इंटरनेट पर कोविड-19 के डेल्टा वर्जन के बारे में कई झूठे और भ्रामक दावों वाली एक पोस्ट वायरल हो रही है. डेल्टा वेरिएंट, नोवल कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन है.
इस पोस्ट में डेल्टा वेरिएंट के नए लक्षणों के बारे में बताया गया है और दावा किया गया है कि इसकी वजह से मृत्यु दर ज्यादा है. इस पोस्ट में ये भी बताया गया है कि वेरिएंट का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है. साथ ही, ये दावा भी किया गया है कि इससे संक्रमित का टेस्ट ज्यादातर गलत आता है.
हमने पाया कि पोस्ट में दी गई कुछ सलाह तो स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुरूप थीं, लेकिन पोस्ट में किए गए कई दावे झूठे या भ्रामक थे.
दावा
इस वायरल हो रही पोस्ट का इंग्लिश में टाइटल है, "USE DOUBLE MASKS COZ NEW COVID-DELTA IS DIFFERENT, DEADLY & UNDETECTABLE". यानी दो मास्क लगाएं क्योंकि नया कोविड का नया डेल्टा वेरिएंट अलग और घातक है, और इसे डिटेक्ट नहीं किया जा सकता.
इसके बाद आगे लिखा है:
"नए कोविड डेल्टा वायरस की वजह से ये हो सकता है:
खांसी नहीं होगी
बुखार नहीं होगा
लेकिन ये समस्याएं ज्यादा होंगी:
जोड़ों में दर्द
सिर दर्द
गर्दन में दर्द
पीठ के ऊपरी हिस्से में दर्द
न्यूमोनिया
कमजोरी
भूख की कमी
पोस्ट में आगे ये भी लिखा है कि कोविड-डेल्टा ज्यादा खतरनाक है और इसकी वजह से मृत्यु दर भी ज्यादा है.
पड़ताल में हमने क्या पाया
डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) में दो अलग-अलग वेरिएंट के म्यूटेशन शामिल हैं और WHO ने मई में पहली बार इसे पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बताया था. स्टडी के मुताबिक, ये यूके में पहचाने गए अल्फा स्ट्रेन की तुलना में 60 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक है.
दावा 1: कोविड के डेल्टा वेरिएंट में खांसी और बुखार नहीं होता है
पोस्ट की शुरुआत में ये दावा किया गया है कि डेल्टा वेरिएंट में नए लक्षण हैं और इसमें अब खांसी और बुखार जैसे लक्षण नहीं दिखते.
हालांकि, डेल्टा वेरिएंट में कुछ नए लक्षण पाए गए हैं. लेकिन, ये सच नहीं है कि इस वेरिएंट में बुखार और खांसी जैसे लक्षण नहीं पाए गए हैं.
ऐप आधारित Zoe Covid symptom study ने यूके से जो डेटा कलेक्ट किया है उसके मुताबिक, सिरदर्द, गले में खराश और नाक बहना अब सबसे आम लक्षण हैं. डेल्टा वेरिएंट दुनिया के 98 देशों में फैल चुका है और इसके यूके में 91 प्रतिशत नए मामले आए हैं.
डेटा के मुताबिक, कोविड 19 के लक्षणों में खांसी पांचवां सबसे आम लक्षण हैं और गंध की कमी से जुड़ा लक्षण टॉप 10 में भी नहीं है.
वायरल पोस्ट में बताए गए कुछ अन्य लक्षण जैसे कि जोड़ों का दर्द, पीठ दर्द वगैरह पिछले वेरिएंट के दौरान भी देखे गए थे, और डेल्टा वेरिएंट में भी इन लक्षणों का दिखना नया या अलग नहीं है.
दावा 2: डेल्टा वेरिएंट ज्यादा घातक है
पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) की ओर से जून में जारी किए गए डेटा के मुताबिक, डेल्टा वेरिएंट से इनफेक्टेड शख्स के अस्पताल में एडमिट होने की संभावना अल्फा वेरिएंट से ज्यादा है.
PHE डेटा के मुताबिक, यूके में 21 जून तक डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित 92,056 लोगों में से 117 लोगों की मौत हो चुकी थी. इस वेरिएंट की वजह से मृत्यु दर अन्य वेरिएंट की तुलना में 0.1 प्रतिशत कम है.
हालांकि, PHE ने कहा कि ये कहना जल्दबाजी होगी कि ये वेरिएंट अन्य की तुलना में ज्यादा घातक है. और अस्पताल में एडमिट होने से जुड़े मामले बढ़ने से सिस्टम प्रभावित हो सकता है और ये बीमारी और भी बदतर हो सकती है.
डेल्टा वेरिएंट, कोरोना वैक्सीन को कम प्रभावी बनाने के लिए जाना जाता है. लेकिन, फिर भी वैक्सीन अस्पताल में एडमिट होने और वेरिएंट की वजह से होने वाली मौतों को रोकने में प्रभावी है.
वायरल पोस्ट में ये गलत दावा भी किया गया है कि डेल्टा वेरिएंट के मामले में वायरस सीधे फेफड़ों में चला जाता है. हालांकि, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे ये साबित होता हो और न ही इसका ये मतलब ये है कि ये ज्यादा घातक है.
27 जून की एक प्रेस वार्ता में, वैक्सीनेशन पर नैशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (NTAGI) के प्रमुख डॉ एनके अरोड़ा ने कहा कि कोविड-19 के डेल्टा प्लस वेरिएंट (डेल्टा वेरिएंट का नया म्यूटेशन) की वजह से अन्य स्ट्रेन की तुलना में फेफड़ों से संबंधित समस्याएं होने की संभावना ज्यादा है.
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इसका मतलब ये नहीं है कि इसकी वजह से फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है.
डॉ. अरोड़ा ने PTI से कहा, ''डेल्टा प्लस में अन्य वैरिएंट की तुलना में फेफड़ों पर पहुंचने की संभावना ज्यादा है. लेकिन इसकी वजह से कोई नुकसान होता है या नहीं, ये अभी तक साफ नहीं है. इसका ये मतलब भी नहीं है कि इस वैरिएंट से ज्यादा गंभीर बीमारी हो सकती है या ये ज्यादा संक्रामक है.''
दावा 3: इस वेरिएंट की आती है नेगेटिव रिपोर्ट/RTPCR की गलत नेगेटिव रिपोर्ट
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट की ओर से चलाए जा रहे पत्रकारों के लिए कोविड-19 रिसोर्स, हेल्थ डेस्क के मुताबिक ''डेल्टा वेरिएंट के लिए किए गए सभी टेस्ट हमारी नाक में स्थित एक क्षेत्र "नासोफेरींजल" से स्वाब लेकर किए जाते हैं. फिलहाल, ऐसी कोई रिसर्च नहीं है कि नाक के इस क्षेत्र से डेल्टा वेरिएंट का पता नहीं लग पा रहा है.''
इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटरैक्टिव बायोलॉजी, IISC के डायरेक्टर डॉ अनुराग अग्रवाल ने भी कहा कि ये दावा गलत है कि डेल्टा वेरिएंट की गलत रिपोर्ट आ रही है.
एक सार्वजनिक चर्चा में डॉ. अग्रवाल ने कहा कि दुनिया के जितने भी पॉसिबल सीक्वेंसेज हैं उन्हें हम रेगुलर चेक करते रहते हैं. ऐसा कोई म्यूटेंट वेरिएंट नहीं है जो दोहरे जीन टेस्ट से बच जाएं.
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि ''लोगों को ये ध्यान रखना पड़ेगा कि RT-PCR की अपनी सेंसिटिविटी 70 प्रतिशत होती है. वायरस का जो लोड होता है मुंह में नाक में, वो मैक्सिम होता है लक्षण के एक दिन पहले, और धीरे-धीरे गिरता जाता है. और अगर कोई टेस्ट के लिए देर से पहुंचता है तो वायरस शरीर में ज्यादा अंदर पहुंच जाता है. जिस वजह से RT-PCR रिपोर्ट नेगेटिव आती है.''
वायरल पोस्ट में दो मास्क के इस्तेमाल करने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और हाथों को धोने और सैनिटाइज करने से जुड़ी जो सलाह दी गई है वो सच है. ऐसी सलाह दुनियाभर के हेल्थ एक्सपर्ट्स भी देते आ रहे हैं. वायरस के प्रसार को रोकना अहम है ताकि इसे आगे म्यूटेट होने से रोका जा सके.
(ये स्टोरी द क्विंट के कोविड-19 वैक्सीन से जुड़े प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है)
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