत्तराखंड (Uttarakhand) में ऋषिकेश हत्याकांड (Rishikesh murder case) के बाद प्रदेश में लागू दोहरी पुलिस प्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं. राज्य में राजस्व (Revenue) पुलिस व्यवस्था को खत्म कर रेगुलर पुलिस सिस्टम लागू करने की मांग जोर पकड़ रही है. विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कानून व्यवस्था मजबूत करने के लिए राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने की मांग की है.

साल 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट (Uttarakhand Highcourt) ने भी सरकार को 6 महीनों के अंदर राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने के आदेश दिए थे. हालांकि इस मामले में सरकार की ओर से अभी तक कोई भी कदम नहीं उठाए गए. अब एक बार फिर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से राज्य से राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म ना करने को लेकर जवाब तलब किया है.

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क्या है राजस्व पुलिस व्यवस्था?

आधुनिक दौर में कहीं से भी 100 नंबर पर फोन करके पुलिस की मदद ली जा सकती है. यहां तक की एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी थानों और पुलिस चौकियों में जाने की जरूरत नहीं है. पुलिस के ऑनलाइन मोबाइल ऐप के जरिए एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. ऐसे में उत्तराखंड के प्रमुख शहर ऋषिकेश से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर हुए हत्याकांड के मामले को पुलिस थाने तक पहुंचने में 4 दिन का समय लग गया.

ऐसा उत्तराखंड में लागू दोहरी पुलिस प्रणाली के कारण हुआ. दरअसल उत्तराखंड में सामान्य पुलिस के समानांतर राजस्व पुलिस या पटवारी पुलिस व्यवस्था भी चलती है. जिसमें राजस्व विभाग के अधिकारियों को पुलिस के अधिकार प्राप्त होते हैं.

इस पुलिस व्यवस्था में पटवारी दरोगा की भूमिका में होते हैं. कोई आपराधिक घटना होने पर राजस्व पुलिस चौकी में एफआईआर दर्ज की जाती है और पटवारी ही मामले की जांच करते हैं. चोरी, मारपीट, धोखाधड़ी, छेड़छाड़ जैसे मामलों में पटवारी ही कानूनी कार्रवाई करते हैं हालांकि हत्या, बलात्कार जैसे संगीन अपराधिक मामलों को पुलिस को ट्रांसफर किया जाता है.

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पटवारी पुलिस व्यवस्था का इतिहास

उत्तराखंड एकमात्र ऐसा राज्य है जहां दोहरी पुलिस प्रणाली लागू है. प्रदेश में राजस्व पुलिस का इतिहास ब्रिटिश कालीन है. करीब 161 साल पहले 1857 के सैन्य विद्रोह से घबराए अंग्रेजों ने साल 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया. जिसमें देश भर में पुलिस थाने और चौकियां बनाई गईं.

कानून व्यवस्था संभालने के लिए पुलिस अधिकारियों और सिपाहियों की तैनाती की गई. लेकिन पहाड़ी इलाकों में आपराधिक गतिविधि कम होने के कारण वहां अधिक पुलिस थाने नहीं बनाए गए और वर्तमान के उत्तराखंड के तत्कालीन कुमाऊं परिक्षेत्र में कर वसूली के लिए लगाए गए अधिकारियों को ही पुलिस के अधिकार दे दिए गए.

उत्तराखंड के करीब आधे हिस्से में आज भी अंग्रेजों की बनाई पुलिस व्यवस्था लागू है. जिसमें लगभग 7500 गांव आते हैं. हालांकि समय के साथ यह व्यवस्था अप्रासंगिक होती जा रही है. जानकार कहते हैं कि पहले की तुलना में अब पहाड़ी क्षेत्रों में आपराधिक गतिविधियों में इजाफा हुआ है. जिनकी रोकथाम के लिए  राजस्व पुलिस व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो रही है.

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संसाधन विहीन है राजस्व पुलिस व्यवस्था

कई मामलों में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल भले ही उठते हो लेकिन पुलिस डिपार्टमेंट के पास ना सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल्कि अपराधियों से निपटने के लिए भी पर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन होते हैं. आरोपियों को सजा दिलाने के लिए पुलिस किसी भी प्रकरण में गहनता से जांच करती है और साक्ष्य जुटाकर कोर्ट में पेश करती है.

Uttarakhand के 7500 गांव अदालतों के निर्देशों के बावजूद अंग्रेजी राज की विरासत झेलने को मजबूर

उत्तराखंड की एक राजस्व पुलिस चौकी 

(फोटो- क्विंट हिंदी)  

लेकिन राजस्व पुलिस व्यवस्था पूरी तरह संसाधन विहीन है. प्रदेश के जो क्षेत्र राजस्व पुलिस के अंतर्गत आते हैं वहां राजस्व चौकियां स्थापित है. नैनीताल हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट अनिल डबराल का कहना है कि इन चौकियों में आमतौर पर 2 से 3 कर्मचारी तैनात रहते हैं. जिनमें एक पटवारी और उसके सहयोगी शामिल होते हैं. कानूनी कार्रवाई करने और किसी आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए जहां पुलिस कर्मियों के पास पर्याप्त प्रशिक्षण और हथियार होते हैं वहीं पटवारी पुलिस के पास हथियार के नाम पर एक डंडा और हथकड़ी रहते हैं.

इसके अलावा मामले की जांच के लिए पुलिस अधिकारियों को फॉरेंसिक, साइबर और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की भी ट्रेनिंग दी जाती है. हालांकि पटवारी पुलिस कर्मी को इस तरह की ट्रेनिंग नहीं मिलती. जिससे कई बार मामले की जांच अटकी रह जाती है और पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता या आरोपी सजा से बच जाता है. अनिल डबराल बताते हैं कि एक मामले में हुई कमजोर इन्वेस्टिगेशन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने को लेकर टिप्पणी की थी.

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क्यों खत्म नहीं हो पाई पटवारी पुलिस व्यवस्था?

उत्तराखंड में दोहरी पुलिस व्यवस्था खत्म ना हो पाने की वजह IAS वर्सेस IPS के टकराव को माना जाता है. दरअसल प्रदेश का आधे से ज्यादा भूभाग राजस्व पुलिस के अंतर्गत आता है. राजस्व कर्मचारी आईएएस अफसरों के निर्देशों का पालन करते हैं.

जबकि सामान्य पुलिस व्यवस्था आईपीएस अफसर संभालते हैं. दोनों वर्गों के अफसरों के बीच वर्चस्व के टकराव के चलते आज भी ब्रिटिश कालीन राजस्व पुलिस उत्तराखंड में काम कर रही है.

उत्तराखंड के रिटायर्ड डीजीपी बीएस सिद्धू का कहना है कि अपने कार्यकाल के दौरान साल 2015 में उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर राजस्व पुलिस को खत्म करने का प्रस्ताव दिया था. उनके प्रस्ताव के बाद कुछ थानों को राजस्व पुलिस से सामान्य पुलिस में परिवर्तित भी किया गया था. हालांकि सरकारों ने मामला गंभीरता से नहीं लिया इसीलिए प्रदेश में अप्रसांगिक पटवारी पुलिस व्यवस्था आज भी लागू है. सरकार को चाहिए कि पटवारी पुलिस व्यवस्था को जल्द से जल्द खत्म करके पूरे प्रदेश में एकल पुलिस प्रणाली लागू हो.

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क्यों उठ रही खत्म करने की मांग?

उत्तराखंड का ऋषिकेश हत्याकांड मामला इन दिनों देश भर में छाया हुआ है. पौड़ी जिले की यमकेश्वर तहसील के जिस क्षेत्र में यह घटना घटी वह क्षेत्र राजस्व पुलिस के क्षेत्राधिकार में आता है.

बताया जा रहा है कि 18 सितंबर को रिसेप्शनिस्ट को नहर में धक्का देने के बाद अगले दिन आरोपी पुलकित आर्य ने राजस्व पुलिस चौकी पहुंचकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

जिसमें तत्कालीन पटवारी विवेक कुमार 4 दिनों तक हीला हवाली करता रहा और मामले की ठीक से जांच नहीं हो सकी. इतना ही नहीं जब मृतका के पिता अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे तो पटवारी ने उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

4 दिन बाद मामला जब ऋषिकेश स्थित लक्ष्मण झूला थाना पुलिस को ट्रांसफर हुआ तो पुलिस ने 24 घंटों के भीतर ही तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। जांच में लापरवाही करने पर पटवारी विवेक कुमार को सस्पेंड कर दिया गया है.

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