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ट्रांसजेंडर के सामने वैक्सीनेशन की चुनौतियां बता रही हैं लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी

ट्रांसजेंडर समूह के बीच फैले वैक्सीन के डर को दूर करने के लिए लक्ष्मी ने सबसे पहले खुद वैक्सीन ली थी

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एंकर: मैत्रेयी रमेश

कॉपी एडिटर: मौसमी सिंह

वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

प्रोजेक्ट मैनेजर: अजिमेश साहा

(वीडियो देखने से पहले आपसे एक अपील है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और असम में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए हम एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल होता है. हम ये काम जारी रख सकें इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें. आपके सपोर्ट से ही हम वो जानकारी आप तक पहुंचा पाएंगे जो बेहद जरूरी हैं.

धन्यवाद - टीम वेबकूफ)

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कोरोनावायरस (Coronavirus) के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) के लगातार बढ़ रहे मामलों के बीच संक्रमण के प्रकोप को कम करने के लिए इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी है देश की पूरी आबादी को जल्द से जल्द वैक्सीन के दोनों डोज देना.

ये सरकार के लिए तो चुनौती है ही लेकिन, देश में ऐसे कई तबके हैं जो वैक्सीन लेना तो चाहते हैं पर वैक्सीनेशन के लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ऐसी ही चुनौतियां देश के ट्रांसजेंडर समूह के सामने हैं.

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ट्रांसजेंडर्स को वैक्सीनेशन के लिए जागरुक कर रहीं ट्रांसजेंडर राइट एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने क्विंट से बातचीत में इन चुनौतियों के बारे में बताया. साथ ही उन अफवाहों के बारे में भी लक्ष्मी ने हमें बताया जिनके चलते शुरुआत में ट्रांसजेंडर समूह के लोग वैक्सीन लेने से हिचकिचा रहे थे.

लक्ष्मी ने बताया कि समाज का ट्रांसजेंडर्स को लेकर नजरिया उनके वैक्सीनेशन के लिए सबसे बड़ी बाधा है. कैसे एक ट्रांसजेंडर के वैक्सीनेशन सेंटर पर पहुंचते ही लोग अलग तरह से रिएक्ट करते हैं. ये सारी बातें ट्रांसजेंडर्स का मनोबल गिराती हैं.

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लक्ष्मी ने कहा, मार्च 2021 में लोग वैक्सीन लेने से बहुत डर रहे थे. वैक्सीन को लेकर फैले इस डर को खत्म करने के लिए लक्ष्मी ने सबसे पहले खुद वैक्सीनेशन कराने का फैसला किया. खुद वैक्सीन लेकर उन्होंने लोगों के सामने ये साबित किया कि वैक्सीन न लेना खतरा है, वैक्सीन लेने से कोई खतरा नहीं.

(ये स्टोरी द क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है.)

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