विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने महाराष्ट्र के लिए सुझाए गए 15 कानूनी सुधारों पर एक ब्रीफिंग बुक पब्लिश की है. ब्रीफिंग बुक में कोरोना महामारी में उभरकर सामने आए उन कानूनी मुद्दों पर जोर दिया गया है, जो आम जनता को न्याय देने में बाधा बने. इसमें स्वास्थ्य, पर्यावरण, श्रम, शिक्षा, न्यायिक और जेल सुधार, भूमि, स्थानीय प्रशासन, इनोवेशन और स्किल जैसे क्षेत्र शामिल हैं.
बता दें कि विधि सेंटर एक स्वतंत्र थिंक टैंक है जो बेहतर शासन के लिए कानूनों में सुधार संशोधन करता है. 29 जून को विधि सेंटर ने महाराष्ट्र में एक नया ऑफिस शुरू किया. जिसमें विधि महाराष्ट्र ने पूर्व वित्त मंत्री और तेहरवें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. विजय केळकर के हाथों 'फिफ्टीन सजेस्टेड लीगल रिफॉर्म्स फॉर महाराष्ट्र' ये ब्रीफिंग बुक लॉन्च की.
महाराष्ट्र को कौन से कानूनी सुधारों की है जरूरत?
1. सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रबंधन के लिए राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून का मसौदा तैयार करना
कोरोना महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को आपात स्थितियों से निपटने में कानूनी ढांचे की खामियों को उजागर किया. केंद्र और राज्य सरकारों ने एपिडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 और डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 के तहत ad-hoc तरीके से काम किया. जिस वजह से निजी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं द्वारा किए गए इलाज के दरों को सीमित करना, गैर कोविड मरीजों का इलाज और प्रशासन में हर एक स्तर पर दिए अधिकारों में अस्पष्टता जैसे मुद्दे लोगों की असुविधाओं का कारण बने.
इसलिए ये यह सुझाव दिया गया है कि राज्य सरकार एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून का मसौदा तैयार करे जो एविडेंस पर आधारित फैसले ले, जवाबदेही की एक प्रणाली स्थापित करे. पीएचई प्रोटोकॉल निश्चित करे, स्पष्ट और प्रभावी तंत्रणा और शिकायत निवारण तंत्र विकसित करे.
2. मानसिक स्वास्थ्य के लिए कम्युनिटी बेस्ड वर्क फोर्स का निर्माण
मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2016 के तहत आत्महत्या जैसे कृत्य को अपराधमुक्त कर मानसिक तौर पर बीमार व्यक्तियों को घरेलू और कम्युनिटी बेस्ड देखभाल पर जोर दिया है. लेकिन महामारी में मानसिक तनाव से जूझ रहे लोगों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. आशा वर्कर्स भी इस काम के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं हैं. बल्कि खुद आशा वर्कर्स कम सैलरी और अतिरिक्त काम से तनाव में हैं.
ऐसे में वेतन श्रेणी बढ़ाकर अतिरिक्त आशा वर्कर्स को NRHM योजना के तहत काम पर रखें. मेंटल हेल्थ स्वयंसेवकों के भर्ती और प्रशिक्षण के लिए बजट बढ़ाएं. स्वास्थ्य विभाग इन स्वयंसेवकों के लिए पुणे के महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (MIMH) और बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरॉसाइन्सेस (NIMHANS) द्वारा एक साइकोथेरेपी पर ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाए.
3. जल संसाधन प्रबंधन के माध्यम से जल प्रदूषण पर अंकुश लगाएं
महाराष्ट्र में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा औद्योगीकरण हुआ है जिसके चलते नदियां बड़े पैमाने पर प्रदूषित हुई हैं. साथ ही ज्यादातर गांव और छोटे शहर इन प्रदूषित नदियों के पास बसे हैं. इसके बावजूद पाया गया है कि महाराष्ट्र पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (MPCB) प्रदूषण फैला रहे इंडस्ट्रियल यूनिट्स पर कार्रवाई करने में कम पड़ता है.
ऐसे में महाराष्ट्र वाटर रिसोर्स रेग्युलेटरी अथॉरिटी एक्ट, 2005 के सेक्शन के तहत प्रदूषण फैलाने वालों को कठोर दंड का भुगतान और MPCB के साथ मिलकर वाटर क्वालिटी सुधारने के लिए कदम उठाने की जरूरत है.
4. स्ट्रीट वेंडर्स के लिए सड़कें अधिक अनुकूल बनाई जाएं
देश की करीब 4 फीसदी आबादी यानी 2 लाख 50 हजार स्ट्रीट वेंडर्स सिर्फ मुंबई में हैं. महामारी के दौरान प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहूड एंड रेग्युलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग एक्ट, 2014 के तहत इन्हें अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित किया गया. महाराष्ट्र सरकार ने इस कानून के केवल 6 शिफारिशें लागू की हैं.
इसलिए इस कानून में स्ट्रीट वेंडर्स के खिलाफ BMC और राज्य सरकार को कार्रवाई के दिए वीटो पावर्स, योग्य सर्वे नियम के तहत उनकी मान्यता, डोमिसाइल सर्टिफिकेट का नियम और इस तबके के लिए कोई योजना बनाने की शिफारिश की गई है.
5. ट्रांसजेंडर बच्चों को शिक्षा का अधिकार
महाराष्ट्र राईट टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन रूल्स, 2011 के RTE कानून के तहत शिक्षा व्यवस्था के बाहर रहने वालों में से 98% बच्चे ट्रांसजेंडर होने का अनुमान है. स्कूलों में भेदभाव, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न और शोषण के कारण इन बच्चों के स्कूल से निकलने की संख्या बड़ी है.
ऐसे में परिवार से अलग रहने वाले, पहचान पत्र, उम्र का दाखला या पता ना होने पर ट्रांसजेंडर बच्चों को स्कूल में एडमिशन ना देना कानून के खिलाफ है. इन बच्चों के माता पिता के अभाव में उन्हें शिक्षा व्यवस्था में लाना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए
6. दिव्यांग बच्चों के लिए डिजिटल शिक्षा का समावेश
महामारी की वजह से छात्रों को डिजिटल शिक्षा पर निर्भर होना पड़ा. इससे डिजिटल उपकरणों से वंचित और उसे इस्तमाल करने में असक्षम बच्चों और गहरा असर पड़ा है. इस व्यवस्था ने देश मे एक 'डिजिटल डिवाइड' पैदा कर दिया है. सिर्फ महाराष्ट्र में ऐसे 6.84 लाख दिव्यांग बच्चे शामिल हैं. जिसमें 70 फीसदी ग्रामीण महाराष्ट्र में रहते हैं.
इसीलिए दिव्यांग बच्चों को डिजिटल साक्षरता में शामिल करने के लिए एक स्टेट पॉलिसी बनानी चाहिए. RTE और राईट ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट, 2016 के तहत इसे कानूनी दायरे में लाना चाहिए. साथ ही इससे जुड़े सभी वेंडर्स को सूचित किया जाए कि दिव्यांग बच्चो के लिए सस्ती डिजिटल उपकरणों मुहैया कराई जाए.
7. मॉडल जेंडर कोर्ट की आवश्यकता
NCRB डाटा के मुताबिक महाराष्ट्र में पिछले तीन सालों में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं. इसके बावजूद 94% केसे अभी भी लंबित हैं. जिसमें कनविक्शन रेट सिर्फ 13.7% है. ऐसे में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में ज्यादातर रेप और अत्याचारों के केसे चलते हैं, कुछ मामलों में पााया गया है कि जज भी संवेदनशील नहीं होते.
इसलिए दिल्ली के कुछ कोर्ट्स की तरह पीड़िता के लिए कोर्ट में अलग से कंफेशन रूम हो, जिससे उसे अपराधी का सामना ना करना पड़े. क्योंकि ज्यादातर केसे में गवाह और पीड़िता के बयानों से मुकर जाने से अपराधी बरी हो जाते हैं. पीड़िता को ऑडियो/वीडियो गवाही देने की सुविधा हो. एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मॉडल जेंडर कोर्ट का ब्लूप्रिंट तैयार कर उसे सभी जगहों पर लागू किया जाए.
8. महामारी के बाद भी कोर्ट में वर्चुअल हेयरिंग को इजाजत मिले
सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट ने महामारी के दौरान वर्चुअल सुनवाई को प्राथमिकता दी. लेकिन ई-फाइलिंग और कोर्ट के कामकाज में विसंगितयों के कारण काफी अड़चने आईं. साथ ही दूर दराज ग्रामीण इलाकों में रहने वाले याचिकाकर्ता और प्रतिवादियों को अच्छे नेटवर्क की उपलब्धि नहीं थी.
ऐसे में सिंगापुर जैसे देशों में लगभग कोर्ट की सभी कार्रवाइयों से लेकर मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ई-चालान तक सभी वर्चुअल माध्यम से शुरू कर दिया गया है. इसी तरह की व्यवस्था अपनाई जानी चाहिए. जिससे कोर्ट कार्रवाई में होने वाले खर्च की बचत और विसंगतियां दूर हो सके.
9. नाबालिग अपराधियों का बाल सुधार केंद्र में पुनर्वास
महाराष्ट्र बोर्स्टल स्कूल रूल्स, 1965 के रूल 2A के तहत नाबालिग अपराधियों में लड़कियां और मराठियों को बाल सुधार केंद्र में भेजने पर पाबंदी है. इस कानून की वजह से कई नाबालिगों के जेल जाकर पुनर्वास के बदले सह आरोपी बनने की संभावना होती है. दरअसल ऐसे केसे में सामने आया है कि जेलरों को भी नाबालिग अपराधियों को सुधार केंद्र भेजने के अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती.
ऐसे में भाषा के आधार पर भेदभाव करने वाले इस कानून में बदलाव लाने की जरूरत है. साथ ही जेल से जुड़े सभी कर्मियों में नाबालिग अपराधियों के प्रति सही भाषा की ट्रेनिंग देना जरूरी है.
10. BMC पर चल रहे मुकदमों का मैनेजमेंट सिस्टम
देश की सबसे अमीर कॉर्पोरेशन होने के बावजूद BMC पर अलग-अलग कोर्ट्स और ट्रिब्यूनल में लगभग 70,000 मुकदमें चल रहे हैं. इस वजह से BMC के मैन पावर पर असर होता ही है. साथ मे न्याय व्यवस्था पर भी केस लोड बढ़ता है.
इसीलिए केंद्रीय कानून मंत्रालय के 'लीगल इनफार्मेशन मैनेजमेंट एंड ब्रीफिंग सिस्टम' (LIMBS) के तहत BMC पर शुरू मुकदमों की केस मैनेजमेंट सिस्टम स्थापित करना जरूरी है. जिससे सभी मामलों का डाटा एक ही पोर्टल पर उपलब्ध हो जाएगा. इन मुकदमों की एनालिसिस स्टडी करने से एक ही तरह के मामलों से निपटने के लिए एक तय पॉलिसी बनाई जा सकती है. साथ ही इन मामलों पर हो रहे खर्चों पर काबू पाया जा सकता है.
11. साक्षरता बढ़ाने के लिए पब्लिक लाइब्रेरी के लिए सरकार से फंडिंग पर जोर दिया है. साथ ही महाराष्ट्र पब्लिक लाइब्रेरीज एक्ट के तहत लाइब्रेरी शुरू करने के लिए स्टेट लाइब्रेरी काउंसिल (SLC) होना जरूरी है. जो कि लाइब्रेरी खोलने की प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा बन जाती है.
12. सरकार को कलेक्टरों की जमीनों का रेवेन्यू प्राप्त होने के लिए यूनिफॉर्म लीज रिन्यूअल पॉलिसी बनाई जाए. बता दें कि महाराष्ट्र में 22 हजार और मुंबई में 3 हजार हाउसिंग सोसाइटीज कलेक्टर लैंड पर खड़ी हैं. जिसके कस्टोडियन कलेक्टर हैं.
13. कर प्रशासन की सुविधा और सरकार का रेवेन्यू बढाने के लिए प्रॉपर्टी टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन को और सशक्त करने की जरूरत है. जिससे टैक्स चुकने वालों को सहूलियत हो और टैक्स ना भरने वालों को कठोर सजा.
14. डिजिटल इनोवेशन के लिए कानूनी ढांचा तैयार करना. जिससे स्टार्टअप इकोसिस्टम का केंद्र बने. महाराष्ट्र में कानूनी प्रक्रिया के चलते किसी इनोवेटिव टेक्नोलॉजी में रुकावट न पैदा हो. फिलहाल कैब एग्रीगेटर्स, ऑनलाइन गेमिंग, एजुकेशन प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन गैंबलिंग और बाइक टैक्सी जैसे बिजनेस मॉडल की महाराष्ट्र में भरमार है.
15. स्किल बेस्ड ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स में निवेश की जरूरत है. महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ गैंबलिंग एक्ट, 1887 के तहत कई ऑनलाइन गेमिंग और फैंटेसी स्पोर्ट्स कानून के दायरे से बाहर हैं. ऐसे में उनसे मिलने वाले रेवेन्यू पर काफी हद तक कोई रेग्युलेशन नहीं है. ऐसे में इस कानून में बदलाव कर ऐसे गेमिंग प्लेटफॉर्म्स को कानून के दायरे में लाना जरूरी है. साथ ही उनके निवेश से रेवेन्यू में भी इजाफा हो सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)