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यौन उत्पीड़न का पुराना वीडियो मालीवाल ने किया ट्वीट, बाद में हटाया

स्वाति मालीवाल ने यौन उत्पीड़न की घटना का वीडियो शेयर कर फिर किया डिलीट

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दावा

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने 23 जुलाई, मंगलवार को एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें एक वृद्ध व्यक्ति एक बच्ची के साथ जबरदस्ती करता दिख रहा है. मालीवाल ने अपने ट्वीट में दावा किया कि ये घटना दिल्ली में हुई है.

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उन्होंने दिल्ली पुलिस के ट्विटर हैंडल को भी टैग किया और वीडियो में दिख रहे व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया.

मिरर नाउ और टाइम्स नाउ हिंदी जैसे न्यूज प्लैटफॉर्म ने भी इस स्टोरी को दिल्ली का बताते हुए पब्लिश किया.

स्वाति मालीवाल ने यौन उत्पीड़न की घटना का वीडियो शेयर कर फिर किया डिलीट
स्वाति मालीवाल ने यौन उत्पीड़न की घटना का वीडियो शेयर कर फिर किया डिलीट
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क्या है सच?

जर्नलिस्ट धन्या राजेंद्रन ने स्वाति मालीवाल को रिप्लाई में बताया कि ये वीडियो हैदराबाद का है और ये घटना मार्च में हुई थी.

उन्होंने ये भी बताया कि वीडियो में दिख रहे व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है.

डेक्कन क्रॉनिकल की 8 मार्च, 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, हैदाराबाद के मोगलपुरा में एक 70 साल के व्यक्ति ने ढाई महीने की बच्ची से रेप करने की कोशिश की थी.

महिला आयोग की अध्यक्ष ने इसके बाद वो वीडियो डिलीट कर दिया और ट्वीट कर अपनी सफाई पेश की.

‘ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. देखकर मेरा खून खौल गया. मैं चाहती थी कि उस व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा मिले. वीडियो इसलिए शेयर किया ताकि उसकी पहचान हो सके. हालांकि अब इसे डिलीट कर दिया है और पुलिस से रिपोर्ट मांगी है. अगर मैंने किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाया है, तो माफी चाहती हूं. इरादा सिर्फ बच्ची को इंसाफ दिलाना था.’
स्वाति मालीवाल, अध्यक्ष, दिल्ली महिला आयोग

मालीवाल की सफाई के बाद जहां मिरर नाउ ने अपनी स्टोरी को अपडेट कर लिया, वहीं हिंदी वेबसाइट टाइम्स नाउ ने इस स्टोरी को लिखे जाने तक कोई सफाई पेश नहीं की है.

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स्वाति मालीवाल का ट्वीट क्यों गलत था?

गलत जानकारी के साथ ये वीडियो शेयर करने के अलावा, इस तरह का वीडियो ट्वीट करना अपने आप में गलत है.

नाबालिग रेप पीड़ितों की पहचान उजागर करना अपराध है. पॉक्सो के सेक्शन 23 और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के सेक्शन 74 के तहत इसके लिए सजा का प्रावधान है. भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए रेप पीड़िता की पहचान उजागर करने को अपराध मानती है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को दोहराया है.

इसके अलावा, ऐसा करने पर व्यक्ति पर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के सेक्शन 67बी की तहत भी मामला दर्ज हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परिवार की रजामंदी के बावजूद नाबालिग पीड़ितों की पहचान छिपाई जानी चाहिए.

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