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भगत सिंह के अंतिम संस्कार की नहीं है वायरल फोटो, गलत है दावा

ये फोटो 1978 की अमृतसर की है, जब निरंकारियों के साथ झगड़े में 13 सिख मारे गए थे.

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अंतिम संस्कार की एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो इस दावे से वायरल है कि ये फोटो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के अंतिम संस्कार की है. इस फोटो में सैकड़ों लोग दिख रहे हैं.

हालांकि, हमने पाया कि ये फोटो 1978 की अमृतसर की है, जब निरंकारियों के साथ झगड़े में 13 सिख मारे गए थे. हमने भगत सिंह के भतीजे अभय सिंह संधू से भी संपर्क किया. उन्होंने हमें बताया कि ये फोटो स्वतंत्रता सेनानियों के अंतिम संस्कार के जुलूस की नहीं है.

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दावा

इस फोटो को कई यूजर्स ने फेसबुक और ट्विटर पर शेयर किया है. फोटो के कैप्शन में लिखा गया है, ''ये तस्वीर शहीद भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु के अंतिम संस्कार की है. हो सके तो इसे हर भारतीय तक पहुंचाने की कोशिश करें.''

हमने पाया कि ऐसी ही फोटो पहली बार 2013 में ट्विटर पर पोस्ट की गई थी. इस फोटो को शेयर कर यही दावा किया गया था कि ये फोटो भगत सिंह के अंतिम संस्कार की है.

पड़ताल में हमने क्या पाया

हमने फोटो को रिवर्स इमेज सर्च किया. हमें वो रिपोर्ट्स और ब्लॉग मिले जिनमें इस फोटो को इस्तेमाल किया गया था. ये रिपोर्ट्स और ब्लॉग साल 1978 में अमृतसर में सिखों और निरंकारियों के बीच हुए संघर्ष और जनसंहार के बारे में थे.

निरंकारी, सिख धर्म का एक संप्रदाय है और ये बाबा बूटा सिंह के अनुयायी हैं. बाबा बूटा सिंह ने 1929 में संत निरंकारी मिशन की स्थापना की थी. The Indian Express की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये संप्रदाय "धर्मनिरपेक्ष, आध्यात्मिक संप्रदाय और किसी भी धर्म से संबद्ध नहीं होने का दावा करता है और इस बात से इनकार करता है कि सिखों का उन पर कोई अधिकार है.''

रिपोर्ट के मुताबिक, अमृतसर में वार्षिक बैसाखी समारोह के दौरान 13 अप्रैल, 1978 को सिखों और निरंकारियों के बीच लड़ाई हुई. सभा का आयोजन सिख जीवनशैली को समर्पित समूह अखंड कीर्तनी जत्था (AKJ) ने कराया था. इस लड़ाई में 13 AKJ कार्यकर्ता मारे गए और कई अन्य घायल हो गए.

इस समूह ने 'कुर्बानी' नाम की एक किताब पब्लिश की थी, जिसमें इस घटना के बारे में बताया गया था. किताब के 71वें पेज पर वायरल हो रही फोटो का इस्तेमाल किया गया है. किताब के मुताबिक, ये लड़ाई तब शुरू हुई जब निरंकारियों ने कथित रूप से गुरु ग्रंथ साहिब और सिख धर्म के खिलाफ नारे लगाए.

किताब में वो फोटो भी इस्तेमाल की गई है जिसे साल 2013 में शेयर किया गया था. दोनों की तुलना करने पर हमने पाया की ये फोटो 1978 में हुई लड़ाई की है न कि भगत सिंह के अंतिम संस्कार की.

The Print ने सतविंदर सिंह की किताब ‘The Execution of Bhagat Singh: Legal Heresies of the Raj’ को प्रकाशित किया था. इसके एक अंश में लिखा है, ''लाहौर की सेंट्रल जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने के बाद जेल प्रशासन ने उनके शवों को टुकड़ों में काटकर और बोरियों में भरकर गंदे रास्तों में घसीटा.'' इसके बाद रात के भयानक सन्नाटे में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया.''

इसमें लिखा गया है, ‘’शवों को अधूरा जलाकर नदी में फेंक दिया गया. इसके बाद गांव वालों ने शरीर के अंगों को इकट्ठा किया और उनका अंतिम संस्कार ठीक से किया.’’

क्विंट की वेबकूफ टीम ने भगत सिंह के भतीजे अभय सिंह संधू से भी संपर्क किया. उन्होंने बताया कि वायरल फोटो को गलत दावे से शेयर किया जा रहा है. ये फोटो 1978 की है. उन्होंने ये भी बताया कि गांव वालों ने अच्छे तरीके से अंतिम संस्कार किया. इसमें बहुत से लोग शामिल थे. लेकिन वायरल हो रही फोटो 1931 में हुए स्वतंत्रता सेनानियों के अंतिम संस्कार की नहीं है.

मतलब साफ है कि अमृतसर में 1978 में निरंकारियों के साथ हुए संघर्ष में मारे गए सिखों के अंतिम संस्कार की फोटो को इस झूठे दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि ये फोटो स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के अंतिम संस्कार की है.

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