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COVID-19 वैक्सीन और कोरोना वायरस से जुड़े 10 भ्रम और सच

आप बेवकूफ न बनें इसलिए वेबकूफ ने 10 ऐसे मिथ के बारे में बात की है जो कोविड 19/वैक्सीन के बारे में हैं. 

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हममें से बहुत से लोग ऐसी उम्मीद कर रहे थे कि शायद 2020 में जो परेशानी हुई है वो खत्म हो जाए. शायद कुछ लोग ऐसी भी उम्मीद कर रहे हों कि अचानक से किसी दिन कोई न्यूज चैनल ये खबर चलाए कि कोविड 19 कोई बड़ी बीमारी नहीं है. और अब आप इस महामारी की चिंता किए बगैर बाहर जा सकते हैं और जिंदगी को वैसे जी सकते हैं जैसे पहले जीते थे.

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लेकिन, 2021 ऐसा नहीं होने वाला था. इस साल भी देश में कोविड 19 के मामले तेजी से बढ़े हैं. महामारी के इस दौर में इंटरनेट का इस्तेमाल कोविड से जुड़ी गलत सूचनाएं और जानकारी फैलाने के लिए किया जा रहा है. कोरोना की वैक्सीन से जुड़ी कई गलत और भ्रामक जानकारी फैलाई जा रही हैं.

लोग अब भी चमत्कारी दवाओं और घरेलू उपचार करके कोरोना से बचने के तरीके बता रहे हैं. कुछ लोग तो पिछले साल की खबरों को हाल की बताकर ये दावा कर रहे हैं कि कई जगह फिर से लॉकडाउन लगा दिया गया है. वहीं कुछ कोविड की वैक्सीन पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.

इस अप्रैल फूल के दिन आप वेबकूफ न बनें इसलिए हमने यहां पर 10 ऐसे मिथ के बारे में बात की है जो कोविड 19 वैक्सीन के बारे में हैं.

मिथ 1:

''कोविड 19 सिर्फ एक सामान्य फ्लू की तरह है''

एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें दावा किया गया था कि ''कोविड 19 सामान्य फ्लू वायरस है'' और दुनिया में बहुत दिनों तक महामारी का प्रकोप नहीं रहने वाला. यूजर्स ने इस वीडियो को शेयर कर दावा किया था कि वीडियो में दिख रहे डॉक्टर WHO से हैं जिन्होंने नोवल कोरोना वायरस को लेकर उनकी पहले की समझ पर यू-टर्न लिया है.

फैक्ट:

हालांकि, कोविड 19 और इन्फ्लुएन्जा दोनों के लक्षण एक जैसे होते हैं. दोनों में ही सांस से जुड़ी परेशानी होती है और दोनों ही संपर्क से फैलते हैं. लेकिन, ये दोनों ही कई मामलों में एक-दूसरे से अलग हैं. WHO के डेटा के मुताबिक, इन्फ्लुएन्जा, कोविड 19 के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलता है. लेकिन कोविड 19 में सेकंड्री इन्फेक्शन ज्यादा तेजी से फैलता है. यानी एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इन्फ्लुएन्जा के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलता है.

कोविड 19 में भले ही फ्लू जैसे लक्षण हों, लेकिन नोवल कोरोना वायरस की वजह से कुछ समस्याएं हो सकती हैं जैसे फेफड़ों, हृदय, पैर या दिमाग की धमनियों में खून के थक्के जम जाना.

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मिथ 2:

''सैनिटाइजर से हो सकता है हाथों को नुकसान''

सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े एक्सपर्ट्स के मुताबिक हाथ साफ रखने से कोरोना वायरस से निपटा जा सकता है. अपने हाथों को 20 सेकंड तक साबुन से धोएं और अगर साबुन नहीं है तो हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें.

हालांकि, कई वायरल पोस्ट में ये दावा किया जा रहा है कि सैनिटाइजर से नुकसान हो सकता है. पस और सूजन वाले हाथों की एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें दावा किया जा रहा है कि हैंड सैनिटाइजर का ज्यादा इस्तेमाल करने की वजह से ऐसा हुआ है.

फैक्ट:

हमने दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल के डर्मटॉलजी डिपार्टमेंट के सीनियर कंसल्टेंट, डॉक्टर डीएम महाजन से इस दावे की सच्चाई जानने के लिए संपर्क किया. डॉक्टर महाजन के मुताबिक, सामान्य सैनिटाइजर में इस तरह का रिएक्शन नहीं होता है, जब तक कि उसमें कुछ ऐसा न पड़ा हो जो जलने की वजह बनता हो या जब तक कि उसे कास्टिक एजेंट के साथ इस्तेमाल न किया गया हो.

न तो भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने और न ही स्वास्थ्य से जुड़ी किसी एजेंसी ने ऐसा कहा है कि सैनिटाइजर से हाथ जल सकते हैं.

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मिथ 3:

शाकाहारी लोगों को नहीं है कोरोना से कोई खतरा’’

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर इस दावे से शेयर की जा रही है कि नोवल कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी कोविड 19 एक भी ऐसे इंसान को नहीं हुई है जो शाकाहारी है.

इसमें कहा गया है कि ''कोविड 19 के एक भी ऐसे रोगी की पुष्टि नहीं हुई है जो शाकाहारी है''. इस गलत सूचना को वायरल कर WHO का हवाला दिया जा रहा है.

फैक्ट:

WHO की किसी भी रिपोर्ट में इस तरह का दावा नहीं किया गया है. आर्टमिस हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट, डॉक्टर सुमित राय ने क्विंट को बताया कि शाकाहारी या मांसाहारी होने का कोरोना से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने ये भी बताया कि WHO ने अपने परीक्षणों के आधार पर ऐसा कोई मानक नहीं बताया है.

उन्होंने बताया कि ''WHO ने पेशेंट के शाकाहारी या मांसाहारी स्थिति के आधार पर कोई परीक्षण नहीं किया है.''

इसके अलावा, भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस दावे को गलत बताया है.

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मिथ 4:

''मास्क लगाने से शरीर में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ जाता है''

2020 के स्वतंत्रता दिवस के दौरान, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें 5 भारतीय नवयुवक फेसमास्क जलाते हुए दिख रहे हैं. वीडियो में ये युवा ये दावा कर रहे थे कि मास्क पहनकर कोविड 19 से बचाव नहीं किया जा सकता. साथ ही, इस वीडियो में ये भी कहा जा रहा था कि मास्क से शरीर में कार्बन डाई ऑक्साइड की विषाक्तता की मात्रा बढ़ जाती है.

इस कंडीशन को हाइपरकैप्निया या हाइपरकार्बिया कहा जाता है.

फैक्ट:

लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर ट्रस्टी डॉ. अरविंद कुमार ने क्विंट को बताया कि अगर मास्क (विशेषकर N95 या N99) को लगातार 8 घंटे तक पहना जाए तो शरीर में कार्बन डाई ऑक्साइड के लेवल में 2 से 4 प्रतिशत की मामूली बढ़त हो सकती है. ये उन डॉक्टर्स के साथ भी हो सकता है जो सर्जरी करते हैं. सर्जरी करते समय डॉक्टर्स N95 मास्क के ऊपर भी एक मास्क लगाते हैं. लेकिन अगर एक आम इंसान तीन-लेयर वाले मास्क या सर्जिकल मास्क का इस्तेमाल करता है तो इससे इस तरह का कोई नुकसान नहीं होगा.

फोर्टिस हॉस्पिटल में पल्मोनॉलजी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन कंसल्टेंट, डॉक्टर रिचा सरीन ने भी बताया कि आमतौर पर लोग जिन मास्क का इस्तेमाल करते हैं वो एयरटाइट या सील नहीं होते हैं. ऐसा नहीं है कि जो CO2 आप छोड़ रहे हैं वो बाहर नहीं जा रही. ये मास्क एयरोसोल और वायरस को अंदर आने और बाहर जाने से रोकते हैं. लेकिन CO2 के कण साइज में बहुत छोटे होते हैं और वो आराम से मास्क से बाहर चले जाते हैं.

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मिथ 5:

“लहसुन का पानी बचा सकता है कोरोना वायरस से”

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Whatsapp में एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि लहसुन के उबले पानी से कोरोना वायरस से बचाव संभंव है. मैसेज में लिखा है: ''खुशखबरी, एक कटोरी ताजा उबला हुआ लहसुन वाला पानी वुहान के कोरोना वायरस से बचाव कर सकता है.''

फैक्ट:

सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुमित राय ने कहा, ''किसी मेडिकल क्लेम की पुष्टि करने के पहले एक कठिन रिसर्च प्रक्रिया होनी चाहिए. इस तरह की कोई भी साइंटिफिक रिसर्च नहीं है कि लहसुन या लहसुन के पानी से किसी वायरल संक्रमण या कोविड के मामलों में कोई फायदा मिलता हो.''

उन्होंने बताया कि हो सकता है कि इससे फायदा मिलता हो, लेकिन फिर भी मॉडर्न साइंस के मुताबिक किसी निष्कर्ष पर आने के लिए बड़े स्तर पर अनुसंधान विधियों से गुजरना पड़ता है, ताकि पता लगाया जा सके कि कोई नतीजा पूरी तरह से सही और प्रभावी हो.
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मिथ 6:

“गोमूत्र और गाय के गोबर से कोरोना से बचाव”

अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि ने दुनियाभर के नेताओं को गोमूत्र पीने और मांस न खाने की सलाह दी थी, ताकि कोरोना से बचा जा सके. उन्होंने ये बात कोविड 19 से निपटने के लिए रखी गई 'गोमूत्र पार्टी' में बोली थी.

इसके अलावा, असम के एक और बीजेपी विधायक ने कहा था कि गाय के मूत्र और गोबर से कोरोना से बचाव किया जा सकता है.

फैक्ट:

क्विंट ने डॉ. राय से बात की जिन्होंने बताया कि इस तरह के दावे की पुष्टि करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ''विज्ञान की बात करें, तो गाय का गोबर हो या गोमूत्र, ये एक जानवर (स्तनधारी) के शरीर से बाहर निकाला जाता है. इसका कोई वैज्ञानिक अध्ययन या सबूत नहीं हैं कि गोमूत्र या गोबर में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं. इसलिए हम नहीं कह सकते हैं गोबर या गोमूत्र से कोरोना वायरस सहित किसी भी इंफेक्शन से निपटने में मदद मिल सकती है. इस तरह की टिप्पणियां अवैज्ञानिक और तर्कहीन हैं.''

निरोग स्ट्रीट की डॉ. पूजा कोहली ने क्विंट को बताया कि आयुर्वेद में 8 तरह के जानवरों के मूत्र के बारे में बताया गया है, जिनका इस्तेमाल दवाओं में किया जा सकता है. लेकिन इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि इनका इस्तेमाल कोरोना के इलाज में किया जा सकता है. विशेषकर तब जब आज भी वैज्ञानिक जगत इस नई तरह की बीमारी को समझने में लगे हुए हैं.
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मिथ 7:

“पतंजलि की कोरोनिल को मिली WHO से मान्यता”

कई भारतीय न्यूज आउटलेट और सोशल मीडिया यूजर्स ने भ्रामक दावा शेयर किया था कि पतंजलि की कोरोनिल को WHO ने कोविड 19 के इलाज के लिए मान्यता दे दी है.

ये दावा तब किया गया जब बाबा रामदेव ने स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन और नितिन गडकरी की उपस्थिति में ''पतंजलि की पहली साक्ष्य आधारित कोविड 19 की दवा लॉन्च'' की थी.

फैक्ट:

इस दावे के वायरल होने के कुछ घंटो बाद ही, आचार्य बालकृष्णा ने सफाई देते हुए ट्वीट किया और बताया कि भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल (DCGI) ने कोरोनिल को फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट (CoPP) के गुड्स मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) का अनुपालन प्रमाणपत्र जारी किया है.

उन्होंने दूसरे ट्वीट में कहा कि WHO-GMP के अनुसार कोरोनिल दवाई को CoPP लाइसेंस प्राप्त हुआ.

क्विंट ने दावे की पुष्टि के लिए WHO से भी संपर्क किया. वेबकूफ टीम को दिए जवाब में संगठन ने कहा कि WHO ने COVID-19 के उपचार के लिए किसी भी पारंपरिक दवा को रिव्यू या सर्टिफाइड नहीं किया है. COPP GMP सर्टिफिकेट देश की ड्रग अथॉरिटीज WHOकी गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए जारी करती हैं.

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मिथ 8:

"अमेरिका में कोविड-19 वैक्सीन लेने के बाद एक नर्स की हुई मौत''

सोशल मीडिया पर ये दावा वायरल हुआ था कि अमेरिका में एक नर्स ने फाइजर की कोविड-19 वैक्सीन ली थी. जिसके बाद उसकी मौत हो गई.

इनमें से एक वायरल पोस्ट में लिखा गया था “ऐसी खबर है कि टिफनी पॉन्टीज डोवर की मौत हो गई है. ये वो नर्स हैं जो वैक्सीन को लेकर इंटरव्यू के दौरान लाइव टीवी पर गिर गई थीं. हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं. हम ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं.

फैक्ट:

हमें WRCB में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट मिली. WRCB अमेरिका के टेनेसी के चेटानूगा में NBC से संबंधित टीवी स्टेशन है. रिपोर्ट का टाइटल था: “First doses of COVID-19 vaccines administered at Chattanooga hospital on Thursday”.

ट्रांसलेशन: “गुरुवार को चेटानूगा अस्पताल में कोविड-19 वैक्सीन के पहले डोज दिए गए”.

रिपोर्ट के मुताबिक, अस्पताल में क्रिटिकल केयर यूनिट नर्स, टिफनी डोवर को वैक्सीन लेने के बाद चक्कर आ गए. इस रिपोर्ट में एक वीडियो भी शामिल है, जिसमें नर्स को चक्कर खाकर गिरते हुए देखा जा सकता है.

रिपोर्ट में, इस घटना के बाद नर्स का इंटरव्यू भी शामिल है, जिसमें वो WRCB रिपोर्टर को बताती हैं, “मेरी ओवर-रिएक्टिव वेगल रिस्पॉन्स की हिस्ट्री रही है, और इसलिए अगर मुझे किसी भी चीज से दर्द होता है, या अगर मैं अपने पैर की अंगुली को भी दबाती हूं, तो मुझे चक्कर आ जाते हैं.”

डोवर ने आगे कहा, “पिछले छह हफ्तों में मुझे कम से कम छह बार चक्कर आए हैं... ये कॉमन है मेरे लिए.”

हमने सीएचआई मेमोरियल अस्पताल से संपर्क किया जिन्होंने हमें बताया कि डोवर ठीक हैं. उन्होंने 21 दिसंबर 2020 को अस्पताल की नर्सिंग लीडर्स के साथ उनकी एक तस्वीर भी हमारे साथ शेयर की.

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मिथ 9:

''कोविड वैक्सीन में होता है बछड़े के भ्रूण से बने सीरम का इस्तेमाल''

सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने दावा किया कि कोविड 19 की वैक्सीन कोवीशील्ड और कोवैक्सीन में बछड़े के भ्रूण से बना सीरम (FBS), सुअर की चर्बी और गर्भपात वाले भ्रूण का इस्तेमाल किया जाता है.

इनमें से एक दावे में कहा गया था, "कोवीशील्ड वैक्सीन में ये चीजें डाली जाती हैं:-

  • FBS: गाय के गर्भ में से बछड़े के दिल से खून लिया जाता है
  • सुअर की चर्बी से बना प्रोटीन (पॉलीसोर्बेट 80)
  • सुअर के खून से प्लाज्मा (ETDA)
  • गर्भपात किए गए मानव भ्रूण से सेल (HEK293)]''

फैक्ट:

हमने कोविशील्ड बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से संपर्क किया. कंपनी की ओर से एक प्रतिनिधि ने बताया, "हमारे टीकों में सुअर या कोई अन्य जानवर से निकाली गई चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया है.''

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और भारत बायोटेक की स्टडी में इस बारे में बताया गया है कि वे जिन सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं उनमें से एक नवजात मवेशियों का रक्त सीरम है. स्टडी में उस प्रक्रिया के बारे में बताया गया है जिससे टीका विकसित किया गया था. हालांकि, स्टडी में ऐसा नहीं बताया गया है कि कोवैक्सिन वैक्सीन के उत्पादन में FBS का इस्तेमाल किया गया है.

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मिथ 10:

"कोविड वैक्सीन के साथ चिप इंजेक्ट की जाएगी''

सोशल मीडिया पर कई वीडियो इस दावे के साथ वायरल हैं कि कोविड 19 वैक्सीन में एक माइक्रोचिप होगी, जिसे वैक्सीन के साथ ही लोगों में इंजेक्ट किया जाएगा. इससे कोविड के मरीजों की निगरानी करने और उन्हें ठीक करने में मदद मिलेगी.

इनमें से एक वायरल वीडियो में हमने एक शख्स को ये कहते हुए सुना कि वैक्सीन में मौजूद चिप से लोगों को कंट्रोल किया जा सकेगा और उनके व्यवहार को भी चेंज किया जा सकेगा. ये वीडियो मई 2020 में शेयर किया गया था, लेकिन दिसंबर की शुरुआत में तब वायरल हुआ जब वैक्सीन का डिस्ट्रीब्यूशन अंतिम चरण पर था.

फैक्ट:

हमने “chips in vaccines” कीवर्ड से गूगल सर्च करके देखा. हमें अमेरिका के रक्षा विभाग की एक खबर मिली, जिसमें ApiJet के साथ कॉन्ट्रैक्ट के बारे में बताया गया था. ApiJet प्री-फिल्ड सिरिंज मेकर है जिसे कोविड 19 वैक्सीन के इंजेक्टर बनाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था.

CBN news को दिए गए एक इंटरव्यू में कंपनी के एग्जिक्यूटिव चेयरमैन जे वॉकर ने बताया था कि इंजेक्टर में वैकल्पिक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) चिप्स का इस्तेमाल क्यों किया गया है.

वॉकर ने कहा, ‘’इसे इसलिए बनाया गया है ताकि किसी तरह के झूठ से बचा जा सके. इसे इसलिए बनाया गया है ताकि हमें पता चले कि सही खुराक की समय सीमा समाप्त हो गई है. ये हेल्थ से जुड़े अधिकारियों को यह जानने में मदद करता है कि हम उन खास इलाकों में पर्याप्त लोगों का टीकाकरण कर चुके हैं या नहीं.”

वॉकर ने इस टेक्नॉलजी की तुलना बार कोड से की और ये भी कहा कि ये किसी की व्यक्तिगत जानकारी को न तो लेगा और न ही रजिस्टर करेगा.

वॉकर ने कहा '' माइक्रोचिप पूरी तरह से वैकल्पिक है. हालांकि, अमेरिकन सरकार ने इस बारे में फैसला नहीं लिया है कि वो इसे इस्तेमाल करेंगे या नहीं.''

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