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लॉकडाउन के बीच 350 स्टाफ-30 जानवरों के साथ मुसीबत में जंबो सर्कस

ये सर्कस ग्रुप मूल रूप से केरल के थालास्सेरी का है, जो दशकों से देश भर में घूम घूम कर लोगों का मनोरंजन कर रहा है.

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देश के मशहूर जेमिनी सर्कस की एक ब्रांच जंबो सर्कस पर भी लॉकडाउन की मार पड़ी है. 1951 में शुरू हुए जंबो सर्कस के कर्मचारियों की कमाई का कोई जरिया नहीं बचा है, उन्होंने सरकार से अपील की है कि इस वक्त में उनकी मदद करें क्योंकि उनकी अजीविका का कोई साधन नहीं बचा है.

ये सर्कस ग्रुप मूल रूप से केरल के थालास्सेरी का है, जो दशकों से देश भर में घूम घूम कर लोगों का मनोरंजन करता रहा है.

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सर्कस के मालिक अजय शंकर ने कहा “यह एक ऐसी कला है जो सिनेमा से भी पुरानी है, लगभग 140 साल पुरानी. यह एक गरीब आदमी के मनोरंजन का साधन है. हम शो को चलाने के लिए गांवों और छोटे शहरों में जाते हैं और यहां तक कि टिकटों की कीमत भी बहुत कम है.

हालांकि, लॉक डाउन के बीच कर्मचारियों और जानवरों की देखभाल के बढ़ते खर्च को लेकर, मालिक सर्कस के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

तनाव में बिजनेस

ये सर्कस ग्रुप मूल रूप से केरल के थालास्सेरी का है, जो दशकों से देश भर में घूम घूम कर लोगों का मनोरंजन कर रहा है.
30 से अधिक जानवरों-पक्षियों, कुत्तों, ऊंट और घोड़ों - और 350 से अधिक कर्मचारियों की देखभाल के लिए कम से कम 50,000 रुपये की जरूरत है.
(फोटो: द क्विंट)
हमें 30 से अधिक जानवरों-पक्षियों, कुत्तों, ऊंट, घोड़ों और 350 से अधिक कर्मचारियों की देखभाल के लिए कम से कम 50,000 रुपये की जरूरत है. हमारे पास दो कैंप हैं, एक कोट्टक्कल में और दूसरा केरल के कायमकुलं में है. अब हम अपनी जेब में जो कुछ भी है, उसी से काम चला रहे हैं. लेकिन हमारा बिजनेस मुसीबत में हैं.
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पंचायत ने की मदद

ये सर्कस ग्रुप मूल रूप से केरल के थालास्सेरी का है, जो दशकों से देश भर में घूम घूम कर लोगों का मनोरंजन कर रहा है.
कोट्टक्कल पंचायत ने उन्हें 100 किलोग्राम चावल और दाल दी
(फोटो: द क्विंट)

जंबो सर्कस के मैंनेजर रघुनाथ ने द क्विंट को बताया कि कोट्टक्कल पंचायत से उनकी मदद मिली, जिन्होंने उन्हें 100 किलोग्राम चावल और 50 किलोग्राम दाल दी. हालांकि, यह उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता है.

ये सर्कस ग्रुप मूल रूप से केरल के थालास्सेरी का है, जो दशकों से देश भर में घूम घूम कर लोगों का मनोरंजन कर रहा है.
कुछ कलाकार अपने घर लौटने में कामयाब रहे, लेकिन दूसरे लोग अभी यहीं हैं
(फोटो: द क्विंट)
“हमें पिछले हफ्ते 100 किलो चावल मिला, लेकिन हमें अपने कर्मचारियों को खिलाने के लिए हर रोज कम से कम 40 किलो की आवश्यकता होती है, इसलिए हमें जो मिला है उससे हम केवल 3 दिन काम चला सकते हैं . हम आभारी हैं लेकिन हमें निश्चित रूप से लगातार सहायता की आवश्यकता होगी क्योंकि हम पशुओं के चारे के लिए हजारों खर्च करते हैं, ”
सर्कस के मालिक

सर्कस के मालिक ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है. उन्होंने कहा कि 0% के दर पर मुद्रा योजना के तहत हमें लोन दिया जाए ताकि हम अपने बिजनेस को फिर से खड़ा कर सकें.

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