क्या चिकन (Chicken) का प्रोडक्शन पूरी तरह बेकार है ? एक चिकन जितना अनाज खाता है उसमें 20 लोग खा सकते हैं ? हमारी फूड साइकल में चिकन की पैदावार करने का कोई फायदा नहीं ? कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में तो यही दावा किया जा रहा है.
क्या है दावा?: सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में शख्स कहता है ''एक किलो चिकन में 5 लोग खा सकते हैं, एक किलो प्लांट में भी पांच लोग खा सकते हैं. एक किलो चिकन के लिए हमें 3 से 4 किलो दाना खिलाना पड़ता है. उस दाने में मक्का और सोयाबीन होता है. भारत के मक्के का 40 प्रतिशत केवल मुर्गों को खिला देते हैं.''
ये शख्स आगे कहता है "एक किलो चिकन तैयार करने के लिए जितना दाना इस्तेमाल होता है, उतने में बीस लोग खाना खा सकते हैं. जबकि उस दाने के बदले जो चिकन मिलता है उसमें सिर्फ 4 से 5 लोग ही खा पाएंगे.'' वीडियो में ये शख्स आगे ये भी कहता है कि चिकन की पैदावार करने एक इनएफिशिएंट चीज है, यानी घाटे का सौदा.
वीडियो में कुल मिलाकर ये दावे किए गए हैं
चिकन इंसान से ज्यादा अनाज खा लेता है, एक चिकन 5 किलो खाता है.
चिकन की पैदावार करने का कोई फायदा नहीं, ये घाटे का सौदा है.
चिकन को खिलाए जाने वाले अनाज का और बेहतर इस्तेमाल हो सकता है.
क्विंट हिंदी की फैक्ट चेकिंग टीम 'वेबकूफ' ने देश - दुनिया में हो रही चिकन के प्रोडक्शन से जुड़ी रिसर्च खंगालीं, एक्सपर्ट से बात की, चिकन की पैदावार कर रहे लोगों से बात की. और समझने की कोशिश की कि इन दावों में कितनी सच्चाई है?
सभी सवालों के एक-एक कर जवाब देने से पहले थोड़ा शॉर्ट में बताते हैं कि हमारी पड़ताल में क्या निष्कर्ष निकलकर सामने आए.
ये सच नहीं कि 1 किलो चिकन को पालने के लिए 4 किलो अनाज खिलाना पड़ता है. इसके लिए महज 1.5 किलो अनाज की जरूरत है. 2 किलो के चिकन के लिए लगभग 3 किलो अनाज की जरूरत होती है. यानी वायरल वीडियो के आंकड़े ही गलत हैं.
चिकन इंसान के हिस्से का अनाज खाता है ये दावा भी पूरी तरह सच नहीं है. क्योंकि चिकन के खाने का एक अहम हिस्सा वो होता है, जो सोयाबीन से तेल निकलने के बाद बचता है. यानी इंसान के लिए उस अनाज का इस्तेमाल हो चुका होता है, चिकन उसे खाता है. पहले भारत इस वेस्ट को बेंचने के लिए विदेश पर निर्भर था, चिकन इंडस्ट्री की वजह से हम आत्मनिर्भर हैं. चिकन के खाने में सरसों और चावल की फसल का वेस्ट भी शामिल होता है.
चिकन इंडस्ट्री आजीविका की एक चेन का जरूरी हिस्सा है, इस हिस्से को खत्म कर दिया जाए, तो नुकसान किसानों को होगा. करोड़ों लोगों को चिकन इंडस्ट्री की वजह से रोजगार मिलता है.
2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक पशु पालन और चिकन उत्पादन का देश की GDP में 758,417 करोड़ रुपए का योगदान है. मक्के की बड़े पैमाने पर खपत चिकन इंडस्ट्री में होती है. एथेनॉल ब्लैंडेड पेट्रोल बनाने में भी मक्के का इस्तेमाल बढ़ रहा है. अगर मक्के की खपत के लिए किसान किसी एक इंडस्ट्री पर निर्भर नहीं रहेंगे, तो जाहिर है उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे. इसलिए भी पोल्ट्री फार्म का होना जरूरी है.
अब एक - एक कर वायरल वीडियो में उठाए गए सवालों के जवाब जानते हैं.
इंसान से ज्यादा अनाज खाता है चिकन ? क्या सचमुच 1 किलो चिकन को पालने में 4 किलो अनाज खिलाना पड़ता है ?
पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और पोल्ट्री फार्मर एफ एम शेख ने क्विंट हिंदी से हुई बातचीत में बताया कि ये दावा सही नहीं है कि एक किलो मुर्गा तैयार करने में 4 से 5 किलो दाना इस्तेमाल होता है.
एक किलो मुर्गा तैयार करने में डेढ़ किलो के आसपास और वहीं अगर आप 2 किलो का मुर्गा तैयार करते हैं तो करीब 3 किलो पोल्ट्री फीड का इस्तेमाल होता है.पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और पोल्ट्री फार्मर एफ एम शेख
कानपुर में बड़े स्तर पर पोल्ट्री फार्मिंग करने वाले अवनीश ने भी चिकन को खिलाए जाने वाले अनाज के लगभग यही आंकड़े बताए उन्होंने साथ ही बताया कि ''1 किलो का मुर्गा करीब 25 दिनों में तैयार हो जाता है.''
अवनीश आगे कहते हैं कि इसके दाने में मक्के का इस्तेमाल तो होता ही है, साथ ही सोयाबीन का भी इस्तेमाल होता है. लेकिन खास बात ये है कि ये साबुत सोयाबीन नहीं होता. बल्कि इसका वेस्ट यानी खली इस दाने में इस्तेमाल की जाती है. चिकन को सोयाबीन का वेस्ट खिलाने से मक्के और सोयाबीन से एक बैलेंस्ड डाइट बन जाती है.
गोरखपुर में पोल्ट्री फीड यानी चिकन को खिलाए जाने वाले अनाज की प्रोसेसिंग करने वाली एक फैक्ट्री के मालिक ऋषिकेश कुमार पांडे से भी हमने बात की. उन्होंने बताया कि...
''चिकन के खाने में मक्के का हिस्सा ज्यादा होता है जो करीब 60 प्रतिशत होता है. सोयाबीन का हिस्सा करीब 30 प्रतिशत होता है. इसके अलावा, राइस ब्रान और सरसों की खली का भी कुछ हिस्सा इस्तेमाल होता है. इससे इन चारों तरह की फसलें उगाने वाले किसानों को पोल्ट्री बिजनेस की वजह से फायदा होता है.''
Researchgate पर पब्लिश एक जर्नल के मुताबिक, चिकन के खाने में इस्तेमाल होने वाले दाने में करीब 64 प्रतिशत मक्का और 20 प्रतिशत सोयाबीन बायप्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है.
Gaon Connection की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में मक्के की कुल पैदावार का करीब 47 फीसदी इस्तेमाल चिकन के दाने में होता है.
पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एफ एम शेख ने बताया कि, " करीब 70 प्रतिशत मक्का और लगभग 30 प्रतिशत सोयाबीन का बायप्रोडक्ट चिकन के दाने में इस्तेमाल होता है.''
क्या चिकन की पैदावार का कोई फायदा नहीं ?
चिकन इंडस्ट्री से होने वाले फायदों की अगर एक चेन बनाई जाए, तो इस चेन में सबसे पहला फायदा सोयाबान और मक्का उगाने वाले किसानों को होता है.
पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एफ एम शेख बताते हैं कि इंडिया में जो सोयाबीन की फसल होती है, उसका काफी हिस्सा चिकन उत्पादन में इस्तेमाल होता है. पोल्ट्री बिजनेस की वजह से इसे उगाने वाले किसानों के लिए ये फसल फायदेमंद भी है.
वो आगे कहते हैं कि मक्के की फसल भी इसके इस्तेमाल की वजह से उगाई जाती है. अगर इसका इस्तेमाल न होता तो लोग उसे इतना पैदा भी न करते. इस तरह से किसानों को उनका खरीदार मिलता है, तो ये किसानों के लिए फायदेमंद है.
पहले बात करते हैं सोयाबीन की : हमने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च में प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. बीयू दुपारे से बात की. इस बातचीत से इतना तो साफ होता है कि सोयाबीन की फसल उगाने वालों को चिकन और मछली उत्पादन से फायदा होता है.
हम ये तो नहीं कह सकते कि चिकन इंडस्ट्री की वजह से सोयाबीन का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन हां, सोयाबीन के उत्पादन की वजह से मछली और चिकन उत्पादन जरूर बढ़ा है.डॉ. बीयू दुपारे, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च में प्रिंसिपल साइंटिस्ट
तेल निकलने के बाद बचने वाला वेस्ट आता है चिकन के काम : डॉ. दुपारे बताते हैं.
सोयाबीन का ज्यादातर इस्तेमाल तेल निकालने के लिए होता है. उससे बचा वेस्ट खली कहलाती है. शुरुआत में खली का 90% हिस्सा विदेशों में भेजा जाता था. तो इस हिसाब से सोयाबीन की फसल की कीमत विदेशों के मार्केट रेट पर ही निर्भर करती थी.
चिकन और फिशरी के उत्पादन से इंडिया में खली की खपत बढ़ी है. हमारा देश भी यही चाहता था कि इसका इस्तेमाल देश में ही बढ़े, जिससे हमारी निर्भरता विदेशी मार्केट के बजाय भारत में ही शिफ्ट हो जाए. इससे इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव कम होगा और किसानों को फायदा मिलता है.
सोयाबीन की खली प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, इसलिए इसकी खली का इस्तेमाल करने से चिकन का वजन तेजी से बढ़ता है.पूरे देश में सबसे ज्यादा सोयाबीन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना में उगाया जाता है.
हम ये तो नहीं बता सकते कि कितने किसानों को फायदा होता है. लेकिन ये साफ है कि इससे लाखों छोटे और मझोले किसानों को सीधा फायदा है. और चिकन इंडस्ट्री और फिशरी में इसकी खपत एक खास वजह है.डॉ. बीयू दुपारे, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च में प्रिंसिपल साइंटिस्ट
अब बात मक्के की फसल और मक्के के किसानों की - इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च के डायरेक्टर डॉ. हनुमान सहाय जाट कहते हैं, ''इंडिया में मक्के के प्रोडक्शन की ग्रोथ रेट की बात करें तो ये 4 प्रतिशत के आसपास है. इससे साफ होता है कि इसकी मांग बढ़ी है इसीलिए प्रोडक्शन भी बढ़ा है. मक्के की मांग सिर्फ पोल्ट्री बिजनेस में ही नहीं, बल्कि एथेनॉल बनाने में भी बढ़ी है.''
आने वाले समय में मक्के की मांग और ज्यादा बढ़नी है, क्योंकि इसका इस्तेमाल फास्ट फूड में भी काफी बड़े स्तर पर होता है.
भविष्य में ज्यादा एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल बनाने का भी लक्ष्य रखा जा रहा है. इस हिसाब से मक्के के और ज्यादा प्रोडक्शन की जरूरत तो पड़ेगी ही. साथ ही पोल्ट्री बिजनेस के लिए ये एक कॉम्पटीशन होगा, जिससे किसानों को इसकी अच्छी कीमतें मिलेंगी.
करोड़ों लोगों को फायदा पहुंचाता है पोल्ट्री बिजनेस
अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक,
भारत में 2017-18 में पशु पालन और पोल्ट्री बिजनेस देश की जीडीपी का 4.9 प्रतिशत यानी करीब 758,417 करोड़ रुपये का योगदान देता है.
देश की करीब 8.8 प्रतिशत यानी 11 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के लिए ये आजीविका का साधन है.
चिकन को खिलाए जाने वाले अनाज का हो सकता है और बेहतर इस्तेमाल ?
हमने ये पता लगाना शुरू किया कि मक्के का इस्तेमाल और कहां-कहां होता है? तो पता चला कि इंडिया में कुल मक्के के उत्पादन का 9 प्रतिशत स्टार्च इंडस्ट्री में इस्तेमाल होता है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और बागवानी विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक,
मक्के का 46% पोल्ट्री बिजनेस में इस्तेमाल होता है और 9% स्टार्च प्रोडक्शन में.
33% मक्के का इस्तेमाल इंसानों के खाने में होता है.
11% जानवरों के खाने में और 2% शराब बनाने में इस्तेमाल होता है.
हमारी डाइट में चिकन की क्या भूमिका है ? ये जानने के लिए हमने गुरुग्राम के सीके बिड़ला अस्पताल में चीफ क्लीनिकल न्यूट्रीशनिस्ट और न्यूट्रीशन एंड डायटिक्स डिपार्टमेंट में विभागाध्यक्ष प्राची जैन से भी संपर्क किया. उन्होंने बताया..
''नॉन वेज लिमिटेड ही खाना चाहिए. पर फिर भी इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि नॉन-वेज आहार में लगभग सभी प्रोटीन होते हैं, जबकि शाकाहारी खाने में किसी न किसी प्रोटीन की कमी होती है. यानी प्रोटीन के अच्छे सोर्स के तौर पर नॉन-वेज एक अच्छा विकल्प है.''
इस बात पर गौर करना जरूरी है कि प्रोटीन के किफायती विकल्पों का होना भारत में जरूरी है. क्योंकि बड़ी संख्या में लोग प्रोटीन की कमी से जूझ रहे हैं. कई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि देश में 10 में से 9 लोगों को वो पर्याप्त प्रोटीन नहीं मिल पाता, जिसकी उन्हें जरूरत है.
निष्कर्ष: सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा ये नैरेटिव सही नहीं है कि चिकन की पैदावार करना बिल्कुल बेकार है. ये सच नहीं है कि चिकन जितना अनाज खाता है, उसमें 20 इंसान खाना खा सकते हैं. वायरल वीडियो में चिकन की डाइट से जुड़े गलत आंकड़े पेश कर भ्रम फैलाने की कोशिश की गई है. साथ ही चिकन इंडस्ट्री से करोड़ों लोगों को रोजगार मिलना, जीडीपी में उसके योगदान को इग्नोर किया गया है.
(मांसाहारी, शाकाहारी या वीगन होना आपका निजी फैसला है, जिसका हम भी सम्मान करते हैं. हमने सिर्फ सोशल मीडिया पर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश किए गए भ्रामक दावे का सच आप तक पहुंचाया)
(Edited by Abhilash Mallick and Siddharth Sarathe)
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