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‘बंधक’ बनाए गए सांसद आखिरकार निकले यूनिवर्सिटी कैंपस से बाहर

सांसद ने दावा किया था कि वो विश्व भारती यूनिवर्सिटी के एक कमरे में बंद हैं

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राज्य
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पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के बोलपुर में विश्व भारती यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर कई घंटों तक 'बंधक' बने रहने के बाद आखिरकार राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता बुधवार देर रात कैंपस से बाहर आ पाए. वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े छात्रों के विरोध प्रदर्शन खत्म होने के बाद दासगुप्ता से बाहर निकले. इससे पहले शाम को सांसद ने ट्वीट कर बताया था कि उन्हें 'कमरे में बंद कर दिया गया है और बाहर भीड़ जमा है.'

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CAA पर भाषण देने से छात्रों ने रोका

सांसद स्वप्न दासगुप्ता को बुधवार को विश्व भारती विश्वविद्यालय में CPM समर्थित SFI के सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा. उन्हें यहां संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर भाषण देना था, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने यह रुकवा दिया. दासगुप्ता को यूनिवर्सिटी के लिपिका सभागार में व्याख्यान श्रृंखला के तहत ''सीएए 2019: समझ और व्याख्या'' पर बोलना था. कार्यक्रम दोपहर साढ़े तीन बजे होना था, जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति विद्युत चक्रवर्ती को करनी थी. हालांकि जैसे ही दासगुप्ता यूनिवर्सिटी कैंपस में दाखिल हुए, छात्रों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया.

एसएफआई के यूनिवर्सिटी यूनिट के नेता सोमनाथ साउ ने कहा-

“छात्र समुदायों के बीच नफरत को बढ़ाना देने वालों को उनके दुष्प्रचार के लिए विश्व भारती की जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देंगे, जो रवीन्द्रनाथ टैगोर के आदर्शों पर स्थापित है. हम बीजेपी और हिंदुत्व शक्तियों के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखेंगे.’’
- सोमनाथ साउ, नेता SFI
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'कमरे में बंद हूं और बाहर भीड़ जमा है'

इससे पहले दासगुप्ता ने ट्वीट किया, ''सीएए पर आयोजित शांतिपूर्ण बैठक पर भीड़ हमले और छात्रों द्वारा डराए-धमकाए जाने पर कैसा अनुभव होता है? ऐसा ही कुछ विश्व भारती में हो रहा है जहां मैं संबोधन दे रहा हूं. फिलहाल कमरे में बंद हूं और बाहर भीड़ जमा है.''

यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक ने एक बयान में कहा था कि प्रदर्शन के चलते दासगुप्ता को गेस्ट हाउस में रखा गया है. हालांकि यूनिवर्सिटी के अधिकारियों की ओर से इसपर कोई टिप्पणी नहीं की गई. बता दें कि स्वप्न दासगुप्ता नागरिकता कानून और NRC के समर्थन में जमकर बैठक और रैलियों में हिस्सा ले रहे हैं.

विश्व भारती की स्थापना नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1921 में की थी. यह एक केन्द्रीय यूनिवर्सिटी है.
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