"RO और ARO की परीक्षा निरस्त कर फिर से एग्जाम हो. अगर ऐसा नहीं हुआ तो उग्र आंदोलन होगा"
"खुली सील का एक भी मामला है तो परीक्षा दोबारा करवानी चाहिए. सभी छात्र एक बराबर हैं."
"हमने सालों साल मेहनत की. परीक्षा दी, लेकिन अब हमारा भविष्य दांव पर लगा है"
ये मांग और दर्द उन अभ्यर्थियों का है जिन्होंने उत्तर प्रदेश में RO और ARO की परीक्षा दी. 11 फरवरी को परीक्षा होने के बाद से कथित पेपर लीक का मामला गर्माया हुआ है. अभ्यर्थी जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. पूरे विवाद की शुरुआत गाजीपुर के मुहम्मदाबाद इलाके के एक एग्जाम सेंटर एसएमएन इंटर कॉलेज से हुई. लेकिन 11 फरवरी की सुबह 10 से 12 बजे के बीच आखिर ऐसा क्या हुआ कि 58 जिलों के 2387 केंद्रों पर आयोजित इस परीक्षा में बैठे लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य दांव पर है? हिंदी क्विंट में इस घटना से जुड़े तीन किरदारों से बात की और जानना चाहा कि विवाद की शुरुआत कैसे हुई? कैसे तीनों किरदारों के बयान परीक्षा पर सवाल उठाते हैं?
गाजीपुर से शुरू हुआ विवाद उत्तर प्रदेश के हर जिले में पहुंच चुका है. एसआईटी मामले की जांच कर रही है. आयोग ने स्पेशल नंबर जारी कर अभ्यर्थियों से वीडियो और फोटो के सबूत मांगे हैं.
अब वापस इस कहानी के तीन किरदारों और उनकी कही बातों पर आते हैं.
पहला किरदार केंद्र व्यवस्थापक (एसएमएन इंटर कॉलेज) सेराज अहमद हैं, जो गाजीपुर के मछट्टी में एसएमएन इंटर कॉलेज के प्रिसिंपल भी हैं. दूसरा किरदार स्टैटिक मजिस्ट्रेट रामवीर सिंह हैं, जिनके द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई और तीसरा किरदार अभ्यर्थी आशुतोष चौबे का है. ये वही छात्र हैं, जिनका पेपर लीक का मुद्दा उठाते हुए वीडियो वायरल हुआ. इस मामले में जो पहली FIR दर्ज हुई उसमें आशुतोष का नाम है. रोचक यह है कि तीनों लोगों के मुताबिक परीक्षा के दौरान के दो घंटों की कहानी अलग-अलग है.
पहला किरदार केंद्र व्यवस्थापक सेराज अहमद के मुताबिक, मछट्टी के इस केंद्र में इससे पहले कभी भी किसी तरह की भर्ती परीक्षा का आयोजन नहीं किया गया. यह पहली भर्ती परीक्षा थी. उन्होंने बताया कि एसडीएम ने 8 बजकर 40 मिनट से 8 बजकर 42 के बीच पेपर के बंडल सौंपे. इसके बाद स्टैटिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर वीडियोग्राफी में प्रश्नपत्रों के बंडल खोले गए. फिर पेपर वितरण के कुछ देर बाद हॉल नंबर 9 और 10 के कई छात्र बाहर आकर हंगामा करने लगे. केंद्र व्यवस्थापक के मुताबिक,
आशुतोष चौबे समेत कुछ छात्र बाहर फील्ड तक पहुंच गए. प्रश्नपत्र लहराते हुए वीडियो बनाया. वो बताते हैं कि स्टैटिक मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप के बाद छात्रों को शांत करवाया गया. उन्हें कंट्रोल रूम में कैमरे के सामने बंडल खोलने की सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई. अतिरिक्त समय का आश्वासन देते हुए परीक्षा में बैठने दिया गया. फिलहाल मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई है. जांच जारी है.
दूसरा किरदार शिकायतकर्ता भी है और आरोपी भी. अजीब है ना लेकिन यही हकीकत है. इस मामले में अभ्यर्थी आशुतोष चौबे ने ही गाजीपुर स्थित इस सेंटर पर पेपर लीक के आरोप लगाए थे और एक दिन बाद उसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. जब इस मामले क्विंट हिंदी ने अभ्यर्थी से बात की तो उसके द्वारा बताए गए तथ्य केंद्र व्यवस्थापक के बयान से अलग निकले. आशुतोष चौबे के मुताबिक, केंद्र में शुरू से ही अव्यवस्थाएं थीं. नियम के मुताबिक, परीक्षा शुरू होने का समय यदि 9.30 है तो 9.20 तक ओएमआर शीट का वितरण हो जाना चाहिए, लेकिन 9.35 तक कोई कक्ष निरीक्षक तक क्लास में मौजूद नहीं था. कुछ देर बाद सील खुल पेपर लाए गए. आपत्ति करने पर स्टैटिक मजिस्ट्रेट ने कहा,
"परीक्षा देनी हो तो दो वरना हॉल 9 और 10 के अभ्यर्थियों की अनुपस्थिति लगाकर परीक्षा कराई जाएगी". आशुतोष ने कहा कि सील खुलने के पीछे उन्हें तर्क दिया गया कि, "स्टाफ को पेपर मिलने के बाद कम समय मिला और परिसर में सिर्फ एक कैंची ही थी इसलिए कंट्रोल रूम से ही उन्हें सील काटकर प्रश्न पत्र उपलब्ध कराए गए".
आशुतोष के मुताबिक, "ये सब होते हुए 10 बज चुका था, इसलिए छात्रों से कहा गया कि उन्हें अतिरिक्त समय दिया जाएगा. परीक्षा में बैठें नहीं तो कार्रवाई की जाएगी. इसके बाद अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी जो 12 बजे संपन्न हुई जबकि परीक्षा खत्म होने का समय 11.30 बजे का था".
आशुतोष ने यह भी बताया कि परीक्षा के बाद से ही उन पर दबाव बनाया जाने लगा कि पेपर लीक के मामले में वो अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक बयान जारी करें कि प्रचारित वाकया झूठा था. इस संदर्भ में अगले दिन यानी 11 फरवरी को भांवर पुलिस स्टेशन के एसएचओ राजेश बहादुर ने भी उनसे बात की, जिस पर अभ्यर्थी ने कहा कि किसी भी छात्र के सोशल मीडिया अकाउंट से कोई वीडियो अपलोड नहीं किया गया है, बल्कि परिसर के बाहर मौजूद आम लोगों ने वाकये को अपलोड किया. ऐसे में छात्रों में से किसी का भी इस मामले में वीडियो जारी करने का कोई औचित्य नहीं था.
आशुतोष बताते हैं कि अगले दिन यानी 12 फरवरी को स्टैटिक मजिस्ट्रेट रामवीर सिंह ने उन्हीं के नाम एफआईआर दर्ज करवा दी. अभ्यर्थी का कहना है, यह मामला सिर्फ उनसे जुड़ा नहीं है, बल्कि सेंटर में मौजूद तमाम छात्र इस घटना के गवाह हैं कि उस दिन क्या हुआ और छात्रों को वाकई कोई फुटेज दिखाई गई या नहीं. साथ ही परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. लिहाजा उसमें वास्तविक घटना देखी जा सकती है.
नीचे FIR की वह कॉपी है, जिसमें रामवीर सिंह के मुताबिक पूरी घटना का विवरण है और आशुतोष का जिक्र किया गया है.
जब इस पूरे मामले पर क्विंट हिंदी ने तीसरे किरदार और स्टैटिक मजिस्ट्रेट रामवीर सिंह से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपनी भूमिका तो दूर मामले पर ही बात करने से साफ इंकार कर दिया.
गाजीपुर के सेंटर की यही वो दास्तां है जो अभी नतीजे तक पहुंचने के इंतजार में है. फिलहाल मामले में (यूपीपीएससी) द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक जांच समिति (SIT) गठित की गई है जिसने अपनी जांच शुरू भी कर दी है. अब देखना होगा कि प्रशासन ऐसे मामले में कैसे न्याय करता है. परीक्षा देने वाले हजारों बच्चों का क्या होता है? सवाल प्रशासन और सरकार पर भी कि आखिर पेपर लीक के विवाद हुए बिना परीक्षाएं अपने अंजाम तक कब पहुंचेंगी?
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