उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों के उन करीब 89 प्रतिशत लोगों को Covid-19 का टीका लगाया जा चुका है, जिनका सर्वे किया गया.
इसमें 82 प्रतिशित का कहना था कि क्विंट और वॉयसलॉग की ओर से वैक्सीन की प्रभावशीलता को लेकर मिली वेरिफाइड और फैक्ट चेक की हुई जानकारी की वजह से उन्हें वैक्सीन लेने के की प्रेरणा मिली.
ये आंकड़े दो ऑर्गनाइजेशन की ओर से साल भर जो प्रोजेक्ट चलाया गया, उसके असर को मापने के लिए किए गए सर्वे के अनुसार हैं. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य कोरोना से जुड़ी गलत और भ्रामक जानकारी से लड़ना था.
ये सर्वे 23 फरवरी से 21 मार्च 2022 के बीच तीन राज्यों के 47 जिलों में किया गया था.
इस सर्वे में कुल 2088 लोगों को शामिल किया गया. इनमें से 1491 (इनमें 683 पहले सर्वे का हिस्सा थे) ऐसे लोगों की प्रतिक्रिया को यहां पेश किया जा रहा है जिनकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये से कम है, ताकि ये दिखाया जा सके कि वंचित आबादी में गलत सूचना का क्या असर हुआ.
अप्रैल-मई 2021 में जो सर्वे किया गया था, उसकी तुलना में इस सर्वे के रिजल्ट ज्यादा सकारात्मक थे, क्योंकि पुराने सर्वे की तुलना में टीके को लेकर जो धारणा थी उसमें सकारात्मक बदलाव हुआ है. साथ ही, टीके को लेकर लोगों में भरोसा बढ़ा है.
अप्रैल 2021 में जहां करीब 42 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि वो कोविड का टीका नहीं लगवाएंगे, वहीं इस सर्वे में पता चला कि सर्वे में शामिल कुल लोगों में से सिर्फ 3 प्रतिशत ही ऐसे थे, जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी थी.
96% का मानना है कि टीके से मिलेगी कोरोना से सुरक्षा
पहले सर्वे की तुलना में, लोगों में वैक्सीन को लेकर भरोसा काफी बढ़ गया है. करीब 96 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनका मानना है कि वैक्सीन से कोरोना के खिलाफ सुरक्षा मिलेगी.
भरोसे में ये वृद्धि, अफवाहों और कॉन्सिपिरेसी थ्योरी का सच लोगों तक पहुंचाने से आई है.
पहले सर्वे में पाया गया था कि लोग सरकार पर कम भरोसा कर रहे हैं. इसमें 26 प्रतिशत ने कोरोना को सरकारी साजिश माना था. वहीं दूसरे सर्वे में ये संख्या घटकर 7 प्रतिशत हो गई. और अब सिर्फ 9 प्रतिशत लोग वैक्सीनेशन और मास्किंग प्रोटोकॉल को सरकारी प्रोपेगैंडा मानते हैं.
हमने ये भी देखा कि लोगों में सूचना के प्राथमिक स्रोत में बदलाव हुआ है, जो उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता था.
फेसबुक और वॉट्सएप से मिली जानकारी पर निर्भरता कम हुई और वीडियो वॉलंटियर्स के माध्यम से क्विंट की ओर से शेयर की जाने वाली जानकारी में तेज वृद्धि हुई.
असल में, दोनों ऑर्गनाइजेशन करीब 55 प्रतिशत उत्तरदाताओं के लिए सूचना का प्राथमिक स्रोत बन गए.
इससे पहले, 56 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा था कि उन्होंने वॉट्सएप पर मिली कोविड संबंधित जानकारी पर भरोसा किया था और 55 प्रतिशत ने फेसबुक पर परोसी गई सामग्री पर विश्वास कर लिया था.
इन प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना और दुष्प्रचार के जरिए लोगों में डर और दहशत पैदा की गई थी. इस प्रोजेक्ट के जरिए उन सूचनाओं का सच बताकर उसे उजागर किया गया.
धर्म, लिंग और वर्ग के आधार पर कम हुई है वैक्सीन को लेकर झिझक
पहले सर्वे में हमने पाया था कि महिलाओं में टीके को लेकर हिचकिचाहट ज्यादा थी. तब 49 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 61 प्रतिशत महिलाओं ने टीके को लेकर डर व्यक्त किया था.
हमारे इस सर्वे में हमने पाया कि करीब 98 प्रतिशत महिलाओं और पुरुषों दोनों ने कम से कम एक बार टीका जरूर लिया है और सभी में टीके को लेकर स्वीकृति बढ़ी है
पुराने सर्वे में अलग-अलग समुदायों में टीके की स्वीकृति में अंतर देखा गया. 42 प्रतिशत हिंदुओं के उलट 50 प्रतिशत मुस्लिमों ने कहा था कि वो टीका नहीं लगवाएंगे.
दूसरे सर्वे में हमने पाया कि 98.5 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिमों और 97 प्रतिशत से ज्यादा हिंदुओं ने वैक्सीन की कम से कम एक डोज ली थी.
परंपरागत रूप से हाशिए पर रहने वाले वर्गों जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों में टीके को लेकर झिझक में जो असमानता थी, वो भी काफी कम हो गई है. इन वर्गों के करीब 95 प्रतिशत उत्तरदाताओं को वैक्सीन की दोनों या एक डोज लगाई जा चुकी हैं.
एक साल पहले, हमने वेरिफाइड और फैक्ट चेक की गई जानकारी तक पहुंच के मामले में ग्रामीण और शहरी गरीबों में एक बड़ा अंतर पाया था.
शहरी गरीबों में भी वैक्सीन को लेकर झिझक थी और उनकी वेरिफाइड जानकारी तक पहुंच कम थी.
दूसरे सर्वे में पाया गया कि 'वेरिफाइड जानकारी तक पहुंच' में ग्रामीण और शहरी लोगों में जो असमानता थी, वो कम हो गई. दोनों इलाकों के करीब 98 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि कोविड वैक्सीन से कोरोना वायरस से सुरक्षा मिलेगी.
क्विंट-वीडियो वॉलंटियर्स के प्रोजेक्ट का असर
Google News Initiative की ओर से फंडिंग प्राप्त प्रोजेक्ट के तहत, क्विंट ने वीडियो वॉलंटियर्स की मदद से, यूपी, एमपी और बिहार के ग्रामीण इलाकों में लोगों को शिक्षित करने और सूचना देने के लिए, फैक्ट चेक और एक्सप्लेनर जैसी सामग्री उपलब्ध करवाई. ये सामग्री टेक्स्ट, वीडियो और ऑडियो के रूप में थी.
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत अप्रैल में तब हुई थी, जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर आ चुकी थी. इसका मतलब है कि सामग्री सिर्फ ऑनलाइन तरीकों से ही उपलब्ध करवाई जा सकती थी.
दूसरी लहर के खत्म होने के साथ, हमने ऑफलाइन कैंपेन भी शुरू किए. इनमें पैंफलेट बांटना और स्कूलों और अस्पतालों में जाकर लोगों से बात करना शामिल था.
हमारे सर्वे में हमने पाया कि क्विंट और वीडियो वॉलंटियर्स की ओर से शेयर की गई सामग्री को लोगों ने कोविड से जुड़ी जानकारी का अपना प्राथमिक सोर्स माना.
हमारी सामग्री देखने वालों में से करीब 94 प्रतिशत ने माना कि इससे कोविड के बारे में उनकी जागरूकता में इजाफा हुआ है.
हमारे फैक्ट चेक और एक्सप्लेनर से महिलाओं में कोविड टीके को लेकर जो झिझक थी, उसमें कमी आई. उदाहरण के लिए, गर्भवती महिलाओं में पिछले साल टीके से जुड़ा डर था वो ज्यादा था. करीब 18 प्रतिशत लोगों का मानना था कि गर्भवती महिलाओं को टीका नहीं लगवाना चाहिए.
इसके उलट, टीका लगवाने वाली महिलाओं में से 94 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उनके पास जो सामग्री भेजी गई थी, उसकी वजह से उन्हें टीका लगवाने की प्रेरणा मिली.
हमारा सर्वे दिखाता है कि गलत सूचनाओं और अफवाहों का सच बताने और लोगों को भरोसेमंद जानकारी और एक्सप्लेनर उपलब्ध करवाने से, उनका सरकारी स्वास्थ्य नेटवर्क में भरोसा बढ़ा है. साथ ही, वैक्सीन को लेकर झिझक भी कम हुई है.
(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर 9643651818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं )
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)