उत्तर प्रदेश में 2020 के विधानसभा चुनाव (UP Elections) के पहले सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से जुड़ा एक मैसेज इस दावे से शेयर किया जा रहा है कि अजमल कसाब की फांसी रुकवाने के लिए याचिका पर जिन 302 लोगों ने साइन किए थे, उनमें से एक अखिलेश यादव भी थे.
हालांकि, हमारी पड़ताल में ऐसी कोई न्यूज रिपोर्ट या जानकारी नहीं मिली, जिससे ये साबित होता हो कि अजमल कसाब की फांसी रुकवाने के लिए राष्ट्रपति को भेजी गई दया याचिका में अखिलेश यादव ने साइन किए थे. याचिका तैयार करने वाले वकील युग मोहित चौधरी ने भी इस दावे को गलत बताया है.
दावा
सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव की तस्वीर के साथ ये टेक्स्ट वायरल हो रहा है, ''कसाब की फांसी रुकवाने के लिए जिन 302 लोगो ने याचिका पर साईन किया था, उनमें से एक अखिलेश यादव भी थे किन-किन भाई बहन को याद है या भूले गए..!!''
'महान हिंदुस्तान' नाम के फेसबुक पेज पर शेयर की गई पोस्ट को स्टोरी लिखते समय तक 2,100 से ज्यादा शेयर करीब 9,700 से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं. फेसबुक पर की गई ऐसी ही और पोस्ट के आर्काइव आप यहां और यहां देख सकते हैं.
इस दावे को ट्विटर पर भी कई लोगों ने शेयर किया है, जिनके आर्काइव आप यहां और यहां देख सकते हैं.
पड़ताल में हमने क्या पाया
हमने गूगल पर अजमल कसाब की फांसी रुकवाने वाली दया याचिका से जुड़े जरूरी कीवर्ड सर्च करके देखा. हमें 28 जनवरी 2013 की Amar Ujala पर पब्लिश एक रिपोर्ट मिली.
इस आर्टिकल में दी गई जानकारी के मुताबिक, बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने आरटीआई से मिली जानकारी के जरिए खुलासा किया था कि जिन 203 लोगों ने कसाब की फांसी रुकवाने के लिए दया याचिका भेजी थी उनमें से एनएसी (राष्ट्रीय सलाहकार परिषद) के दो सदस्य, तब इस परिषद की सदस्य रही अरुणा रॉय और पूर्व सदस्य रहे हर्ष मंदर भी थे.
हालांकि, इस रिपोर्ट में कही भी अखिलेश यादव का नाम नहीं था.
इसके अलावा, कीवर्ड सर्च करने पर हमें Indian Express पर पब्लिश 21 नवंबर 2012 की एक और रिपोर्ट मिली. जिसकी हेडलाइन थी, ''More than 200 people wanted Ajmal Kasab pardoned'' (अनुवाद- ''200 से ज्यादा लोग चाहते थे अजमल कसाब को माफ किया जाए'')
रिपोर्ट में अजमल कसाब की फांसी से जुड़ी दया याचिका तैयार करने वाले मुंबई के वकील युग मोहित चौधरी के हवाले से लिखा गया था कि, ''राष्ट्रपति को भेजी गई याचिका के पहले बैच में 203 लोगों ने साइन किए थे. दूसरे बैच में करीब 15-20 और साइन हुए थे, जिसे भी राष्ट्रपति को भेज दिया गया था."
इस रिपोर्ट में कई वरिष्ठ पत्रकारों और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के अलावा और भी कई जाने-माने नामों के बारे में बताया गया है, जिन्होंने राष्ट्रपति को भेजी गई दया याचिका पर साइन किए थे. हालांकि, इसमें अखिलेश यादव का नाम कही भी नहीं था.
क्विंट की वेबकूफ टीम ने दया याचिका तैयार करने वाले वकील युग मोहित चौधरी से भी संपर्क किया. जिन्होंने हमें बताया कि
ये गलत दावा है. अखिलेश यादव ने अजमल कसाब की दया याचिका पर साइन नहीं किए थे.वकील, युग मोहित चौधरी
मतलब साफ है कि अखिलेश यादव को लेकर किए जाने वाले इस दावे को सच साबित करने वाली हमें कोई रिपोर्ट नहीं मिली, कि उन्होंने अजमल कसाब की फांसी रुकवाने वाली याचिका पर साइन किए थे.
कब हुई थी अजमल कसाब को फांसी?
मुंबई में हुए 26 नवंबर 2008 हमले में शामिल अजमल कसाब को पुणे के यरवडा जेल में 21 नवंबर 2012 को फांसी दी गई थी. उस पर देश के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने, आतंकवादी विरोधी कानून और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के साथ-साथ आईपीसी की अन्य कई धाराओं के तहत मुकदमा चलाया गया था.
हालांकि, तब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास अजमल की फांसी रोकने के लिए दया याचिका आई थी, जिन्हें उन्होंने खारिज कर दिया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)