सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर एक मीम टेम्प्लेट शेयर हो रहा है, जिसमें ये दावा किया जा रहा है कि ''डेल्टा वैरिएंट की वजह कोरोना वैक्सीन है.''
हालांकि, ये दावा पूरी तरह से झूठा है. कोरोना का डेल्टा वैरिएंट भारत में पहली बार अक्टूबर 2020 में सामने आया था. और इस समय तक कोरोना वैक्सीन लगनी शुरू नहीं हुई थी.
इसके अलावा, भारत में जो वैक्सीन लगाई जा रही हैं, उनमें से किसी में भी जीवित वायरस का इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसलिए, वायरस के म्यूटेट होकर नए वैरिएंट बनाने की वजह वैक्सीन नहीं बन सकती.
सीनियर साइंटिस्ट, WHO और अमेरिका के CDC के मुताबिक, नए वैरिएंट तब सामने आते हैं जब वायरस बिना कंट्रोल के फैलता है.
दावा
एक मीम टेम्पलेट में इंग्लिश में ये दावा किया जा रहा है, ''डेल्टा वैरिएंट की वजह वैक्सीन है''.
इस फोटो को कई लोगों ने फेसबुक, ट्विटर और WhatsApp पर शेयर किया है.
पड़ताल में हमने क्या पाया
डेल्टा वैरिएंट उन चार वैरिएंट में से एक है, जो WHO के मुताबिक वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न (VOC) हैं यानी जो वैरिएंट चिंताजनक हैं. इन चार में से बाकी के 3 हैं, अल्फा, बीटा और गामा. कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट पहली बार अक्टूबर 2020 में सामने आया था. WHO ने इस वैरिएंट को VOC की श्रेणी में 11 मई को डाला था.
वैरिएंट मिलने के दो महीने बाद, जनवरी में भारत में वैक्सीनेशन शुरू हुआ. इसलिए, ये दावा कि वैक्सीन की वजह से वैरिएंट सामने आया है, सच नहीं है.
वैक्सीन वैरिएंट की वजह है, ये दावा इसलिए भी गलत है, क्योंकि भारत में इस्तेमाल की जाने वाली किसी भी वैक्सीन में जीवित कोरोना वायरस नहीं होता.
देश में उपलब्ध वैक्सीन या तो एडेनोवायरल-आधारित (स्पुतनिक-वी और कोविशील्ड) है या इनऐक्टिवेटेड वैक्सीन (कोवैक्सीन) हैं. इनऐक्टिवेटेड वैक्सीन यानी निष्क्रिय वैक्सीन में केमिकल रिएक्शन या गर्मी का इस्तेमाल कर वायरस को निष्क्रिय कर दिया जाता है या मार दिया जाता है. जिससे ये निष्क्रिय वायरस खुद की प्रतिकृति नहीं बना पाता. इस तरह से ये हानिकारक नहीं होता.
वैरिएंट स्वाभाविक रूप से रैंडम (अचानक) म्यूटेशन की वजह से बनते हैं और ऐसा तब होता है जब वायरस खुद की प्रतिकृति यानी कॉपी बनाता है. कभी-कभी वायरस की कॉपी में छोटे-छोटे बदलाव होते हैं, और इसे म्यूटेशन कहा जाता है. ये म्यूटेशन मिलकर एक नया वैरिएंट बनाते हैं.
वैक्सीन में जब जीवित वायरस ही नहीं होता, तो म्यूटेशन करना संभव ही नहीं है.
इसके पहले क्विंट की वेबकूफ टीम ने एक फैक्ट चेक में इस दावे को खारिज किया है कि ''लोगों को वैक्सीन लगाने की वजह से कोविड के नए वैरिएंट सामने आए हैं.''
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा संचालित पत्रकारों के लिए कोविड से जुड़ी जानकारी वाले रिसोर्स, हेल्थ डेस्क ने कहा, "ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि किसी ज्ञात वैक्सीन की वजह से कोविड के नए या ज्यादा खतरनाक वैरिएंट बनते हैं."
IISER Pune के सहायक फैकल्टी और इम्यूनोलॉजिस्ट, डॉ. सत्यजीत रथ कहते हैं:
''वास्तविकता ये है कि जैसे-जैसे वायरस बढ़ता है, वैसे-वैसे ही हर बार वैरिएंट्स भी सामने आते हैं. वायरस के प्रतिकृति बनाने की जो रचना है वो इन वैरिएंट्स के बनने की दर को तय करती है. और वैक्सीनेशन से ये दर नहीं बदलती.''
WHO ने ये भी कहा कि जब तक हम वायरस के प्रसार की जांच नही करते, वैरिएंट सामने आते रहेंगे.
WHO के मुताबिक, ''रोग को नियंत्रित करने की स्थापित और प्रमाणित विधियों से इसके संचार को कम करना, साथ ही साथ जानवरों तक इसको न पहुंचने देना, म्यूटेशन रोकने के लिए ग्लोबल स्ट्रेटजी के अहम पहलू हैं.''
वायरस म्यूटेशन इसलिए करते हैं, ताकि वो जीवित रह सकें और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बच सकें. म्यूटेशन रोकने का एकमात्र तरीका ये है कि वायरस के प्रसार को रोका जाए. कोविड से जुड़ी सही गाइडलाइन फॉलो करके और कोविड वैक्सीन से इसके फैलने में कमी आएगी. और इससे वायरस म्यूटेट करके नए वैरिएंट भी नहीं बना पाएगा.
जाहिर है, ये दावा गलत है कि वैक्सीन की वजह से कोरोना वायरस का नया डेल्टा वैरिएंट सामने आया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)