सोशल मीडिया पर एक टेक्स्ट मैसेज वायरल हो रहा है. दावा किया जा रहा है कि 'ब्राह्मणों को अपशब्द बोलने वालों पर एट्रोसिटी एक्ट' लगेगा. पोस्ट में विस्तार से बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मुकेश भट्ट नाम के एक वकील की ओर से दायर याचिका को मान्यता दे दी है. मैसेज में इस फैसले को लेकर खुशी भी जाहिर की जा रही है.
भारत में एससी और एसटी के खिलाफ हो रहे भेदभाव और अत्याचार के निवारण के लिए, 1989 में एससी/एसटी (SC/ST) एक्ट पारित किया गया था. ये एक्ट इसलिए बनाया गया, ताकि एससी और एसटी समुदाय के लोगों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को रोका जा सके. क्योंकि इन जातियों से आने वाले लोग अलग-अलग तरह के अपराधों, अपमान और उत्पीड़न का सामना करते रहे हैं.
हालांकि, हमें 'ब्राह्मण जाति का अपमान करने वालों' के खिलाफ किसी तरह की याचिका से जुड़ी न तो कोई रिपोर्ट मिली और न ही अदालती दस्तावेज.
एक्ट के प्रावधान में किसी भी तरह के संशोधन पर जो सबसे नई रिपोर्ट हमें मिली वो भी 2018 की है. तब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत की स्थिति में तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को रद्द कर दिया था. हालांकि, बाद में संसद ने इसे फिर से लागू कर दिया.
दावा
वायरल मैसेज में हिंदी और इंग्लिश दोनों में ये दावा किया गया है, ''“सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने दिया बड़ा फैसला. ब्राह्मण जाति के लिए अपशब्द बोलने पे अब लागू होगी एट्रोसिटी एक्ट. एडवोकेट मुकेश भट्ट के पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी।Supreme Court of India gave a big decision. Atrocity Act will now apply for abusing Brahmin caste. The petition of Advocate Mukesh Bhatt was recognized by the Supreme Court."
इसी दावे से किए गए और भी सोशल मीडिया पोस्ट के आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.
क्विंट की WhatsApp टिपलाइन पर भी इस दावे से जुड़ी क्वेरी आई हैं.
पड़ताल में हमने क्या पाया
सबसे पहले हमने ये देखने के लिए न्यूज रिपोर्ट्स तलाशीं कि क्या ऐसा कोई एक्ट पारित हुआ है या अस्तित्व में है जैसा कि दावा किया जा रहा है, लेकिन हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली.
हालांकि, हमें ऐसी हिंदी और मराठी न्यूज रिपोर्ट्स जरूर मिलीं, जिनमें ब्राह्मण जाति को ''प्रोटेक्ट'' करने और ''एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग'' को रोकने के लिए, एट्रोसिटी एक्ट की मांग से जुड़ी खबर थी.
हमें change.org पर सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका भी मिली, जिसमें 1,36,135 हस्ताक्षर किए गए थे. ये याचिका ''ब्राह्मण एट्रोसिटी एक्ट (BAA)'' से जुड़ी थी. इस याचिका के मुताबिक उन लोगों को कड़ी सजा की मांग की गई थी, जो ''ब्राह्मण समुदाय को टारगेट करते हैं या मजाक उड़ाते हैं. और उनके बारे में सोशल मीडिया और फिल्मों के जरिए नकारात्मकता फैलाते हैं.''
साल 2018 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) एक्ट में संशोधन किया गया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने शिकायत के मामले में आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी वाले प्रावधान पर रोक लगा दी थी.
इस फैसले को पलटने की मांग को लेकर तब कई प्रदर्शन भी हुए थे. कई लोगों का मानना था कि इससे ये एक्ट कमजोर पड़ जाएगा. इसलिए, सरकार ने तब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर मूल स्वरूप में लाने के लिए लोकसभा में एक बिल पारित किया था. यानी कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज होने पर बिना किसी प्रारंभिक जांच के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. सरकार के इस बिल को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार कर लिया था.
मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई फैसला नहीं दिया है जिसके मुताबिक, ब्राह्मणों को अपशब्द बोलने पर एट्रोसिटी एक्ट लगेगा. ये दावा झूठा है.
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